Bhasha-भाषा क्या है
Bhasha हमारे ब्रह्मांड के सभी जीव चाहे वह मनुष्य हो या कोई जानवर सभी एक समाज में रहना पसंद करते हैं। इसी समाज में रहकर वह अपना जीवन यापन करते है। जीवन यापन करने के लिए जीवों को कई साधनों की जरूरत पड़ती है। इन्हीं जरूरतों इन्हीं विचारों को व्यक्त करने का यह माध्यम ढूंढते हैं। वही माध्यम भाषा का रूप लेती है। अगर हम सीधे शब्दों में कहें तो-भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने भाव अपने विचारों को एक दूसरे से व्यक्त करते हैं।
भाषा के रूप
सामान्तः मनुष्य बोलकर और लिखकर अपने भाव और अपने विचारों को व्यक्त करता है तथा दुसरो के विचारों को सुनकर या फिर पढ़कर दूसरों के भाव या विचारों को ग्रहण करता है। संकेतों या चिन्हों के द्वारा भी भाव या विचार अभिव्यक्त किए जाते हैं लेकिन संकेतों की अपनी एक सीमा होती है। इसलिए इन्हें भाषा नहीं कहा जा सकता है।इसी आधार पर भाषा को दो भागो में बाटते है। १ मौखिक भाषा और २ लिखित भाषा।
- लिखित भाषा- लिखकर और पढ़कर अपने भाव अपने विचारों का आदान-प्रदान लिखित भाषा कहलाती है। लिखित भाषा अति आवश्यक है क्योंकि भाषा में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।
- मौखिक भाषा- भाषा मूल रूप से मौखिक ही होती है बोलकर और सुनकर अपने भावों और विचारों का आदान-प्रदान मौखिक भाषा कहलाती है।
Bhasha-भाषा के विविध आयाम
बोली- बोली भाषा का छोटा रूप है। यह सीमित क्षेत्रों में बोली जाती है। हमारे लोक कथाओ तथा लोकगीतों में इसकी झलक मिलती है। प्रायः देखा जाता है हर 3 किलोमीटर की दूरी पर बोली में परिवर्तन आ जाता है। हिंदी भाषा का विकास भी खड़ी बोली से हुआ था।
उपभाषा- उपभाषा का क्षेत्र बोली की तुलना में विस्तृत है। इसका साहित्य मौखिक और लिखित दोनों रूप में मिलता है। जैसे अवधि, मैथिली, ब्रज आदि बोलियों में हमारे साहित्य ग्रंथ मिलते हैं। इसलिए यह उपभाषा कहलाती है।
मातृ भाषा- हमारे घर में बोली जाने वाली भाषा मातृभाषा कहलाती है। ज्ञान का सबसे सरल माध्यम मातृ भाषा ही है। हम सबसे पहले मातृ भाषा ही सीखते है।
उपभाषाएँ | बोलियाँ |
पशिचमी हिंदी वर्ग | ब्रजभाषा,हरियाणवी,बुंदेली,कनौजी,खड़ी बोली |
पूर्वी हिंदी वर्ग | अवधी,बघेली,छत्तीसगढ़ी |
बिहारी हिंदी वर्ग | भोजपुरी,मैथली,मगही |
राजस्थानी हिंदी वर्ग /पहाड़ी हिंदी वर्ग | जयपुरी,मेवाती,मारवाड़ी,मालवी /कुमाउँनी,गढ़वाली |
राष्ट्रभाषा -भाषा जो देश के अधिकांश भागों में बोली जाती है राष्ट्रभाषा कहलाती है। Bhasha भारत की 70 प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती है। परन्तु हिंदी को अभी तक राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया है।
राजभाषा –सरकारी कार्य में प्रयोग होने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है। 14 सितम्बर 1949 को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। तब से इस दिवस को हम हिंदी दिवस के रूप में मनाते है।
भारतीय भाषाओं की सूची-असमिया,उड़िया,उर्दू,कन्नड़,कश्मीरी,कोकणीगुजराती,डोंगरी,तमिल,तेलुगू,नेपाली,पंजाबी,बांग्ला,बोडो,मणिपुरी मराठी,मलयालम,मैथिली,संथाली,संस्कृत,सिंधी,और हिंदी। भारत के संविधान के अष्टम अनुसूची में 22 भाषा को सूचीबद्ध किया गया है।
लिपि-
Bhasha -जब मानव सभ्यता विकसित होने लगी और उसका फैलाव भी बढ़ने लगा तो केवल मौखिक रूप से बात नहीं बन सकती थी। मनुष्य को अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए कुछ रचनात्मक साधन चाहिए था। इसलिए धीरे-धीरे कुछ ऐसी रेखाएं, प्रतीक चिन्ह,आकृतियाँ बनने लगी। जिससे अपने भावों को व्यक्त कर सकते थे। लगातार प्रयास लगातार परिश्रम करते करते मनुष्य ने लिपि का ज्ञान सीख लिया। इस प्रकार लिपि लिखित भाषा का आधार बनी। लिपि की परिभाषा हम इस रूप में समझ सकते हैं।
