Vedic kaal -period of 4 sublime vedic literature of India

Vedic Kaal
Vedic Kaal

Vedic kaal to uttar vedic kaal-ऋग्वैदिक काल से उतर वैदिक काल तक!

वेदों से Vedic kaal की जानकारी प्राप्त होती है। इस साल में ही वैदिक साहित्य का जन्म हुआ। जिस के संस्थापक आर्यों को माना जाता है। आर्य कहने का तात्पर्य श्रेष्ठ,अभिजात्य से है।

आर्य संस्कृत भाषा का शब्द है। आर्य द्वारा स्थापित संस्कृति एक ग्रामीण संस्कृति थी। चुकि आर्य को लिखने का ज्ञान ना होने के कारण यह वेद श्रवण परंपरा के आधार से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँच पाता था। अतः वेदों को श्रुति से भी संबोधित करते हैं। आगे चलकर वैदिक साहित्य को दो भागों में बांटा गया।

  • श्रुति साहित्य -(श्रवण साहित्य)- श्रुति साहित्य में वेदों के अलावा ब्राह्मण साहित्य (जो सबसे पुराना माना जाता है )और आरण्य और उपनिषद आते हैं। बहुत बाद में इन सभी को श्रवण परंपरा के माध्यम से इनका साहित्य में संकलन किया गया। जो बहुत ही अद्भुत है। वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन व्यास के द्वारा हुआ था। इसलिए वह वेदव्यास कहलाए।
  • स्मृति साहित्य– मनुष्य द्वारा रचित है। इसमें वेदांग सूत्र और ग्रंथ समाहित है।

Vedic kaal वेदों की संख्या- 1 ऋग्वेद 2 सामवेद 3 यजुर्वेद 4 अर्थवेद

ऋग्वेद –

  • ऋग्वेद सबसे पुराना वेद ग्रंथ है।
  • इसमें कुल 10 मंडल है तथा कुल 10462 मंत्र है।
  • ऋग्वेद में पुरुष देवताओं की प्रधानता है।
  • इंद्र का वर्णन सबसे अधिक 250 बार किया गया है।
  • अग्नि को 200 बार लिखा गया है।
  • ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण होतृ या होता द्वारा किया जाता है
  • कृषि संबंधित जानकारी चौथे मंडल में है।
  • दूसरे से सातवें मंडल को प्राचीन मंडल या फिर वंश मंडल भी कहा जाता है।
  • गायत्री मंत्र का वर्णन तीसरे मंडल में है जिसके रचिता विश्वामित्र थे।
  • कृषि संबंधित जानकारी चौथे मंडल में है
  • सातवां मंडल वरुण को समर्पित है।
  • नवे मंडल के 144 सूत्र को में सोम का वर्णन है।
  • दसवें मंडल के पुरुष सूतक में चारों वर्ण पुरोहित, राजन्य, वैश्य और शूद्र का वर्णन है
  • विदुषी महिलाओ ने लोपामुद्रा, सिक्ता,अपाला घोषा आदि की रचना की है।
  • ऋग्वेद में इन महिलाओं को ब्रह्मवादिनी कहते हैं
  • ऐतरेय एवं कोशीतकी ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ है।
  • ब्राह्मण में जनपद एवं राजस्व यज्ञ का उल्लेख मिलता है
  • ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख तीन बार और गंगा का उल्लेख एक बार हुआ है।
  • सोमरस का वर्णन सर्वधिक बार किया गया है।
  • इंद्र को पुरंदर से संबोधित किया गया है।
  • आयुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद है।

सामवेद –

  • सामवेद गायी जाने वाली ऋचाओ का संगलन है । जिसे उदगाता कहते है ।
  • सात स्वरों की जानकारी सबसे पहले सामवेद से ही मिली ।
  • सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहते है ।
  • सामवेद मे मंत्रो की संख्या 1549 है ।
  • गंधर्व वेद सामवेद का उपनिषेद है ।
  • पंचवेद या ताडय सामवेद के बाह्मण वेद है ।

यजुर्वेद

  • यजुर्वेद मे अनुष्ठानों,कर्मकांडों,तथा यज्ञ संबंधी मंत्रों का संगलन है ।
  • इसमें पुरोहित को अध्वरयु कहते है ।
  • यह गध ओर पध दोनों मे रचित है ।
  • इसके दो उपभाग है । कृष्ण यजुर्वेद ओर शुक्ल यजुर्वेद ।
  • कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ ततिरीय तैतिरीय ब्राह्मण तथा शुक्ल यजुर्वेद का शतपत ब्रह्माण है ।
  • इसका उपवेद धनुवेद है ।
  • इसमें कृषि और सिचाई का उलेख है ।

