Guptas Dynasty:Learn 8 Gallant Rulers of Gupta Period

Guptas Dynasty:origin of guptas dynasty& rulers-in hindi

Guptas Dynasty-कहते है इस धरती पर कोई भी चीज स्थाई नहीं है । इसी नियम के फलस्वरुप जब मौर्यो का पतन हुआ । तब बहुत वर्षों तक भारत कोई एक सता के अधीन नहीं रहा । पूरा भारत कई छोटे छोटे राज्यों में बट गया। कोई भी ऐसा राजा नहीं था। जो पुरे भारतवर्ष को नेतृत्व कर सके। तभी इस कमी को मगध के गुप्त शासकों ने पूरी की। शुरुवात में गुप्त किसानो के सामंत हुआ करते थे। फिर धीरे धीरे इन्होंने अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली की इन्होने एक साम्राज्य स्थापित कर ली। जो भारत के इतिहास की दुसरी सबसे बड़ी साम्राज्य साबित हुई।

और करीबन पूरे भारत को अपने शासन प्रणाली तथा उतम शासकों की छत्र -छाया के अंतर्गत आर्थिक,सामाजिक,और साहित्य,वैज्ञानिक उपलब्धता से भारत के मान समान को शिखर तक पहुँचा दिया । जिसका प्रमाण साहित्यक,पुरातात्विक एवम् मंदिर,गुफाओ आदि तथा अनेक कलाकुर्तियों मे देखने को मिलता है ।

अगर गुप्त साम्राज्य (Guptas Dynasty)के इतिहास के स्रोत्रों की बात करें तो इनके चार स्रोत्र है

  • 1 साहित्यक -देवीचंद्रगुप्तम,मुद्राराक्षस,कामसूत्र,कालिदास की रचनाओ।
  • 2 लेख -प्रयाग प्रशिस्त,एरण अभिलेख,ताम्रपत्र,मुहरों पर लेख,विलसड स्तम्भ लेख।
  • 3 मुद्रा -सिक्के।
  • 4 यात्री विवरण -फहियान,ह्वेनसांग भारतीय इतिहास मे गुप्त काल को भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है ।

Guptas Dynasty-गुप्त साम्राज्य की उत्पति –

अगर हम गुप्त साम्राज्य की उत्पति की बात करें तो इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं है पर विभिन्न लेखकों आदि के मतो की बात करे तो गुप्त साम्राज्य उत्पति के उपलक्ष मे अनेक मत है।

शूद्र जाति का होने के विषय में मत

काशी प्रसाद जयसवाल के अनुसार गुप्त वंश शूद्र जाति से सम्बन्ध रखते थे । उन्होंने कौमुदिमहाउत्सव नामक नाटक जो वज्जिका नामक किसी स्त्री की रचना थी ।उसी कथा के सारांश के अनुसार यह मत निकाला की गुप्त वंश शूद्र जाति से सम्बन्ध रखते थे । इसलिए काशी प्रसाद जयसवाल के अनुसार शायद गुप्त शासकों ने अपनी किसी भी अभिलेखों मे इनहोने जाति से संबंधित कोई जानकारी नहीं दी । अन्य प्रमाण जैसे चंद्रगोमिन के व्याकरण का एक सूत्र अजयत् जटोर हूणान को प्रमाण के रूप मे व्यक्त करते हुए कहा है, की चुकी स्कन्दगुप्त की हूणों विजय के संकेतों के आधार पर जाटों को इनका पूर्वज बताया है ।

इनके अन्य प्रमाणों की बात करें तो चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावतीगुप्त के पूना ताम्र पत्र मे प्रभावती ने अपने आप को धारण गोत्र के रूप मे अंकित किया है । जयसवाल के अनुसार धारण गोत्र जाटों की धरणि शाखा से संबंधित है । इसलिए इन्होंने गुप्त साम्राज्य को शूद्र जाती का बताया है तथा मत्स्यपुराण के एक कथन शूद्रयोनि के राजा का पृथ्वी पर शासक के रूप में कार्य करेगा। इस कथन के अनुसार इन्होंने गुप्त साम्राज्य को शूद्र जाति का बताने का प्रयास किया है ।

