पाषाण काल -पाषाण युग के साक्ष्य और प्रमाण!
पाषाण काल आज हम लोग भारतीय इतिहास की एकदम शुरुआत से जानकारी प्राप्त करेंगे। यह वह समय था,जब मानव आदिम मानव था। फिर धीरे-धीरे समय के साथ ये ज्ञानी मानव की तरफ बढ़ रहे थे । इन सब के बारे में सारी जानकारी पूरातत्व स्रोतों के आधार पर ही हम लोग करते हैं। भारत में पुरातत्व विभाग का सर्वप्रथम शोध रॉबर्ट ब्रूसफुट ने किया। जबकि वैश्विक स्तर पर जगेनस प्रामसन द्वारा हुआ। प्राचीन इतिहास को पाषाण काल,कांस्य युग और लौह युग में बांटा गया है। भारत ने पुरातत्व विभाग का जनक अलेक्जेंडर कनिधम को माना जाता है। शोध के आधार पर भारतीय इतिहास के मुख्य रूप में तीन भागों में बांटते हैं 1
भारतीय इतिहास के तीन भाग-
- प्रागैतिहासिक काल
- आर्धऐतिहासिक काल
- ऐतिहासिक काल –
- प्रागैतिहासिक काल– प्रागैतिहासिक काल का मुख्य अध्ययन खुदाई से प्राप्त पुरातात्तिवक अवशेषों से होता है। इस समय का किसी भी प्रकार का लिखित प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है। जिससे स्पष्ट हुआ की उस समय के मानव को पढ़ने लिखने का ज्ञान प्राप्त नहीं था।
- आर्द्धऐतिहासिक काल – इस काल में लिखित साक्ष्य तो अवश्य मिले है। किन्तु वह अभी पढ़े नहीं जा सके है। इसलिए उस समय की सारी जानकारी के लिए वस्तु,मोहरे आदि के अध्ययन पर निर्भर रहना पड़ा। जिसका उदाहरण सिंधु घाटी सभ्यता है।
- ऐतिहासिक काल -मानव इतिहास का यह वह काल है जिसमें लिखित साक्ष्य भी हैं। और जिन्हें पढ़ा भी जा सकता है। इस काल की जानकारियाँ उपयोग में की जाने वाली वस्तु एवं लिखित साक्ष्य दोनों में ही हुए हैं। वैदिक काल इसी काल की श्रेणी में आते हैं।
पाषाण काल-प्रागैतिहासिक काल
इसमें मुख्य रूप से प्रागैतिहासिक काल पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे क्योंकि यह क्रमिक विकास का क्रमिक अध्ययन है। अतः इस काल की अवधि भी काफी लम्बी है। अतः अध्ययन की सुविधाओं के लिए भी इसे मुख्य रूप से तीन भागों में बांटते हैं। 1 पुरापाषाण काल 2 मध्य पाषाण काल तथा 3 नवपाषाण काल। इन सभी को संक्रमण काल भी कहते हैं। क्योंकि कुछ जगहों पर विकास की गति धीमी थी। तो वह मध्य पाषाण काल माना गया है। उसी समय की अवधि में कहीं-कहीं पर विकास गति बहुत तेज थी। जिस वजह से नवपाषाण काल माना गया है।
आधार | पुरापाषाण काल | मध्यपाषाण काल | नवपाषाण काल |
काल | 25 लाख bc से 10 हजार bc | 10 हजार bc से 4 हजार bc | 10 हजार bc से 1000 bc |
चरण | पूर्व पाषाण काल,मध्य पुरापाषाण काल ,उच्चपुरापाषाण काल | ||
लक्षण | आखेटक (शिकारी )खाद्य संग्राहक | आखेटक (शिकारी )खाद्य संग्राहक,पशु पालन की शुरुआत | खाद उत्पादक,कृषि,पशुपालन,की शुरुआतस्थाई निवास कुत्ते को सर्वप्रथम पालतू बनाया |
प्रागैतिहासिक काल –
मानव सभ्यता का एक वह काल है। जब मानव ही पूर्ण रूप से मानव नहीं बना था। अर्थात यह वह काल है। जिसके मानव आदिम मानव से ज्ञानी मानव तक बनने का सफर तय किया गया। यह कुछ वर्षों में नहीं बल्कि कई लाख वर्षों के समय में पूरा हुआ। इस काल में मानव को खुद की ही पहचान नहीं थी। वह जानवरों की तरह पेड़ों पर रहता था। धीरे-धीरे इनकी आवश्यकताएं बढ़ती गई। और मानव छोटी-छोटी आवश्यकता पूर्ति करने के लिए विकास की ओर बढ़ते चले गए। आज हम लोग मानव विकास की बढ़ने की प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे। मानव विकास की इस प्रक्रिया में पुरातात्विक स्रोत एवं लिखित साक्ष्य मूलभूत आधार प्रदान करते हैं।
महत्वपूर्ण स्थल खोज और औजार
आधार | पुरापाषाण काल | मध्य पाषाण काल | नव पाषाण काल |