अथर्ववेद-

  • अथर्ववेद अथर्वा ऋषि द्वारा रचित चौथा वेद है ।
  • इसमें विवाह,जादू टोना,तथा रोग नाशक मंत्र है ।
  • अथर्ववेद मे ही गोत्र शब्द का उलेख है ।
  • इसमें पुरोहित ब्रह्मा कहते है ।
  • सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्री कहा गया है ।
  • अथर्ववेद मे चांदी और गन्ने का उल्लेख मिलता है ।
  • इसका उपवेद अर्थवेद है ।
  • अथर्ववेद का कोई आरण्य ग्रंथ नहीं है ।
वेद पुरोहित उपवेद ब्राह्मण उपनिषद
ऋग्वेद होतृआयुर्वेदऐतरेय, कौषीतकीऐतरेय,कौषीतकी
सामवेद उद्रगातागन्धर्ववेदजैमिनीय, तांडयछानदोगयोपनिषद,जैमिनीय उपनिषद
यजुवेद अधरव्यधनुर्वेदशतपथ,तैतिरीयकठोपनिषद,वउहदारण्यक,ईशोपनिषद
अथर्ववेद-ब्रह्माअर्थवेदगोपथमुंडकोपनिषद,प्रशनोपनिषद,माणडूकयोपनिषद

Vedic kaal-आरण्यक

  • ऋषियों दवार जंगल मे की जाने वाली रचनाओ को आरण्यक कहते है ।
  • इसकी संख्या सात है । यह ज्ञान और कर्म के बीच के सेतु का काम करता है ।
  • यह दार्शनिक रहस्यों का संग्रह है ।
  • इनके नाम ब्राह्मण ग्रंथ से जुड़े है जैसे ऐतरेय,वुरहदारणय,,शतपथ,कौषीतकि, उपनिषेद
  • इसे वेदान्त भी कहते है ।
  • यह दार्शनिक चिंतन का ज्ञान है ।

उपनिषद

  • उपनिषेद की संख्या 108 है ।
  • मुंडकोपनिषद से ही सत्वमेव जयते लिया गया है ।
  • इषोपनिषद मे गीता का निष्काम कर्म का पहला विवरण मिलता है ।
  • नचिकेता -यम का संवाद कठोपनिषद मे है ।
  • वृहदारण्यक उपनिषद मे अहम -ब्रह्यरिम उलेखित है ।
  • इसमें पुनर्जनम का सिद्धांत है ।
  • श्वेतासवतर उपनिषेध मे भक्ति शब्द का उलेख मिलता है ।

वेदांग –

  • वैदिक मूलग्रंथ का अर्थ समझने के लिए वेदों के अंगभूत शास्त्रों की रचना की गई ।
  • वेदांग मे हम शिक्षा,व्याकरण,निरुक्त,छन्द और ज्योतिष की जानकारी सीखते है ।

स्मृति ग्रंथ –

  • स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत स्मृति, धर्मशास्त्र,एवं पुराण आते है।
  • यह हिन्दू धर्म ग्रंथ का कानून शास्त्र भी कहलाता है।
  • मनुस्मृति सबसे प्राचीन ग्रंथ है। मेधा तिथि,गोविंदराज,भरुचि एवं कल्लूक भट्ट,मनुस्मृति पर टिका लिखने वाले विदवान थे।
  • याज्ञवल्कय स्मृति इसमें भाष्यकार है -विज्ञानेश्वर,अपराक्र एवं विश्वरूप।
  • महाभारत यह वेदव्यास की कृति है इसमें 18 पर्व है। और इसका नाम जय सरिता था।
  • रामायण वाल्मीकि द्वारा रचित जिसमे 6000 श्लोक थे जो बढ़कर 24000 हो गए।

पुराण –

  • पुराणों की संख्या 18 है।
  • इसका संग्लन गुप्तकाल में हुआ तथा इसमें ऐतिहासिक वंशावली मिलती है।
  • मत्स्य,वायु,विष्णु ,शिव,ब्रह्माण्ड,भागवत कुछ महत्वपूर्ण पुराण है।
  • विष्णु पुराण सबसे पुराना पुराण है। जिसमे विष्णु के दस अवतार का वर्णन मिलता है।

