Brahmin Empire:Revive power of sanatan dharm in Hindi
ब्राह्मण साम्राज्य – मौर्य काल के बाद Brahmin Empire की शुरुवात हुई। जिसे मौर्योत्तर काल भी कहते है। यह वह साम्राज्य है। जो मौर्य वंश में ब्राह्मण की अनदेखी के कारण उत्पन हुआ था। इस की स्थापना के पीछे कुछ कहानियाँ प्रचलित है। जैसे कहा जाता है की मौर्य काल में बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार और प्रसार हुआ। जिससे कई धर्मो में असंतुष्टि फैल गई। जब मौर्य का पतन शुरू हुआ तो उन्हीं की सेना के सेनापति ने विद्रोह शुरू कर दिया और ब्राह्मण साम्राज्य की नीव रखी ।
मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ था। चुकी इस काल तक मौर्य प्रशासन कमजोर पड़ चूका था। जिसके परिणामस्वरुप बृहद्रथ की हत्या उसी के सेना पति पुष्पमित्र ने कर दी। और ब्राह्मण साम्राज्य की नीव रख दी। जिससे वैष्णव धर्म तथा सनातन धर्म का प्रतिपादन हुआ । अन्य कारणों की बात करे तो चुकी पुरे भारतवर्ष में बौद्ध धर्म की अहिंसा और शांति के नियमों से बहुत से बाहरी आक्रमणकारियों का खतरा बढ़ने के कारण पुष्पमित्र शुंग ने सत्ता अपने हाथ में लिया और जिससे ब्राह्मण साम्राज्य का उदय हुआ। इस काल में मुख्यतः चार ब्राह्मण साम्राज्य का उदय हुआ। शुंग वंश,कण्व वंश,सातवाहन वंश और चेदि वंश। जिसकी चर्चा विस्तार पूर्वक हम इस पोस्ट में करेंगे।
Brahmin Empire shunga Empire- शुंग वंश
पुष्पमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में शुंग वंश की स्थापना की। शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था। शुंग वंश की राजधानी विदिशा में थी पुष्प मित्र ने शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना यवनों का भारत पर आक्रमण था। इस विजय के उपलक्ष में पुष्प मित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ कराए। कालिदास कृत मालिवकागिनमित्रम के अनुसार पुष्यमित्र शुंग का पौत्र अग्निमित्र का पुत्र वासुमित्र ने यवनों को परास्त किया पुष्पमित्र के पुरोहित पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्याय पर महाभाष्य की रचना की थी।
पुष्प मित्र के समय ही सांची के सपूतों का आकार दुगना कराया गया था। शुंग काल के महत्वपूर्ण स्तूप है –भरहुत, बेसननगर तथा बोधगया। शुंगकाल में संस्कृत भाषा एवं ब्राह्मण व्यवस्था का पूर्णरूतथान हुआ। इसी काल में पहला स्मृति ग्रंथ मनुस्मृति की रचना की गई। शुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था। इसकी हत्या 73 ईसा पूर्व उसके आमत्य वासुदेव ने कर दी। और कण्व राजवंश की स्थापना की।
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कण्व वंश की स्थापना
- कण्व वंश की स्थापना वासुदेव ने की थी।
- इस वंश के अंतिम शासक सुशर्मा था।
- जिसकी हत्या सातवाहन नरेश शिमुक ने कर दी।
- और सातवाहन वंश की स्थापना की।
Brahmin Empire-सातवाहन वंश
शातकर्णी -1 (27 ईसा पूर्व -17 ईसा पूर्व )
सातवाहन वंश का स्थापना शिमुक था। जिसने कण्व वंश का अंतिम शासक सूशर्मा की हत्या कर इस वंश की स्थापना की थी। इसकी राजधानी गोदावरी के तट पर प्रतिष्ठान नामक जगह (औरंगाबाद महाराष्ट्र )थी। सातवाहक वंश के कई शासक हुए जो निम्लिखित है। शातकर्णी इस वंश का एक महान शासक था। जिसने दो अश्वमेध यज्ञ तक राजसूय यज्ञ संपन्न कराये । इसने चांदी के सिक्कों पर ‘अश्व‘ की आकृति अंकित कराई । शातकर्णी प्रथम ने दक्षिणपथ के स्वामी की उपाधि धारण की थी। नानाघाट शिलालेख में शातकर्णी -1 की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है।
हाल -1 (120 ईसा – 24 ईसा )
- यह सातवाहन वंश का 17 वाँ शासक था।
- इसने प्राकृतिक ग्रंथ गाथासप्तशती की रचना की जिसमें 700 श्लोक है।
- हाल के दरबार में ही गुणाढ़य निवास करते थे।
- जिनकी वृहत्तकथा की रचना की थी।
गौतमीपुत्र शातकर्णी -1 (106 ईसा -130 ईसा )
- सातवाहन वंश का पुनरुद्धार गौतमीपुत्र के समय हुआ।
- इन्होंने क्षहरात वंश का नाश किया।
- क्योंकि उसका शत्रु नहपान इसी वंश का था।
- उसने शकों को से मालवा एवं काठियावाड़ छीन ली थी ।
- नासिक अभिलेख में गौतमीपुत्र शातकर्णी के विजय का उल्लेख है।
यज्ञश्री शातकर्णि-1 (165ईसा -194 ईसा )
- यह सातवाहन वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था।
- इन्होंने सिक्कों पर मछली, शंख और जहाज अंकित करवाया था।
- सातवाहन वंश का अंतिम शासक पुलवामी चतुर्थ था।
सातवाहन वंश के विधिवत तथ्य -सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृतिक थी। जो कि ब्रह्मी लिपि में थी। सातवाहन काल में चांदी और तांबे के सिक्कों का प्रयोग होता था। जिससे काषोपण कहा जाता था। सात वाहनों ने आर्थिक लेनदेन के लिए शीशे के सिक्कों का भी प्रयोग किया। सातवाहन शासकों ने सर्वप्रथम ब्राह्मण को भूमिदान या जागीर देने की प्रथा शुरू की। सातवाहन ने मातृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था थी।
चेदी वंश –
अशोक की मृत्यू के बाद मौर्य वंश कमजोर पड़ जाता है। जिसके कारण कलिंग में चेदी वंश का उदय होता है। जिसका राजा खारवेल मगध पर आक्रमण कर देता है और शीतलनाथ की प्रतिमा को फिर से कलिंग ले आता है। शीतलनाथ की प्रतिमा वही प्रतिमा थी जिसे कभी नंदवंश के राजा महापद्मनंद ने लाया था।
- प्रमुख वास्तुकला–
- कार्ले का चैत्य।
- अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण।
- अमरावती एवं नागार्जुनरकोंड के स्तूपों का निर्माण।