अनुच्छेद लेखन दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम!
अनुच्छेद लेखन दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम! बिंदु :- पंक्ति का अर्थ,एक लक्ष्य में सफलता संभव, दो लक्षय में दुविधा, दुविधा में शक्तियों का बंटवारा, अपना मत
अनुच्छेद लेखन दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम! उक्ति का तात्पर्य है कि दुविधा में पड़ने से कुछ नहीं मिलता है। अपितु जो पास होता है कभी-कभी उसे भी गवाने की नौबत आ जाती है। एक लक्ष्य से सफलता संभव है। मनुष्यों को अपने जीवन में सदैव एक लक्ष्य रखना चाहिए और उसे प्राप्त करने के लिए सदैव प्रत्यन -शील रहना चाहिए तभी उसे लक्ष्य की प्राप्ति संभव है।
दो लक्षण की दुविधा में आदमी एक निष्ठ होकर कर्तव्यनिष्ट नहीं रह पाता है। जो व्यक्ति कभी किसी को अपना लक्ष्य बनता है तो कभी किसी को तो वह दुविधा में फंस जाता है कि आखिर किस लक्ष्य की ओर जाना है। एक से अधिक लक्ष्य सामने होने पर वह अपना लक्ष्य निश्चित नहीं कर पता है, और प्रत्येक दिशा में प्रयत्न करता है जिससे उसकी कार्य शक्ति और विचार शक्ति दोनों का प्रभाव पड़ता है।
दुविधा से शक्तियों का बंटवारा होने का भय हमेशा बना रहता है। लक्ष्य प्राप्ति की दुविधा में वह भी असफलता रूपी नदी में डूब जाता है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि मानव एकाग्र होकर अपना एक लक्ष्य निर्धारित करके इस दिशा में बड़े तो उसे सफलता अवश्य मिलेगी और यह कहावत दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम कभी भी चरितार्थ नहीं होगी।
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