Post Gupta Age-History of Post Gupta Age in Hindi
गुप्त काल के पतन के बाद के काल को गुप्तोत्तर काल(Post Gupta Age) कहते है। दोस्तों इतिहास कि एक खासियत होती है। यह अपने आप को दुहराता जरूर है। जैसा हमने मौर्य वंश में देखा था। जब मौर्य की शक्ति छिन हुई। तो मौर्य साम्राज्य कई छोटे छोटे भागों में बँट गया। ठीक उसी प्रकार गुप्त काल के पतन के बाद भी गुप्त साम्राज्य कई छोटे छोटे राज्यों में बँट गया।
तभी सभी राज्य ने एक एक कर अपने आप को स्वतत्र घोषित कर दिया। क्योंकि गुप्त शासन में विष्णुगुप्त के बाद कोई भी मजबूत शासक नहीं हुआ।जो सत्ता को एक छत्रछाया में रख सकें। जिसके कारण कई शक्तियों का प्रदुभव हुआ। जो निम्नलिखित है। चलिए सभी वंशो का विस्तृत परिचय लेते है। छठी शताब्दी के मध्य तक गुप्त साम्राज्य पूणतः विभक्त हो गया। और उत्तर भारत फिर अनेक राज्यों में बँट गया। प्रथम राज्य वल्लभी में मैत्री वंश था।
1 वल्लभी का मैत्रक वंश 2 पंजाब में हूणो 3 कन्नौज में मौखरि वंश 4 मालवा में यशोवर्मन।
Post Gupta Age-वल्लभी में मैत्रक वंश
वल्लभी के मैत्रक वंश के संस्थापक भट्टार्क नाम क एक व्यक्ति था। जो गुप्त काल का सैन्य पदाधिकारी था। इसने गुप्त काल के बाद सौराष्ट्र काठिया वाला राज्य की स्थापना की। इसका शासन बहुत ही सुव्यव्स्थित था। यह शिक्षा के साथ-साथ व्यापार वाणिज्य का भी महत्वपूर्ण केंद्र था। इनके प्रमुख शासन जैसे -भट्टार्क धर- सेन द्रोणसिंह और ध्रुवसेन सभी बौद्ध धर्म के अनुयाई थे।
पंजाब के हूण –
यह खानाबदोश और बर्बर जाति का था। मध्य एशिया का मूल निवासी था। स्कंद गुप्त के समय इन्होंने आक्रमण किया था। गुप्त शासन के काल में स्कंद गुप्त की मृत्यु के बाद तोरमाण ने हूणों का नेतृत्व किया। तथा गंगा नदी पर आक्रमण कर स्यालकोट,एरण,मालवा में सत्ता स्थापित की। जिसकी जानकारी एरण नामक स्थान के तोरमाण के लेख से प्राप्त होती है। तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल शासक बना। जो एक अत्याचारी शासक था। इसकी राजधानी साकल थी। ग्वालियर लेख में उसे महान पराक्रमी तथा पृथ्वी का स्वामी कहा गया है। 530 ईसवी के आसपास मिहिरकुल यशोधर्मन के द्वारा पराजित हुआ। जिसके बाद इनकी की शक्ति समाप्त हो गई। ये लोग शैव्य अनुवाई थे। कल्हन के अनुसार श्रीनगर में मिहिरकुल ने शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
मालवा का यशोवर्मन वंश-
इन्हें उत्तर भारत का चक्रवर्ती शासक खा गया है। जिसका उल्लेख मंदसौर प्रशस्ति में हुआ है। हूणों पर विजय इनकी प्रमुख उपलब्धि थी। इनका शाषन बहुत ही कम समय का था। 535 ईसवी तक यशोवर्मन का शासन समाप्त हो गया था।
कन्नौज का मौखरि वंश-
यह गुप्त वंश के सामंत थे। तथा गुप्त साम्राज्य के निर्मल होने पर इन्होंने अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस समय कन्नौज राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। हर्षचरित्र से इनकी जानकारी प्राप्त होती है। इनमें कई प्रमुख शासक हुए जैसे -हरिवर्मा यह मौखरि वंश का प्रारभिक शासक था। इनकी मुर्त्यु के बाद इनका पुत्र आदित्यवर्मा ने शासन संभाला। तत्पश्चात ईश्वरवर्मा गद्दी पर बैठा। इन तीनों ने महाराज की उपाधि ली थी।
जैनपुर लेख में इन राजाओ को सिह ने समान बताया गया है। ईश्वरवर्मा के पश्चात उनका पुत्र ईशानवर्मा शासक हुआ। ईशान वर्मा के बाद इनका पुत्र शर्ववर्मा मौखरी वंश का शासक हुआ। शर्ववर्मा के बाद अवंतीवर्मा शासक बना। तथा इसी समय में थानेश्वर के पुष्यभूति वंश के साथ मौखरि वंश का वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ। अवंतीवर्मा का पुत्र और उत्तराधिकारी ग्रहवर्मा का विवाह थानेश्वर(हरियाणा का अंबाला जिला ) शासक प्रभाकरवर्धन की पुत्री राज्यश्री के साथ संपन्न हुआ था। तथा ग्रहवर्मा की मृत्यु के बाद मौखरी वंश की शक्ति छीन होती चली गई।
Post Gupta Age-गुप्तोत्तर काल के वर्द्धन वंश (पुष्यभूति वंश )
पुष्यभूति वंश –