वैश्य होने के विषय में मत – 

एलन एस के आयंगर, रामशरण आदि के अनुसार । इनहोने विष्णुपुराण की संज्ञा देते हुए कहा है की विष्णु पुराण एक श्लोक के अनुसार जैसे ब्राह्मण अपने उपनाम मे शर्मा शब्द,क्षत्रिय वर्मा,तथा वैश्य गुप्त तथा दास शूद्र को व्यक्त करता है । इसलिए चुकी गुप्त राजा अपने उपनाम मे गुप्त को लगते थे । इसलिए यह वैश्य जाति से सम्बन्ध रखते थे ।

क्षत्रिय होने का मत

रमेशचन्द्र मजूमदार,गोरीशंकर हीराचंद्र ओझा ने क्षत्रिय के रूप मे प्रमाण देते हुए कहा है की जावा के तन्त्रिकामन्दक नामक ग्रंथ मे महाराज ऐश्रय्रपाल ने अपने आप को सूर्यवंशी यानि क्षत्रिय कुल का बताया है तथा समुन्द्रगुप्त का वंशज बताया है । इस आधार पर तथा अन्य पंचोभ (बिहार के दरभंगा जिले मे स्थित )एक लेख मे गुप्त वंश को पांडव का वंशज कहा गया है इसके आधार पर इनहे क्षत्रिय कहा गया है ।

ब्राह्मण होने का मत –

प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्र पत्र मे चुकी धारण गोत्र उल्लेख किया हुआ है । स्कंदपुराण के अनुसार धारण गोत्र ब्राह्मण के 24 गोत्रों मे 12 वा गोत्र है । तथा धारण गोत्र का सभी चरित्र और व्यवहार धारण गोत्र के चारित्रिक नियम से मिलता जुलता है । तथा इनके अनुसार यह ब्राह्मण गोत्र से होने का प्रतिपादन करते है।   

2 Rulers of Guptas dynasty

श्रीगुप्त (240 -280 ईसा)

Guptas Dynasty के संस्थापक की बात करे तो यह 240 -280 ईसा से शुरू होती है । जिसके संस्थापक श्री गुप्त रहे थे । संस्थापक होने के बाबजुद इन्को इतनी ख्याति नहीं मिली जितना चन्द्रगुप्त प्रथम को मिली । प्रभावती गुप्ता के पुना ताम्र पत्र अभिलेख मे श्रीगुप्त को आदिराज से संबोधित किया गया है । अगर गुप्त वंशावली की बात करे तो इसमें एक से एक बढ़ कर कई शासक आए । जो इस प्रकार है ।

घटोत्कचगुप्त (280-319 )

श्री गुप्त के बाद उनका पुत्र घटोत्कचगुप्त (280-319 )ईसा तक शासन में रहा । इन्होंने महाराज की उपाधि धारण की।

चन्द्रगुप्त प्रथम (319-334)

यह गुप्त वंश के पहले प्रसिद्ध शासक थे । जिसने लिच्छवि की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह की जिससे एनके सत्ता को बल मिल । इनहोने ने ही 319-320 ईसा मे गुप्त संवत् चलाया था ।

समुन्द्रगुप्त (335 -380)ईसा

समुन्द्रगुप्त अब तक के सबसे शक्तिशाली राजाओ में से एक थे। सता सभालने के बाद इन्होंने गुप्त साम्राज्य का आपर विस्तार किया । इन्हे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है । इन्हें कई नामों से भी पुकार जाता था । जैसे समरशत जिसका मतलब सो युद्धों का विजेता । ऋद्धपुर अभिलेख मे समुन्द्रगुप्त को तत्पादपरिगूरहित कहा गया है ।

इनके विषय मे अन्य जानकारी हरिषेण के द्वारा रचित प्रयाग प्रशसित मे मिलती है । समुन्द्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12 राजाओ को परास्त कर धर्म विजय का कार्य किया । आर्यावर्त मे 9 राजाओ को परास्त कर दिगीवजयी का कार्य किया । इनहोने वन प्रदेश के सभी राजाओ को सेवक बनाया ।स्कंदगुप्त के भितरी अभिलेख से पता चलता है की । समुन्द्रगुप्त के अश्वमेघ यज्ञ भी करवाया था । एरण अभिलेख मे समुन्द्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्तदेवी था । समुन्द्रगुप्त को कविराज भी कहा जाता था । इनहे कई सिक्कों पर वीणावादन करते भी दिखाया गया है । श्रीलंका के राजा ने गया मे भगवान बुद्ध की मंदिर बनवाने के लिए अनुमति मांगी थी । इनके कार्यकाल मे छ:प्रकार की मुद्राए मिलती थी । – गरुड़,अश्वमेघ,धनुर्धर,व्याधहंता,परसु एवम् वीणासारण

