बारह महीनों मे एक महिना आषाढ़ के बाद तथा भाद्रपद के पहले आता है सावन कहलाता है
बारह महीनों मे एक महिना आषाढ़ के बाद तथा भाद्रपद के पहले आता है सावन कहलाता है
शास्त्रों के अनुसार कि सावन महीने में भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं। तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव को उठाना पड़ता है चुकी यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, एसलीए इसे चौमास भी कहते है ।
एस समय शिवजी, तब रूद्र रूप मे आते है सृष्टि को संभालने के लिय । भगवान रूद्र प्रसन्न भी बहुत जल्दी होते हैं और क्रोधित भी उनको उतने ही जल्दी होते है। इसलिए सावन के महीने में भगवान शिव के रुद्राभिषेक का परंपरा तथा महत्व बताया गया है। एसलीए सावन मे पूजा का विशेष महत्व है । जिससे वह प्रसन्न रहें और भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखें।
शास्त्रों की माने तो जो व्यक्ति सावन के सोमवार का व्रत रखता है उसे पूरी निष्ठा से व्रत रखना चाहिए। कभी भी बीच में छोड़कर व्रत नहीं रखने चाहिए । श्रावण मास में मांस-मदिरा का सेवन तो दूर इन्हें हाथ लगाना भी एक बड़ी भूल माना गया है।
शास्त्रों की माने तो जो व्यक्ति सावन के सोमवार का व्रत रखता है उसे पूरी निष्ठा से व्रत रखना चाहिए। कभी भी बीच में छोड़कर व्रत नहीं रखने चाहिए । श्रावण मास में मांस-मदिरा का सेवन तो दूर इन्हें हाथ लगाना भी एक बड़ी भूल माना गया है।
सावन महिना शिवजी और मां पार्वती को भी समर्पित है। एसलीए माहिलाए सावन का व्रत पूरे भक्तिभाव से करती है । भक्त सावन महीने में सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ महादेव का व्रत धारण करता है,