औजार | इस काल के औजार बहुत बड़े हुआ करते थे औजार मुखयतः क्वैर्ट,शल्य,ब्लेड आदि के हुआ करते थे। | माइकोलिथ (सूझम पथ्थर )इस काल में बनाए जाने लगे। चोपानीमंडो (up )से मृदभांड के साक्ष्य मिले है। | स्लेट के औजार बनाए गए, सर्वपर्थम कुल्हाड़ी को औजार के रूप में इस्तमाल किया गया। गुफाकराल (कश्मीर )से कृर्षि के प्रमाण मिले है। |
महत्वपूर्ण स्थल | अतिरमपक्कम (तमिलनाडु ) से मानव खोपडी के प्रमाण मिले है। भीमबेटका से आदि मानव के चित्रकारी के प्रमाण मिले है। | चोपानीमंडो (up )से मृदभांड के साझय मिले है। बागौर (राजस्थान ) आदमगढ़ (mp )से पशुपालन के प्रमाण मिले है। | बिहार के चिरांद जिले से पथ्थर और हडडियो के औजार मिले। कोल्डिहवा से चावल के प्रमाण मिले। बुर्जहोम (कश्मीर ) गर्तनाक से मालिक के साथ कुत्ते के शव के प्रमाण मिले है। |
खोज | आग का अविष्कार अकस्मात धटना से हुआ ,परन्तु ये लोग आग के इस्तमाल से अपरिचित थे | इस काल में लोग आग का व्यवहारिक प्रयोग करने लगे थे। | चाक और पहिया का अविष्कार इसी काल में हुआ था। |
प्लाइस्टोसिन या हिमयुग
प्रागैतिहासिक काल इसे प्रस्तरयुग भी कहा जाता है । इसकी शुरुआत प्लाइस्टोसिन या हिमयुग से हुआ। यह वह युग था। जब मानव ख़ानाबदोश जीवन जीता था। जो मुख्यतः कच्चा माँस तथा फल फूल पर जीवन निर्वाह करता था। यह संभवतः Nigoro जाति से सम्बन्ध रखते थे । इसी काल के क्रम के आधार पर इसे तीन मुख्य भागों में बाटते हैं । पुरापाषाण काल, मध्य पाषाण काल, नवपाषाण काल ।
पुरा पाषाण काल के स्मरणीय तथ्य
यह मानव विकास की प्रथम सीढ़ी मानी जाती है। इसका काल निर्धारण के संबंध में बहुत मतभेद देखे गए हैं । कुछ विद्वान ने इस काल की अवधि 25 लाख ईसा पूर्व से 10 लाख ईसा पूर्व माना है । इस समय जीवन का मुख्य आधार पत्थर ही था । चुकी मानव को जब अपनी भूख मिटाने के कुछ समझ नहीं आया । तब यह लोग जानवरों का शिकार करने के लिए पथ्थरों को औजार के रूप में इस्तेमाल करते करने लगे । इसी कारण इस काल को पूरा पाषाण के नाम से जाना जाने लगा । पत्थरों के औजार के रूप मे इस्तमाल करने के तरीके समय के साथ बदलते गए । अतः औजारों के विकसित होती सवरूप के आधार पर इस काल को भी तीन भागों में विभक्त किया गया है ।
- निम्न पुरापाषाण काल,
- मध्य पुरापाषाण काल,
- उच्च पुरापाषाण काल ।
निम्न पाषाण काल–
इस काल मे मानव शिकारी के रूप में था। उसे कृषि पशुपालन भाषा इत्यादि का कोई ज्ञान नहीं था। उसे जब भी भूख लगती तो वह शिकार करता अथवा कंदमूल, फल कच्चा ही खा जाता था । इस समय बड़े-बड़े बेडोल पत्थरों का इस्तेमाल औजार के रूप में करता था। बदलते समय के साथ इसके औजार छोटे-छोटे होने लगे । यह लोग मध्य पुरापाषाण काल में पहुंचे कुछ समय के बाद इन लोगों के हथियार सुडौल और धारदार भी होने लगे ।
अब यह लोग बड़ी आसानी से और जल्दी से शिकार करने में माहिर हो गए। यह काल उच्च पुरापाषाण काल कहलाया । यद्यपि इस समय आग की जानकारी इन लोगों को हो गई थी । तथापि यह लोग इसकी उपयोगिता से अभी अनजान थे।अलेक्जेंडर कनिंघम जिनका कार्यकाल भारत के बंगाल क्षेत्र में 1814 से 1893 ईसवी के मध्य था । यह ब्रिटिश सेना अधिकारी के रूप में इंजीनियर के कार्यों की देखरेख के लिए तैनात किए गए थे। इन्हीं को भारतीय पुरातत्व का जनक कहा गया है।
मध्य पाषाण काल के स्मरणीय तथ्य
यह काल मानव विकास का दूसरा चरणदूसरा चरण माना जाता है । और इसका काल लगभग 10,000 ईसा पूर्व से 9000 ईसा पूर्व माना गया है । भारत में इस काल की जानकारी सर्वप्रथम 1807 ईस्वी हुई। सी. एल. कलाईल ने क्षेत्र में लघु पाषाणोकरण की खोज से प्राप्त हुई। फलकों की अधिकता के कारण इसे फलक पाषाण काल भी कहा गया है। इस समय काटरजाईट के औजार प्राप्त किए गए है । भारत मे मानव अस्थि पंजर सर्वप्रथम मध्य पाषाण काल से ही प्राप्त हुए हैं । अतः पशुपालन की शुरुआत हो गई। आजमगढ़ होशंगाबाद मध्य प्रदेश तथा बागोर राजस्थान से पशुपालन के साक्ष्य से मिले हैं । चोपानीमांडू यूपी से मृदभांड के सबूत मिले हैं।
