karak -कारक किसे कहते है ? तथा कारक के भेद
दोस्तों स्वागत है,आज के पोस्ट कारक (karak)में। अभी तक हमने संज्ञा,सर्वनाम,क्रिया को समझा। आज हम karak को विस्तारपूर्वक समझने का प्रयास करेंगे। जैसे कारक किसे कहते है ? तथा इसके भेद कितने है। तथा karak (कारक) की क्या भूमिका होती है वाक्य निर्माण में ? karak हिंदी व्याकरण का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है जो वाक्यों को परिपूर्ण करता है। हम जानते हैं कि किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम ही क्रिया को पूरा करते हैं। अतः कारक वह शब्द है जो संज्ञा सर्वनाम के क्रिया के साथ विभिन्न प्रकार के संबंधों को दर्शाता है।
चलिए इसे एक उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करते हैं। गंगा हिमालय से निकलकर सभी दर्शनार्थी को अपनी ओर लुभाती है। तथा गंगा के जल में कई प्रकार के जलीय जीवों का वास होता है। इस उदाहरण में गंगा कहाँ से निकलती है ? हिमालय से। किस को लुभाती हैं ? दर्शनार्थी को। जलीय जीवों का घर कहाँ है ? जल में।
इन सभी वाक्यों में संज्ञा सर्वनाम को क्रिया के साथ संबंध दिखाने के लिए से, को, में आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है, यही शब्द कारक कहलाते हैं। कारक के आठ भेद होते हैं। कर्ता, कर्म ,करण, संप्रदान,अपादान, संबंध, अधिकरण, संबोधन कारक। चलिए सभी का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया जाए।
कारक वह व्याकरणिक इकाई है। जो वाक्य में आए संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का क्रिया के साथ संबंध बताती है। वाक्य को प्रकट करने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उन्हें कारक चिन्ह या विभक्ति चिह्न परसर्ग कहते हैं।
karak कारक के आठ भेद –
कर्ता कारक –कर्ता मतलब काम करने वाला। जो क्रिया करता हो उसे कर्ता कारक कहते हैं। इसके अलावा यह ध्यान देने की बात है। कि क्रिया को करने वाला सदैव चेतन ही होगा क्योंकि अचेतन क्रिया नहीं कर सकता। साथ ही साथ वाक्य में दो तरह के कर्ता हो सकते हैं। प्राकृतिक कर्ता और व्याकरणिक कर्ता।
प्राकृतिक कर्ता –जो वास्तव में वाक्य की क्रिया को संपन्न करता है उसे प्राकृतिक कर्ता कहते हैं । तथा व्याकरणिक कर्ता वह कर्ता है जिस के अनुरूप क्रिया का रूप चलता है। किसी भी वाक्य में संज्ञा प्राकृतिक और व्याकरणिक करता दोनों हो सकती है। और कभी-कभी इसके उल्ट यह दोनों भिन्न भी हो सकती है जैसे-
- बालक पतंग उड़ा रहा है। (इसमें व्याकरणिक और प्राकृतिक कर्ता दोनों है) ।
- बालिका पतंग उड़ा रही है। (व्याकरणिक और प्राकृतिक कर्ता) ।
- आँधी चल रही है।
- फसल कट रही है।
- वाक्य में आँधी फसल संज्ञा के अनुरूप ही विभिन्न वाक्यों की क्रिया अपना रूप निर्धारण करती है।
- इस प्रकार यह सभी संज्ञा व्याकरणिक कर्ता है।
कर्ता कारक संबंधित महत्वपूर्ण बातें-
कर्ता कारक में प्रायः ने परसर्ग (परसर्ग का अर्थ बाद में,जो संज्ञा/सर्वनाम के बाद लगते है ) का प्रयोग नहीं होता है। ने परसर्ग का प्रयोग वर्तमान काल,भविष्यकाल की क्रिया होने पर नहीं होता है। भूतकाल में भी क्रिया सकर्मक हो तभी ने का प्रयोग होता है। जैसे
- सुनीता गाती है। (वर्तमान काल )
- रमेश फुटबॉल मैच खेलेगा। (भविष्यकाल )
- सोहन बहुत हँसा।(भूतकाल अकर्मक क्रिया)
- दिनेश ने पाठ पढ़ा। (भूतकाल सकर्मक क्रिया)।
- कर्ता कारक में को विभक्ति का प्रयोग भी होता है- सोहन को पढ़ाना चाहिए।
- दर्शकों को कलाकार का सम्मान करना चाहिए।
- से/ के द्वारा /द्वारा का प्रयोग कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में होता है।
- कलाकारों के द्वारा अच्छे खेल का प्रदर्शन किया गया।
- रीता से चला नहीं जा रहा।
- कलम के द्वारा अच्छी कहानियाँ लिखी जा सकती है।
karak-कर्म कारक-
वाक्य की जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का फल पड़ता है। वह संज्ञा कर्म कारक होती है। सकर्मक क्रिया हमेशा कर्म की अपेक्षा रखती है। जैसे वंदना खा रही है। यह वाक्य अधूरा प्रतीत होता है लेकिन यही वाक्य को जब ऐसे कहा जाए कि वंदना खीर खा रही है। तो खीर कर्म का कार्य कर रही है। क्रिया को पहचानने का आसान सा उपाय है कि क्रिया से पहले क्या प्रश्नवाचक शब्द लगाकर प्रश्न किया जाए और उत्तर में कोई वस्तु आए तो वह संज्ञा क्रिया का कर्म होगी। जैसे बच्चा भात खाता है। वाक्य में क्या खाता है उत्तर भात खाता है। यहाँ भात खाना सकर्मक क्रिया का कर्म है।