सूत्र –

सूत्रों की संख्या 4 है।

  • 1 गृहसूत्र –इसमें जातकर्म,नामकरण ,उपनयन,विवाह आदि का विधि विधान उल्लेखित है।
  • 2 श्रोत सूत्र -इसमें यज्ञों के विधि विधान के बारे मे है ।
  • 3 धर्मसूत्र -इसमें धर्म संबंधी विभिन किर्या का वर्णन है ।
  • 4 शूलवसूत्र – जयमिति और गणित का अध्ययन यही से शुरू है ।

Vedic kaal- ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ईसा पूर्व )

आर्यों का आगमन और विस्तार :आर्यों के आगमन मे मेक्समूलर का सिद्धांत सबसे सर्वमान्य है । इसकी पुष्टि जीवविज्ञानिक ने भी की है ।आनुवांशिक सकेत के आधार पर इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकला की आर्य मध्य एशिया से भारत आए थे ।

मूलनिवास

विद्वान मूलनिवास
सम्पूर्णानन्दसप्तसैंधव प्रदेश
पेनका,हर्टजर्मनी
दयानंद सरस्वतीतिब्बत
मेक्समूलर,रीडमध्य एशिया
बालगंगाधर तिलकउतरी धुरव
मूलनिवास

ऋग्वैदिक नदियों का वर्णन

प्राचीन नाम वर्तमान नाम
सिंधुसिंधु
अरिकनीचिनाव
शतुदरीसतलज
विपाशाव्यास
वितस्ताझेलम
सरस्वती /दुर्ष्टीवतिघग्घर
परुषणीरावी
ऋग्वैदिक नदियों के नाम
  • सिंधु नदी आर्यों की सबसे महत्वपूर्ण नदी है । इसे हिरण्यानी भी कहा गया है ।
  • ऋग्वेद मे सरस्वती नदी को नदीतमा कहा गया है ।
  • सप्त सिंधु प्रदेश -आर्य सर्वप्रथम इसी प्रदेश मे आकर बसे थे ।
  • मध्य प्रदेश -हिमालय और विध्याचल के बीच का प्रदेश ।
  • ब्रह्माऋषि देश -गंगा यमुना और उसके नजदीकी क्षेत्र ।
  • गंडक को सदानीरा के नाम से जाना जाता है ।
  • नर्मदा नदी को रेवेतरा नाम से जाना जाता है ।
  • ऋग्वेद मे मरुस्थल को धन्व से संबोधित किया गया है ।
  • समुन्द्र को एक बडे जलराशि से संबोधित किया गया है ।

जनजातीय संघर्ष

  • आर्यों का संधर्ष स्थानीय जन जाति जैसे -दास,दस्यु से हुआ ।
  • परंपरा के अनुसार आर्यों के पाँच कबीले थे । जिन्हे पंचजन कहा जाता था ।
  • भरत और त्रितसू आर्यों के शासक वंश थे ।
  • भरतवंश और दश राजाओ के बीच दशराज्ञ युद्ध हुआ था । जिसका वर्णन ऋग्वेद मे है ।
  • इस युद्ध मे आर्यों के राजा सुदास थे तथा अनायो के राजा भेद थे ।
  • पराजित के राजा पुरुजन सबसे महान थे । बाद मे भरतों और पुरुओं की मित्रता से कुरु वंश की स्थापना हुई ।

इन्हें भी पढ़े –पाषाण काल :3 अविश्वसनीय युग -आदिम मानव से ज्ञानी मानव का सफर

Vedic kaal सामाजिक जीवन और आर्थिक जीवन –

ऋग्वैदिक काल मे स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी । उन्हे सभा समितियों मे भाग लेना मान्य था तथा अपने पति के साथ यज्ञों मे आहुति भी दे सकती थी । ऋग्वेद मे नियोग और विधवा विवाह का प्रचालन था । अविवाहित स्त्री को अमाजू कहते थे। वर्ण व्यवस्था कर्मों पर आधारित थी । लोग शाकाहारी और मांशहारी दोनों थे । ऋग्वैदिक काल मे सामाजिक संगठन का आधार गोत्र और जनममूलक था । समाज पितृसतात्मक था । सबसे छोटी इकाई परिवार कहलाता था । जिसका प्रधान कुलप होता है ।

