शारीरिक श्रम पर अनुच्छेद ३०० शब्दों में
शारीरिक श्रम-सांकेतिक बिंदु – श्रम और मानव जीवन, लाभ ,सुझाव
उत्तर -शारीरिक श्रम का मतलब है मनुष्य द्वारा अपने किसी विशेष प्रयोजन के लिए प्रकृति में किया जा रहा सचेत परिवर्तन। श्रम का उल्लेख निश्चित समाज के लिए उपयोगी उत्पादों को पैदा करना है जाहिर है इसके लिए उसे अपने पूर्व के अनुभव के आधार पर पहले मानसिक प्रक्रिया संपन्न करनी पड़ती है।
आवश्यकता क्या है उसकी तुष्टि के लिए क्या करना होगा इसे किस तरह करना होगा एक निश्चित योजना और क्रियाओ,गतियों का एक सुनिश्चित ढांचा दिमाग में तैयार किया जाता है तत्पश्चात उसी के अनुरूप मनुष्य प्रकृति पर कुछ निश्चित संसाधनों के द्वारा कुछ निश्चित शारीरिक क्रियाएं संपन्न करता है।
शारीरिक श्रम से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है तथा शारीरिक श्रम के द्वारा उसे धन की प्राप्ति होती है जिससे वह अपना जीवन जीविकोपार्जन आसानी से करता है। कठोर श्रम करने वाला मनुष्य सदैव उन्नति करता है ।बड़े से बड़े तेज और समर्थ व्यक्ति तनिक आलस से जीवन की दौड़ में पीछे जाते हैं किंतु श्रम करने वाले व्यक्ति दुर्बल व साधनहीन होकर भी सफलता की दौड़ में आगे निकल जाते हैं।
सुझाव- श्रम राष्ट्र की उन्नति के लिए जरूरी और अनिवार्य है। देश की उन्नति इसी पर टिकी रहती है की उस देश का नागरिक कितनी मेहनती है। मनुष्य जितना श्रम करता है,देश उतनी ही उन्नति कर लेता है। हमारे देश में कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने साम्राज्य स्थापित कर रखे हैं।
यह सब उनके श्रम का ही परिणाम है।पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने श्रम के कारण ही देश के प्रधानमंत्री बन सके। आइंस्टीन ने श्रम किया और वह विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक बन गए।
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अमेरिका, रूस, जापान तथा इंग्लैंड ने श्रम के माध्यम से ही उन्नति की है और आज विश्व के सबसे समृद्ध देश बन गए हैं। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि श्रम के बिना कुछ भी करपाना संभव नहीं है।