अव्यय (अविकारी शब्द) किसे कहते है ?
हम जानते है कि लिंग,वचन,काल के आधार पर कई शब्द अपना रूप बदलते हैं। जिससे इनमें परिवर्तन आता है। अतः जिस शब्द मे लिंग,वचन,काल,के कारण परिवर्तन आए उन्हे विकारी शब्द कहते हैं। इसके अलावा एक वर्ग ऐसे शब्द का भी है, जिस पर लिंग, वचन, काल आदि के कारण कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता ;जैसे आज, तेज, जल्दी, धीरे, कल, वाह, लेकिन,किन्तु, परंतु, आदि। इसमें कोई परिवर्तन ना होने के कारण इन्हें अविकारी या अव्यय कहा जाता है। जो इस प्रकार है –
अव्यय वह शब्द है जिसके रूप में लिंग वचन और काल के प्रभाव के कारण कोई भी बदलाव नहीं होता है ।
अव्यय (अविकारी शब्द) के पांच भेद होते हैं –
- १ क्रियाविशेषण
- २ संबंधबोधक
- ३ समुच्चयबोधक
- ४ विस्मयादिबोधक
- ५ निपात।
क्रियाविशेषण किसे कहते है
चेन्नई के लिए जाने वाली ट्रेन जो अभी रवाना होने वाली थी। अचानक एक उद्घोषणा हुई खराब मौसम तथा घने कोहरे के कारण ट्रेन अपने निर्धारित समय से २ घंटा देर से चलेगी। धीरे-धीरे यात्रियों में बेचैनी बढ़ने लगी।
अभी,अचानक,धीरे-धीरे,देर से, शब्द क्रिया के बारे में कुछ विशेष जानकारी दे रहे हैं। क्रिया के बारे में विशेष जानकारी देने वाले शब्द क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
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कहां, कब, कितनी, कैसी, क्रिया घट रही है, इसी आधार पर क्रियाविशेषण को चार भागों मे बाँटा गया है।
- 1 रीतिवाचक,
- 2 स्थानवाचक
- 3 कालवाचक
- 4 परिणामवाचक
1 –रीतिवाचक क्रियाविशेषण -जो पद, क्रिया किस ढंग से हुई है,किस तरीके से हुई है। इसके बारे मे बताए। उसे रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते है;जैसे – वह तेज दौड़ा -कैसे दौड़ा (तेज ) वह जोर से रोया (कैसा रोया -जोर से )।
2 –स्थानवाचक क्रियाविशेषण –इसमें क्रिया कहा घट रही है,उस स्थान को सकेत करती है,उसे स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते है। आपका घर नीचे है (घर कहा है?-नीचे) आप यंहा आए (कहा आए -यहा)।
3 कालवाचक क्रियाविशेषण -जिस पद से,कार्य के होने का समय बताए,वह कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाएगी। जैसे -वह प्रतिदिन स्कूल जाती है। मै कल बाजार गई थी।
4 परिणामवाचक क्रियाविशेषण -जो क्रियाविशेषण क्रिया के परिणाम या फिर मात्रा आदि का बोध करती हो वह परिणामवाचक क्रियाविशेषण कहलाती है; जैसे वह थोड़ा खाती है। वह बहुत हसती है। अधिक,अल्प,कम,बहुत आदि परिणामवाचक क्रियाविशेषण है।
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संबंधबोधक अव्यय किसे कहते है?
२ सम्बन्धबोधक अव्यय – सम्बन्धबोधक अव्यय संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुकत होकर वाक्य के संज्ञा/सर्वनाम पदों के साथ सम्बन्ध बताते है; जैसे –
- बच्चा माता पिता के साथ घूमने गया है।
- हमारे घर के पास एक तलाब है।
सम्बन्धबोधक अव्यय काल,दिशा/स्थान,विरोध,साधन,समानता,आदि का बोध करवाते है। सम्बन्धबोधक अव्यय का प्रयोग हमेशा कारकीय विभक्ति -के,की,से आदि के साथ होती है। इसके कुछ अव्यय इस प्रकार है –
- कलसूचक के रूप मे -के बाद,के पहले,के पूर्व आदि।
- स्थानसूचक के रूप मे -के ऊपर,के नीचे ,बगल के, के भीतर के बाहर।
- दिशा सूचक के रूप मे -के पास,के नजदीक के समीप,के चारों ओर,आदि।
- विरोधसूचक के रूप मे -के खिलाफ,के विपरीत,के प्रतिकूल,के विरुद्ध आदि।
- समानतासूचक के रूप मे -के समान,के बराबर,की तरह आदि।
- साधनसूचक के रूप में- के जरिए के द्वारा, के सहारे, के कारण आदि।
- हेतुसूचक के रूप में- की खातिर, के लिए, के कारण, हेतु आदि।
- संगसूचक के रूप में- के संग, के साथ, सहित आदि।
- पृथकवाचक के रूप में- से हटकर, से अलग,से दूर।
समुच्चयबोधक किसे कहते है?