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नवपाषाण काल
नव पाषाण काल और मध्य पाषाण काल को संक्रमक काल भी कहा जाता है । अर्थात वह समय है जब एक ही समय में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग काल चल रहे थे। कालों का निर्धारण मानव विकास की गति पर निर्भर रही थी । जिन जगहों पर मानव विकास की गति तीव्र थी । वहां नवपाषाण काल कहलाया और जहां पर विकास गति धीमी थी वह मध्य पाषाण काल कहलाया। अतः यह काल भी लगभग 10,000 ईसा पूर्व से एक हजार ईसा पूर्व तक माना गया है।
यहा मानव का विकास अत्यंत तेजी से हुआ । अतः मानव अब सिर्फ शिकारी ही नहीं बल्कि पशुपालक,कुषक भी हो गए थे । अब इसे भली भाति समझ आ चुका था । कि कैसे बीज से पौधा और पौधे से खाने योग्य अनाज मिलते हैं । अब वह खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक में बदल गया था । अब वह कच्चा भोजन की जगह पका भोजन खाने लगा। जहां-तहां घूमने की जगह एक जगह अस्थाई रूप में बसने लगा। उसकी भाषा का विकास हुआ । पेड़ की छाल जानवरों की खाल पतो इत्यादि का वस्त्र धारण करने लगा ।
क्रन्ति का काल
आग के उपयोग से परिचित हुआ ।सार्वजनिक महत्वपूर्ण चाक एवं पहिया की खोज हुई। इसी वजह से गार्डन चाइल्ड ने इस युग को क्रन्ति का काल कहा इसे मानव विकास की तीसरी और अंतिम कड़ी मानी गई। दक्षिण भारत की गोदावरी नदी और पूर्वी भारत की गंगा, गंडक और घाघरा नदी के डेल्टा में मानव बस्ती बनाकर रहने लगा। मनुष्य ने सर्वप्रथम कुत्ते को पालतू बनाया और कुल्हारी सर्वप्रथम हथियार था ।
उत्तर पश्चिम मेहरगढ़ पाकिस्तान, बुरज़्होमे गुफकराल कश्मीर, कोलडीहवा और मगड़ा उत्तर प्रदेश, चिराद बिहार सिवान ,हल्लूर और प्रथम पल्ली आंध्र प्रदेश में गेहूं चावल ज्वार बाजरा दलहन का काला चना, हरा चना जैसी फसलों के साक्ष्य मिले हैं । मेहरगढ़ आयताकार कथा चौकोर घाटों के अवशेष मिले हैं। जल सूर्य आकाश गाय पृथ्वी तथा सर्प के पूजा के प्रमाण भी मिले हैं। रंगीन चित्रकारी युक्त मिट्टी के बर्तन भी कई जगहों से प्राप्त हुए हैं
साक्ष्य
नवीनतम खोज के पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का प्राचीनतम कृषि साक्ष्य मेहरगढ़ पाकिस्तान के बलूचिस्तान से प्राप्त हुए हैं। यहाँ 7000 ईसा पूर्व गेहूं के साक्ष्य मिले हैं। नवीनतम खोज के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप से प्राचीनतम कृषि साक्ष्य उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के लहू देव से मिले हैं। अतः सबसे पहले उगाई जाने वाली फसल गेहू थी। दक्षिण भारत में शवों को दफनाने की विभिन्न प्रकार की परंपराएं जैसे समाधि पीट सर्किल, केन सर्किल डोलमेन,अनप्रेला स्टोन,कन्दराए देखी गई। बुर्जहोम(कश्मीर )से मानव कंकाल के साथ कुत्ते के कंकाल के भी अवशेष मिले है।
हड्डी एवं हिरण के सींग के उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। इसके पश्चात चिराद बिहार सिवान में भी नव पाषाण के उपकरण प्राप्त हुए हैं। कश्मीर के गर्तवास के भी प्रमाण प्राप्त हुए हैं। गुफाकराल से कृषि एवं पशुपालन के साक्ष्य मिले हैं ।दक्षिण भारत में मृतकों को दफनाने के स्थल के रूप में बृहद पाषाण स्मारकों की पहचान की गई है । हल्से राख के किले के अतिरिक्त पशुपालन समुदाय में मौसमी शिविरों के जले हुए अवशेष मिले हैं।इस तरह हम देखते हैं समय की धारा में बहते हुए मानव विकास किस तरह विकसित होता गया और निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर होता ही जा रहा है।