चलिए कुछ और उदाहरण से अच्छी तरह समझा जाए जैसे – मधु पत्र लिखती है क्या लिखती है ? उत्तर पत्र(कर्म )मोहन गिटार बजा रहा है। क्या बजा रहा है ? गिटार (कर्म) अक्सर हम देखते हैं कि कर्म की संज्ञा के साथ परसर्ग नहीं लगता है। को परसर्ग कर्म कारक का है -बच्चों ने फूल को तोड़ा। अगले परीक्षार्थी को बुलाइए।
करण कारक- करण कारक का मतलब साधन से है। क्रिया को करने में कर्ता जिस साधन का उपयोग करता है। या जिस साधन की सहायता लेता है। वह निर्जीव संज्ञा करण कारक होती है। मोहन कलम से लिखता है। दर्जी मशीन से सिलाई करता है। करण कारक का परसर्ग से है। इसके अतिरिक्त के द्वारा,के साथ,द्वारा परसर्ग का प्रयोग भी होता है।
इन्हें भी पढ़े – Shabd aur pad:4 Important classification of shabd aur pad
karak-संप्रदान कारक-
जिस संज्ञा सर्वनाम के लिए कोई कार्य किया जाए, जिसे कुछ दिया जाए वह संप्रदान कारक है। जैसे- शिक्षिका ने बच्चों को पुरस्कार दिया। मैं स्वामी के दर्शन के वास्ते आई हूँ। मोहन ने सोहन के लिए यह दवाई दी है। इन वाक्यों में दो प्रकार के कर्म है प्रत्यक्ष कर्म और अप्रत्यक्ष कर्म। जो निर्जीव वस्तु क्रिया के साथ क्या लगाने पर आती है वह प्रत्यक्ष कर्म होती है। जैसे- उसने आम खाए। यहाँ क्या खाए ? आम (अचेतन संज्ञा) इसका उत्तर होने के कारण प्रत्यक्ष कर्म है। परंतु जब प्रत्यक्ष कर्म किसी सजीव संज्ञा के लिए प्रयुक्त होता है। तब वह सजीव संज्ञा अप्रत्यक्ष कर्म होती है। जैसे उसने वसुधा को अमरुद दिए। यहाँ अमरूद प्रत्यक्ष कर और वसुधा के लिए है, अतः यह वसुधा (सजीव संज्ञा) अप्रत्यक्ष कर्म है।
अपादान कारक- जिस संज्ञा या सर्वनाम से अलग होने का भाव प्रकट हो वह अपादान कारक होता है। जैसे वह शहर से चला गया। पेड़ से पत्ते गिरे। यहाँ शहर से और पेड़ से में अपादान कारक है। ध्यान देने योग्य बात है की जिन शब्दों से निकलना, सीखना, तुलना, घृणा, भय, ईर्ष्या,दूरी,आदि का बोध हो वे अपादान कारक है। जैसे -रमन को झूठ से घृणा है। गंगा हिमालय से निकलती है। सिपाही को दुश्मन से भय कैसा आदि। करण कारक का उपसर्ग भी से ही है। परंतु दोनों में अर्थ की दृष्टि से भेद है। करण कारक में से साधन के रूप में प्रयुक्त होता है। जबकि अपादान कारक में अलगाव के रूप में।
कर्ता | ने |
कर्म | को |
करण | से |
सम्प्रदान | को,के लिए |
आपादान | से (अलग ) |
संबंध | का, की,के,रा,रे,री,ना,नी, ने |
अधिकरण | में,पे,पर |
सम्बोधन | हे,अरे,अहो,आदि |
संबंध कारक-
जहाँ दो संज्ञा और सर्वनाम का आपस में संबंध दिखाया गया हो वह संबंध कारक होता है। जैसे यह गेंदा का फूल है। यह मेरी बहन है। इसमें का के की और रे री परसर्ग लगते हैं। जैसे-यह गुलाब का फूल है। यह मेरी बहन है।
अधिकरण कारक -अधिकरण का मतलब आधार से है। शब्द के जिस रूप से क्रिया का आधार का बोध हो वह अधिकरण कारक होता है। जैसे
- वह कमरे में विश्राम कर रहा है।
- रसोई में चूहा है।
- छत पर मत चढ़ाओ।
अधिकरण कारक के परसर्ग- में और पर है। तुलना में भी कभी-कभी अधिकरण का प्रयोग हो सकता है। जैसे सब बच्चों में राम अत्यंत समझदार है। समय के लिए भी कभी-कभी को परसर्ग प्रयुक्त हो सकता है। जैसे मैं रात को ही पहुचुँगी। कभी-कभी बिना परसर्ग के भी अधिकरण कारक का प्रयोग हो सकता है। जैसे
- उसने घर घर जाकर चंदा इकट्ठा किया।
- तुम्हारे घर शांति रहेगी।
सम्बोधन कारक -जब किसी को सम्बोधित किया जाए। तब वह सम्बोधन कारक होता हैं। इसमें शब्द के पहले हे,अरे,ओ,अजी आदि शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे –
- अरे !आप कहाँ गए थे ?
- अजी !जरा इधर आना।
- छात्रों ! वँहा नहीं जाना है।
दोस्तों आज के इस पोस्ट में हमने सीखा संज्ञा,सर्वनाम के क्रिया के साथ संबंध कारक कहलाते हैं। साथ ही साथ कारक चिन्ह/विभिक्त/परसर्ग की परिभाषा के साथ इनके भेदों तथा ने परसर्ग का प्रयोग केवल भूतकाल की सकर्मक क्रिया होने पर ही संभव है,वर्तमान या फिर भविष्यकाल में नहीं। आशा है दोस्तों यह भाग आपको पसंद आया होगा। आपके सुझाओं का इंतजार रहेगा धन्यवाद।