पुष्यभूति इस वंश के संस्थापक थे। इन्होंने थानेसर (हरियाणा का अंबाला जिला ) में इस वंश की स्थापना की। प्रभाकरवर्द्धन – वर्धन वंश की शक्ति और प्रतिष्ठा का संस्थापक था। प्रभाकरवर्द्धन की पत्नी यशोमती से 2 पुत्र राज्यवर्द्धन एवं हर्षवर्द्धन तथा एक कन्या राज्यश्री उत्पन्न हुई। राजश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि नरेश ग्रहवर्मन से हुआ।
राज्यवर्द्धन –
अपने पिता की मृत्यु के बाद राजवर्द्धन गद्दी पर बैठा। इसी समय मालवा नरेश देवगुप्त ने ग्रहवर्मन की हत्या कर राज्यश्री को कैद कर लिया। राजवर्धन ने देवगुप्त को पराजित कर दिया। लेकिन देवगुप्त के मित्र गौड़ शासक शशांक ने धोखे से राजवर्द्धन की हत्या कर दी।
हर्षवर्द्धन (606 -647 ईसा )-
हर्षवर्द्धन वर्द्धन वंश का शक्तिशाली व यशस्वी सम्राट था। मात्र 16 वर्ष की आयु में इन्होंने विकट परिस्थितियों में गद्दी संभाल।ये अपने को राजपूत्र कहते थे तथा स्वयं अपना नाम शिलादित्य रखा लिया था। हर्ष ने अपने आचार्य दिवाकरमित्र की सहायता से राज्यश्री को खोज निकाला। हर्ष में कन्नौज की राजधानी बनाया जहाँ से इन्होंने चारों और अपना प्रभुत्व फैलाया। हर्ष को पूर्वी भारत में गौड़ देश के राजा शशांक से मुकाबला करना पड़ा। 619 ईसा में शशांक की मृत्यु के बाद शत्रुता समाप्त हो गई। दक्षिण की ओर हर्ष के अभियान को नर्मदा के किनारे चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने रोका और हर्ष को पराजित किया।
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हर्ष के समकालीन शासक
- भास्कर वर्मा- ये कामरूप के शासक थे। भास्कर वर्मा वर्मन वंश का शासक था।
- पुलकेशिन द्वितीय -ये चालुक्य वंश के शासक थे। इनकी राजधानी कर्नाटक के आधुनिक बीजापुर जिले के बादामी में थी।
- गौड़ नरेश शशांक– इसकी राजधानी कर्ण सुवर्ण थी। ये एक कट्टर शैव शासक थे। इनहोने ही बोधि वृक्ष कटवा दिया था।
- ध्रुवसेन द्वितीय -यह वल्लभ गुजरात का शासक था। इसे हर्ष ने पराजित किया था। बाद में हर्ष ने अपनी पुत्री की शादी इससे करा दी।
हेन सांग (629 -645 ईसा)-
चीनी यात्री हेनसांग हर्ष के शासनकाल में भारत आया। यह नालंदा महाविहार में पढ़ने के लिए तथा बौद्ध ग्रंथ एकत्रित करने के उद्देश्य से भारत आया थे। हेनसांग ने शूद्रों को कृषक कहा था। हेनसांग को यात्रियों का राजकुमार,नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा गया है। हर्ष ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को अपना संरक्षण प्रदान किया। कर- हर्ष काल में तीन प्रकार के करों की जानकारी प्राप्त होती है। हिरणनय्या- नगद कर दूसरा भाग- कृषि उपज का 1 बटा 10 भाग 3 बली- इसके बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त नहीं है।
Post Gupta Age-गुप्तोत्तर काल के साहित्य
- हर्ष के दरबार में अनेक विद्वानों का निवास स्थान था जैसे बाणभट्ट मयूर मातंगदिवार।
- बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था,जिसने हर्षचरित कादंबरी की रचना की।
- मयूर ने सूर्यशतक की रचना की।
- हर्ष ने स्वयं 3 नाटक प्रियदर्शिका रत्नावली और नागानंद की रचना की।
महामोक्षपरिषद –
हर्ष प्रयाग में प्रत्येक पांच वर्ष में महामोक्षपरिषद का आयोजन करवाता था। इसने प्रथम दिन बुद्ध की, दूसरे दिन सूर्य की,और तीसरे दिन शिव की पूजा की जाती थी तथा चौथे दिन दान किया जाता था। हेनसांग छठे परिषद में सम्मिलित हुआ था। हर्ष को भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कहा गया है। ये बहुत उदार थे। यह केवल उतर भारत तक की सीमित थे
महाराज | हर्ष का अधीनस्थ शासक |
महासामंत /सचिव/आमात्य | मंत्रिपरिषद के मंत्री |
भुकित | प्रान्त |
उपरिक/राष्ट्रिय | भुक्ति के प्रशासक |
ग्रामाक्षपटलिक | ग्राम शासक का प्रधान |
चाट/भाट | पुलिसकर्मी |
दण्डपाशिक | पुलिस विभाग का अधिकारी |
दाणिडक | अधिकारी |
बृहदेश्वर | अश्व सेना का अधिकारी |
बलाधिकृत | पैदल सेना का अधिकारी |
नालंदा महाविहार -हर्ष के काल में नालंदा महाविहार महायान बौद्ध की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। हर्ष के समय यहाँ के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
सिंहनाद | मुख्य सेनापति |
अवन्ति | शांति एवं युद्ध के मंत्री |
स्कंदगुप्त | हाथी सेना का मुख्य अधिकारी |
कुंतल |