अयोध्या का इतिहास – 500 सालो की संघर्ष गाथा 

अयोध्या का इतिहास – 500 सालो की संघर्ष गाथा 

अयोध्या का इतिहास – 500 सालो की संघर्ष गाथा -प्रभु श्री राम के मंदिर का इंतजार 500 सालों से किया जा रहा था । एक ऐसा दिन जिसके इंतजार में न जाने कितनी पीढ़ियां खत्म होगी । पिछले कई शताब्दी में कई सारे लोग थे जिनका सपना था कि वह अयोध्या में राम मंदिर देखें, 18 वीं शताब्दी में लोगों ने  पहली बार राम मंदिर का हक पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था ।  प्रभु श्री राम का मंदिर जिसे आज से 492 साल पहले 1528 में रहस्य बाबर ने गिरवा दिया था । 

अयोध्या का इतिहास

आज के इस बॉलग मे हम राम मंदिर के पूरे 500 साल के संघर्ष की कहानी को जानेगे  ताकि आप यह जान सके की लड़ाई कितनी पुरानी है । बाबर ने 1528 में अयोध्या मे राम मंदिर को गिरा कर वहा बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया । 

पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व  अयोध्या मे राम सीता के कई मंदिरों थे जिनकी हालत खराब होने लगी इस दौरान उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या आए और उन्होंने यहां के कई मंदिरों को फिर से ठीक करवाया । फिर 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ाई शुरू हुई । 1528 तक बाबर की सेना अयोध्या पहुचती है और बाबर के कहने पर उनके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर को तुड़वाकर उसकी जगह पर मस्जिद बनवा दिया । 

बाद में इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा। इसी तरह 150 साल बीत जाते है । फिर साल 1717 यानि बाबरी मस्जिद बनने की तकरीबन 190 साल बाद जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय कोशिश करते हैं की मस्जिद के आस पास की जगह उन्हे मिल जाए । लेकिन उन्हे नहीं मिल पाती इसलिए वह मस्जिद के पास ही एक राम चबूतरा बनवा देते हैं ताकि हिंदू वहां पर पूजा कर पाए । 

इसे भी पढे – भारत का प्राचीन इतिहास (क्लिक करे )

यूरोपीय ज्योग्राफर जोसेफ स्टेफन  जो खुद 1766 से 1771 के बीच इसी जगह थे । उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में राम चबूतरा होने की बात की थी । 1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया कि बाबर ने 1528 में राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी । माना जाता है कि फैजाबाद के अंग्रेज अधिकारियों ने भी मस्जिद में हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियों के मिलने का जिक्र अपनी रिपोर्ट में किया था । पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब अयोध्या री  विजेटेड में इस वाक्य का जिक्र भी किया।  इसके बाद 1838 में एक ब्रिटिश marntigo मेरी मार्टिन  रिपोर्ट दी की मस्जिद में जो पिलर्स है वह मंदिर से ही लिए गए।  1855 तक हिंदू और मुसलमान एक ही जगह मुसलमानों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत मिली । ऐसे में हिंदुओं ने मस्जिद के मुख्य गुंबद से 150 फीट दूर बने राम चबूतरे पर पूजा करनी शुरू किया । 

 इसके बाद 1885 मे ये मामला अदालत मे पहुचा । जिसमे निर्मोही अखाड़ा के मंहत ने रघुवर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की गुहार लगाई अदालत मे लेकिन उनकी अर्जी नहीं मानी गई । इसके बाद 1934 में अयोध्या में  बाबरी मस्जिद की दीवार टूट जाती है जिसे बाद में फिर बनवा दिया जाता है मगर वहां नमाज बंद हो जाती है।  

1949 में कुछ ऐसा हुआ जिसने बहुत सारे लोगों को हैरानी मे डाल दिया । मंदिर के अंदर से घंटिया की आवाज आने लगती है पता लगता है कि वहां श्री राम जी की पूजा हो रही है हिंदू पक्ष दावा करता है कि बीते रात अचानक मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति प्रकट हो गई। 

950 में हिंदू महासभा के वकील ने जिला अदालत में रामलला  की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की इसके बाद अगले 35 सालों तक हिंदू पक्ष अदालत के चक्कर काटते रहते है मगर कुछ होता नहीं। 

 फिर 1980 में बीजेपी के सामने आने के बाद राम मंदिर आंदोलन को लेकर चीज बदलने लगती है । 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम करके यह लोग राम मंदिर के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या तक रथ यात्रा निकालने का भी कार्यक्रम बनाते हैं । 1992  मे 2 लाख कर सेवक अयोध्या पहुंच जाते हैं उसे वक्त कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे और पी सी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे ।

6 दिसंबर 1992 को 1:55 पर पहले एक गुंबद गिराया गया फिर 3:00 बजे के करीब दूसरा गुंबद गिरायागया 5:00 बजे तक तीसरा गुंबद गिरा दिया जाता है। 90 के दशक मे बीजेपी केंद्र मे आने के बाद आर्कलाजीकल सर्वे आफ इंडिया के अनुसार ये कहा गया  कि जिस जगह विवादित ढांचा था उसके नीचे अवशेषों से यह साबित होता है कि वहां पहले हिंदू मंदिर  थे ।

यह एक पहला साइंटिफिक फैक्ट था ।  जिसके बाद अदालत ने  राम जन्मभूमि ट्रस्ट,निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वफ्ट बोर्ड तीनों मे जमीन बाट दिया । मगर तीनों ही पक्ष ने इस फैसला को नहीं माना । 7 सालों तक इसमें कोई सुनवाई नहीं होती है और कोर्ट सभी दस्तावेज को अंग्रेजी मे ट्रांसलेशन करने को कहता है । फिर साल 9 नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाती है कि विवादित जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को दे दी जाए। फिर5 फरवरी  2020 को ट्रस्ट का  गठन होता है और मंदिर निर्माण शुरू होता है।