दहेज प्रथा – एक अभिशाप -अनुच्छेद लेखन class 10
दहेज प्रथा -एक अभिशाप – संकेत बिंदु – सामाजिक समस्याएं, रोकथाम के उपाय,युवकों का कर्तव्य,
उत्तर -दहेज एक छोटा सा शब्द है किंतु बहुत ही कष्टदाई है क्योंकि यह एक कुप्रथा का रूप धारण कर चुका है। यह फूलों के साथ जुड़ा हुआ वह कटा है जो कन्या के विवाह पर माता-पिता द्वारा उसे दिया जाने वाला धन को दहेज कहते हैं।
प्रारंभ में दहेज कन्या के परिवार द्वारा स्वेच्छा से अपनी बेटी को दिया जाता था। किंतु दुर्भाग्य वंश आज इसका विकृत रूप ही समझ में दिखाई देता है आज तो दहेज प्रेम से देने की वस्तु नहीं रहा बल्कि अधिकार पूर्ण लेने की वस्तु बन गया है। दहेज प्रथा का मूल कारण यह है की कन्या पति के घर जाकर गृह लक्ष्मी बनेगी इसके लिए उसे खाली हाथ भेजना उचित नहीं है।
पर आज तो विवाह एक सौदा बनकर रह गया है जिसमें वर्ग पक्ष वाले अपने पुत्र की योग्यता के अनुसार कीमत तय करते हैं और मनचाहा रुपया वसूलते हैं। इसलिए दहेज की प्रथा आज भयंकर कलंक और अभिशाप बन कर रह गई है। इसलिए तो दहेज के अभाव में सुंदर सुशील गुणवती स शिक्षित कन्याओं का जीवन नर्क बन जाता है।
इसे भी जानें – शारीरिक श्रम,आधुनिक जीवन
इस भयंकर प्रथा के उन्मूलन के लिए लड़की और उसके माता-पिता को कानून की भी सहायता लेनी चाहिए कि दहेज ना दो ना लो । भावी लड़के लड़कियां को मिलकर इसे सुलझाएं। वास्तव में दहेज जैसी लानत को जड़ से खत्म करने के लिए युवकों को एक सशक्त भूमिका निभाने की जरूरत है।
उन्हें समाज को यह संदेश देने की आवश्यकता है कि वह दहेज की लालसा नहीं रखते हैं और वह ऐसा जीवनसाथी चाहते हैं जो पत्नी, प्रेयसी और एक मित्र के रूप में हर कदम पर उसका साथ दे। सरकार भी विभिन्न कार्यों का कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में जागरुकता पैदा करें क्योंकि आज के युवा वर्ग को जैसा हम दिखाएंगे सिखाएंगे पढ़ाएंगे वह वैसे ही समाज का निर्माण करेंगे।