ऋग्वैदिक काल एक ग्रामीण सभ्यता थी ,जहाँ पशुपालन अर्थव्यवस्था का मूल रूप था तथा कृर्षि गौण कार्य था । इस काल मे गाय का विशेष महत्व था । अनेक शब्द गाय से बना था । जैसे गोधूलि,गोहना,गोमत,गविशीट,ऋग्वेद मे कृर्षि की चर्चा 24 शोलोकों मे की गई है । इस काल मे बढ़ई,रथकार,बुनकर,चमर्कर,कुम्हार आदि का वर्णन मिलता है । अयस शब्द का प्रयोग काँसे और ताँबे के रूप मे होता था ।

राजनीतिक जीवन –

ऋग्वैदिक काल मे कबीले का प्रधान राजा कहलाता था । जिसे प्रशासन का कार्य सौंपा जाता था । अनेक कुल मिलकर ग्राम और ग्राम मिलकर विश और विश मिलकर जन का निर्माण करते थे । जन शब्द का उल्लेख 275 बार हुआ है पर जनपद शब्द का प्रयोग एक बार भी नहीं हुआ है । समिति का प्रमुख को ईशान कहते थे । कुल मे कई संगठन थे जो विभिन विभिन कामों को देखते थे । जैसे सैनिक कार्य और धार्मिक कार्य ।

इन संगठनों का नाम सभा,समिति,विदथ और गण कहलाते थे । सभा ओर समिति का कार्य बहुत प्रमुख था । क्योंकि राजा को इन्की सहमति अनिवार्य थी । बलि राज्य को दिया जाने वाला स्वैछिक कर था । राज्य की सहायता के लिए पुरोहित नियुक्त किए जाते थे । इस काल मे वशिष्ट और विश्वामित्र नामक दो पुरोहित हुआ करते थे । सैनिक,ग्रामीण,व्रजपती आदि अन्य अधिकारी भी हुआ करते थे ।

धार्मिक जीवन –

वैदिक ग्रंथों मे 33 देवता का वर्णन है । इन्द्र को सबसे प्रतापी राज्य तथा पुरंदर भी कहा जाता था । इन्द्र पर 250 सूक्त है । इनहे बादल का देवता भी कहा जाता था । जो वर्षा का भी उत्तरदाई माना जाता है । वरुण को भी काफी महत्वपूर्ण देवता माना जाता था । जो प्रकृर्ति के संतुलन के लिए जरूरी था । वरुण का उलेख 176 बार हुआ है । अग्नि भी एक महत्वपूर्ण देवता थे । जिनका वर्णन 200 बार हुआ है ।

पिता335 बारसभा8 बार
इन्द्र250 बारसमिति9 बार
अग्नि200 बाररुद्र3 बार
गाय176 बारयमुना3 बार
सोम देवता144 बारगंगा1 बार
विष्णु100 बारसिंधु नदीसार्वधिक बार
वरुण30 बारकृर्षि33 बार
विश170 बारजन275 बार
ऋग्वेद मे उलेखित शब्दों की संखया
सोमवनस्पति के देवता
मरुतआँधी के देवता
उषाप्रगति और उत्थान की देवी
पूषनपशुओ के देवता
अरण्यानीजंगल की देवी
dhoआकाश का देवता
ऋगवेदिक देवता

इन्हें भी पढ़े -Learn 1 of the best prodigious civilization – Sindhu Ghati sabhyata(in Hindi)

Vedic kaal उतर वैदिक काल (1000 -600 ईसा पूर्व )-सामाजिक संगठन

इस काल मे आर्यों की भौगोलिक विस्तार उतर मे हिमालय,दक्षिण मे विंध्यपर्वतमला,पशिचम मे अफगानिस्तान और पूर्व मे उतरी बिहार तक था । इस काल मे समाज चार भागों मे विभक्त था । ब्राह्मण,क्षत्रिय,वेश्य,शूद्र । ऋग्वैदिक काल मे वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित था । परंतु उतर वैदिक काल मे वर्ण व्यवस्था जन्म पर आधारित हो गया । महिलाओ की स्थति मे भी बहुत गिरावट आ गई ।

अथवर्वेद मे कन्या के जन्म की निन्दा की है । वही एतरेय ब्रह्माण मे कन्या को चिंता का कारण बताया गया है ,वही शतपत ब्रह्माण मे कन्या को पत्नी को अर्धागनी बताया गया है । स्त्रियों को सभा मे भाग लेना बंद कर दिया गया तथा जो स्त्री पतिव्रता नहीं रह जाती थी उनके किए वरुण प्रभास सम्पन किया जाता था ।