लिपि- लिखने की विधि या लिखने के तरीका को लिपि कहते हैं।
देवनागरी लिपि | हिंदी,मराठी,कश्मीरी,कोंकणी,नेपाली,संथाली,बोरो,आदि |
रोमन लिपि | अंग्रेजी,जर्मन,फ्रांसीसी |
उर्दू | फारसी |
पंजाबी | गुरुमुखी लिपि |
बांग्ला | बांग्ला लिपि |
Bhasha देवनागरी लिपि की विशेषता-
Bhasha देवनागरी लिपि में वर्णों का क्रम वैज्ञानिक और व्यवस्थित है। देवनागरी लिपि का किसी भी भाषा में अनुवाद या लिपि-अंतरण हो सकता है। हिंदी में ध्वनि के लिए अगर लिपि चिन्हों और मात्राएँ होने के कारण लेखनी शुद्धता होती है। देवनागरी लिपि की सबसे प्रमुख विशेषता है कि जैसी यह बोली जाती है ठीक वैसे ही यह लिखी भी जाती है,लेकिन फ़ारसी और रोमन लिपि में ऐसा नहीं है।
- देवनागरी में- क,प,म
- फारसी में- काफ़,पे,मीम
- रोमन में- के,पी,एम।
हिंदी भाषा का महत्व-
भारत के 10 प्रदेश को हिंदी क्षेत्र कहा जाता है। आज हिंदी देश के हर कोने में बोली जाती है तथा विदेशों में भी यह बहुत प्रख्यात है। अगर हम भारत के हिंदी प्रदेशों की बात करें तो यह निम्लिखित है
- उत्तर प्रदेश
- उत्तराखंड
- छत्तीसगढ़
- बिहार
- मध्य प्रदेश
- झारखंड
- दिल्ली
- राजस्थान
- हरियाणा
- हिमाचल प्रदेश
यू तो हिंदी पूरे भारत में बोली जाती है पर कई क्षेत्रों में जैसे -पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, अंडमान निकोबार में हिंदी द्वितीय राजभाषा के रूप में प्रचलन में है। भारत से बाहर हिंदी भी बहुत ही प्रख्यात है जैसे अफगानिस्तान,ऑस्ट्रेलिया,इंडोनेशिया,तंजानिया,त्रिनिदाद,थाईलैंड,दक्षिण अफ्रीका,नेपाल,फीजी,यमन,लीबिया,वर्मा,भूटान,मलेशिया,श्रीलंका इराक कनाडा,केन्या,गुयाना,जमैका,सिंगापुर,सूरीनाम,हॉलैंड आदि देशों में हिंदी जानने वाले अत्यधिक लोग हैं। विश्व के अनेक विद्यालयों में हिंदी के विकास के लिए निरंतर काम हो रहा है। इसलिए हिंदी अब विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा बन गई है हिंदी को विश्व भाषा भी कहने में कोई भी असमंजस नहीं होना चाहिए। अगर हम हिंदी की उत्पत्ति की बात करें तो यह इसका विकास आर्य से हुआ है।
इन्हे भी जाने –phonology
व्याकरण-
मानव निरंतर प्रगति पर अवतरित हो रहा था। क्योंकि अब मानव को भाषा का भी ज्ञान हो गया था और लिपि का भी। लेकिन समस्या यह थी कि एक व्यक्ति अगर कोई बात कहता था। तो उसको अलग अलग तरीके से समझा जाने लगा । इसलिए अनेकों असमानताएँ अनेक गलतफहमियां उत्पन्न होने लगी। अतः इस को बेहतर बनाने के लिए कुछ प्रयास किए जाने लगा। इसलिए कुछ ऐसे नियम बनाए गए की सभी भाषा को एक ही रूप को एक ही प्रकार से समझा जाए। इस के लिए व्याकरण की व्यवस्था की गई। जिससे भाषा के शुद्ध होने का नियम बनाया जाए।
व्याकरण शास्त्र है या व्याकरण वह साधन है जिसके द्वारा हम भाषा के शुद्ध रूप तथा उसका शुद्ध प्रयोग का ज्ञान सीख सकें। प्रकार व्याकरण को सही रूप से प्रस्तुत करने के लिए इससे हम तीन भागों में विभक्त करते हैं १ वर्ण विचार २ शब्द विचार तथा ३ वाक्य विचार। वर्ण विचार में हम वर्णों की आकृति उसके भेद तथा उसका उच्चारण का अध्ययन करते हैं। वही शब्द विचार में शब्दों के रूप,भेद,आदि का अध्ययन करते हैं। तथा वाक्य विचार में वाक्य के प्रकार वाक्य विग्रह,पद-परिचय, विराम चिन्ह आदि का अध्ययन करते हैं। जिसकी विस्तृत जानकारी मेरे आने वाले पोस्ट में मिलेगी, धन्यवाद।