जो अव्यय दो शब्द, दो पदबंधों, दो वाक्यों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं, वह समुच्चयबोधक या योजक कहे जाते हैं;जैसे -मनोरंजन जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु इसके लिए सगज रहना आवश्यक है। (समुच्चयबोधक शब्द – व,कि,तथा,परन्तु )
समुच्चयबोधक या योजक के भेद –
यह जोड़ने के अलावा, विरोध बताने का कार्य भी करती है, कारण, परिणाम बताने का कार्य, विकल्प बताने का कार्य, भी करती है इस के दो भेद होते हैं।
- १ समानाधिकरण
- २ व्याधिकरण।
समानाधिकरण समुच्चयबोधक- यह एसे संयोजक है, जो दो सामान स्तरवाले अंशों को जोड़ने का कार्य करती हैं; जैसे -और, किंतु, इसलिए, तथा, एवं आदि। जैसे -वह बाजार गया और सब्जी लेकर आया।
- जोड़ने का कार्य- और त था, एवं।
- विरोधदर्शक – पर,परंतु,अपितु,बल्कि,लेकिन,किंतु,परंतु,अगर,मगर।
- विकल्प -या,न,कि,अन्यथा, नहीं तो, या,अथवा।
- परिणामदर्शक -इसलिए,अतः,फलतः।
व्याधिकरण समुच्चयबोधक- ये योजक आश्रित वाक्यों को जोड़ते हैं। इसके सहायक शब्द क्योंकि, इसलिए, चुकी, इस कारण,आदि है; जैसे -उसे फल खरीदने थे इसलिए वह बाजार गया। ऐसा लगा मानो तेज तूफान आएगी।
- हेतुबोधक -क्योंकि, इसलिए, इस कारण, चुकी आदि।
- संकेतबोधक- यद्यपि, तथापि, यदि तो, चाहे तो भी।
- स्वरूपबोधक -अर्थात, मानो, यानी, यहां तक।
- उद्देश्यबोधक- ताकि, जिससे, कि।
- समानाधिकरण और व्यधिकरण दोनों में इसलिए योजक शब्द आते हैं,अतः उनके प्रयोग को समझना चाहिए और उसी आधार पर समानाधिकरण या व्याधिकरण मे अंतर करना चाहिए।
विस्मयादिबोधक-
विस्मयादी भावों को बोध कराने वाले शब्द को विस्मयादिबोधक क्रियाविशेषण कहते हैं;जैसे हर्ष, घृणा, विस्मय, दुख, पीड़ा आदि।
जो शब्द मन के भावों को प्रकट करें उस पद को विस्मयादिबोधक कहते हैं। यह वाक्य के शुरू में ही आता है। वाक्य के अन्य शब्दों से इनका कोई संबंध नहीं होता है।
शब्द या वाक्य के बाद विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) का लगाना अनिवार्य होता है। विस्मयादिबोधक शब्द निम्नलिखित प्रकार के हैं-
संवेदना | राम राम! हाय हाय ! | आश्चर्य | अरे! वाह ! |
सम्बोधन | अरे! अहो! अजी ! | ग्लानि | हाय !उफ़ ! |
चेतावनी | सावधान ! होशियार ! | खुशी | सावधान ! |
तिरस्कार | छिः छिः ! | तारीफ/प्रशंसा | शबास ! सुन्दर! |
निपात-
जो अव्यय किसी शब्द या पद के बाद लाकर उसके अर्थ में विशेष बल दे उसे निपात कहते हैं; जैसे –
- आपको ही आना पड़ेगा।
- रमेश जीवन भर संघर्ष करता रहा।
- कल तक सही हो जाएगा।
- हसने से मात्र काम नहीं चलेगा।
- केवल मैं गाना गाऊगा ।
निषकर्ष –
आशा है दोस्तों अव्यय का यह भाग आपको पसंद आया होगा। जिसमे मैंने कम शब्दों मे अव्यय तथा इसके भेद को समझने की कोशिश की है,उदाहरण के माध्यम से अगर एस विषय मे कोई प्रशन या सुझाव हो तो मुझे अवश्य लिखे आपके सवाल का इनतजार रहेगा।