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रामगुप्त

समुन्द्रगुप्त के बाद रामगुप्त ने सता सभाली परंतु यह एक कमजोर शासक था । विशाखादत कृत देविचन्द्रगुप्तम के अनुसार रामगुप्त शकों के साथ युद्ध मे बुरी तरह पराजित हुआ था । शक राजा उसकी पत्नी ध्रुवदेवी को प्राप्त करना चाहते थे । रामगुप्त ने अपनी पत्नी को शकों को सौपने का निर्णय ले चुके थे । परंतु रामगुप्त के छोटे भाई (चन्द्रगुप्त द्वितीय ) को यह फैसला पसंद नहीं आया और वह स्त्री के वेश मे शक राजा का वध कर दिया । फिर अपने भाई की हत्या कर गद्दी पर बैठ गया । राजशेखर की काव्य मीमांसा के एस घटना का उल्लेख मिलता है ।

चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य )380 – 412 ईसा

यह समुन्द्रगुप्त और दत्तदेवी की संतान थी ।इन्हीं के शासन काल मे गुप्त साम्राज्य अपने चरम पर था । इन्हें सांची के अभिलेख मे देवराज एवम् प्रवरसेन के अभिलेख मे देवगुप्त कहा गया है । महरोली स्तम्भ लेख मे राजा चंद्र का वर्णन है जिनकी पहचान चन्द्रगुप्त द्वितीय से की गई है । इन्होंने वैवाहिक संबंध और विजय दोनों के सहारे अपने साम्राज्य की सीमा बढाई। इन्होंने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकटक शासक रुद्र सेन द्वितीय से करवाया । वाकाटक की मदद से चन्द्रगुप्त दितीय ने शकों को पराजित किया । इसी उपलक्ष से इनहोने चांदी के सिक्के चलवाए । इसी विजय के बाद इ नहोने विक्रमदितीय की उपाधि ली । उदयगिरी अभिलेख के अनुसार चन्द्रगुप्त का उदेश्य पूरी पृथ्वी को जितना था । उसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी। फिर भी इनहोने उज्जैन मे दूसरी राजधानी बनवाई । चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव थे। इन्होंने परमभागवत की उपाधि ली ।

कालिदासअमर सिंहशंकु
धन्वंतरिक्षपणकवेताल भट्ट
वररुचीघटकप्ररवाराहमिहिर
चन्द्रगुप्त द्वितीय के नौ रत्न

कुमारगुप्त प्रथम (415-455)ईसा

मंदसौर अभिलेख मे कुमारगुप्त के शासन का वर्णन है । सबसे अधिक अभिलेख (18) कुमारगुप्त के ही मिले है । तुमुन अभिलेख मे इनहे शरदकालीन सूर्य भी कहा गया है । नालंदा विश्वविधालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम के द्वारा ही की गई थी। जिसे बखितयार खिलजी ने नष्ट कर दिया था । इनका शासन 40 बरसों का था। जिसने गुप्त साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाया।

शासकउपाधियाँ
श्रीगुप्तआदिराज,महाराज
घटोत्कचमहाराज,
चन्द्रगुप्त प्रथममहाराजाधिराज
समुन्द्रगुप्तपराक्रमांक
चन्द्रगुप्त दितीयविक्रमादितीय
कुमारगुप्तमहेन्द्रादितीय,शक्रादित्य
स्कंदगुप्तक्रमादित्य
गुप्त शासकों द्वारा ग्रहण उपाधियाँ

स्कन्दगुप्त (455-467 ईसा )

इन्होंने क्रमादित्य की उपधि धारण की थी। जिसकी जानकारी जूनागढ अभिलेख से पता चलता है इनहोने ही सुदर्शन झील का पुनः निर्माण करवाया था । भितरी अभिलेख से पता चलता है की हूणों का आक्रमण हुआ था । तोरमण,मिहिरकुल जैसे हूणों राजाओ की जानकारी मिलती है । इनहोने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया था । विष्णुगुप्त इस वंश के अंतिम शासक थे ।