Vedic kaal आर्थिक जीवन और राजनैतिक जीवन –

इस काल मे अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत्र कृषि था । इस काल मे कई प्रकार के फसलों का प्रयोग होने लगा । जैसे -चावल,उरद जो,गेहू आदि ।उतर वैदिक काल मे ही लोहे की जानकारी हुई जिससे कृषि सरल हो गई । इसी काल मे ताँबा भी अपने सवरूप मे आया ।1000 ईसा पूर्व मे कर्नाटक के धारवाड़ से लोहा का अवशेष मिल था । स्थाई जीवन की ओर लोग मुड़ने लगे थे ।

उतर वैदिक काल मे राजकीय प्रभुत्व सामने आया । विदथ समाप्त हो गया । इस काल मे भरत व पुरू ने मिलकर कुरु जनपद तथा तुवर्स व किरवी ने पंचाल जनपद की स्थापना की । उत्तर वैदिक राजा को विराट,सम्राट,भोज,स्वराट आदि नामों से संबोधित किया जाने लगा । राजा का पद आनुवंशिक बन गया राजा का प्रभाव उनके यज्ञों द्वारा बढ़ने लगा ।

धार्मिक जीवन और विवाह –

धर्म कर्मकाण्डों पर आधारित हो गया । इस काल मे भगवान शिव,विष्णु ब्रह्मा प्रमुख हो गए । इस काल मे गुहस्थों के लिए पंचमहा यज्ञ भी होने लगे । जबलोपनिषद मे चारों आश्रम का उल्लेख एक साथ मिलता है । उतर वैदिक काल मे ही षड्दर्शन का उदय हुआ ।

  • अनुलोम विवाह -इसमें पुरुष उच्च कुल का तथा स्त्री निम्न कुल की होती थी ।
  • प्रतिलोम विवाह -इसमें पुरुष निम्न कुल का तथा स्त्री उच्च कुल की होती थी ।
दर्शनप्रतिपादक
संखायाकपिल मुनि
योगपतंजलि
न्यायगोतम ऋषि
वएशेषिककनाद मुनि
पूर्व मीमांसाजेमिनी
उतर मीमांसावादरायण
रचियता

गुणसूत्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते थे ।

  • 1 ब्रह्माविवाह -यह बहुत उतम विवाह है ।
  • 2 देव विवाह -यज्ञ करने वाले ब्रह्मण से पुत्री का विवाह किया जाता था ।
  • 3 आर्य विवाह – कन्या का पिता वर पछ से गाय लेकर विवाह कर देता था ।
  • 4 प्रजापत्य विवाह – कन्या का पिता वर को वचन देता था ।
  • 5 असुर विवाह – वर से मूल्य लेकर कन्या को बेचता।
  • 6 गंधर्व विवाह -यह प्रेम विवाह था जहा अभिवाभक की अनुमति जरूरी नहीं होती थी।
  • 7 राछस विवाह – वधू का अपहरण द्वारा विवाह किया जाता था ।
  • 8 पिशाच विवाह – यह जबरदस्ती किया जाने वाला विवाह था जिसमे कन्या की रजामंदी मान्य नहीं होती थी ।
सेनानी सेनापति
ग्रामीणीगाँव का मुखिया
संग्रहिताकोषाध्यक्ष
भागदुधकर संग्रहक
सूतरथ सेना का नायक
गोविकतर्नवनपाल
आक्षवापआय -व्यय गणाध्ययक्ष
पालागलविदूषक का पूर्वज
महिषीरानी
तक्षणबढई
प्रमुख रतनी

इन्हें भी पढ़े –Top 4 source of ancient Indian history-वर्तमान भारत की जड़े!

Vedic kaal सोलह संस्कार –

उत्तर वैदिक काल में सोलह संस्कार काफी लोकप्रिय हुए थे। जैसे-

  • गर्भधान
  • पुसंवन
  • सीमांतोंनयन
  • जातकर्म
  • नामकरण
  • निष्क्रमण
  • अन्नप्राशन
  • चूड़ाकर्म
  • कर्णछेदन
  • विधाआरम्भ
  • उपनयन
  • केशान्त
  • समावर्तन
  • विवाह
  • अंत्येष्टी
  • अंत्येष्टी

उपनयन संस्कार बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार थे। यह ब्रह्मण, क्षेत्रीय, वैश्य के बच्चो में होता था।

लांगलहल
वृकबैल
उर्वराजूते हुए खेत
सीताहल से बनी नलियाँ
अवटकुआ
पर्जन्यबादल
अनसबैलगाड़ी
किनाशाहलवाहा
कृषि संबंधित शब्द