Bus ki yatra – class 8 Lesson summary NCERT बस की यात्रा का लेखक का परिचय-
- लेखक का नाम- हरिशंकर परसाई।
- जन्म -22 अगस्त 1924, जमानी,होशंगाबाद,मध्यप्रदेश ।
- कृतियाँ – भोलाराम का जीव, हंसते हैं रोते हैं, उसके दिन फिरे,दो नाकवाले लोग आदि ।
- पुरस्कार – साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिक्षा सम्मान पुरस्कार, शरद जोशी पुरस्कार सम्मान ।
- मृत्यु -10 अगस्त 1995
- विशेष- उसकी भाषा शैली में खास किस्म का अपनापन है।
Bus ki yatra की यात्रा का सारांश-
प्रस्तुत पाठ Bus ki yatra व्यंग के माध्यम से छात्र यात्रा से संबंधित विषयों को जान सकते हैं तथा यात्रा में आने वाली समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जाए यह भी जान सकते हैं। लेखक ने पुरानी बस की यात्रा के अनुभव को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत पाठ में लेखक और चार मित्र ने यह तय किया कि वह शाम 4:00 बजे की बस से सतना जाएंगे जो जबलपुर की ट्रेन में चढ़ लिया जाएगा। लेकिन शाम की बस से यात्रा करना खतरनाक था। किंतु उनके दो मित्रों को सुबह काम पर जाना था इसलिए वह यात्रा पर निकल पड़े।
जिस बस में वे सवार हुए उसे बस की स्थिति बहुत ही ख़राब थी। बस चालू होने पर इंजन की आवाज से ऐसा लग रहा था मानो बस में नहीं बल्कि इंजन में बैठे हैं।बस की सीट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई थी। पेट्रोल की टंकी में छेद हो जाने के कारण बस अंत में रुक गई।
ड्राइवर पेट्रोल को एक बाल्टी में एकत्रित कर नाली के माध्यम से इंजन में इस प्रकार भेजने लगा जिस प्रकार कोई मां अपने बच्चों को गोद में लेकर दूध पिलाती है। बस की रफ्तार अब 15 से 20 मिल हो गई। रास्ते में किसी पेड़ के आ जाने पर उन्हें डर लग रहा था कि बस पेड़ से ना टकरा जाए।
झील के आने से वे सोचते हैं कि इसमें बस गोता लगा देगी।अचानक बस ऐसे रुक गई जैसे कोई वृद्ध चलते-चलते थक जाने पर किसी पेड़ के नीचे बैठ जाती है। अंत में हिस्सेदार साहब के ठीक करने पर धीमी गति से चलने लगी।
कुछ देर बाद टायर पंचर होने पर बस फिर रुक गई और पुराना टायर लगाकर काम चलाया गया।अंत में लेखक और उसके साथी समय पर पहुंचने की आशा छोड़ दी और आराम से बैठकर हंसी मजाक करने लगे।
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Bus ki yatra की यात्रा के कठिन शब्द – Bus ki yatra के शब्दार्थ
- तय -निश्चय decide
- गोता- डुबकी लगाना,डाइव
- वृद्धावस्था-बुढ़ापा,old age
- अवज्ञा- आज्ञा ना मानना,defiance
- उत्सर्ग-त्याग,sacrifice
- विश्वसनीय-विश्वास करने योग्य,reliable
- इत्तेफाक से-सन्योग से,incidentally
- बियाबान- सुनसान,उजाड़,desolate
- बेताबी – बेचैनी,uneasy
- असहयोग – सहयोग न करना,non -cooperation
Bus ki yatra- Bus ki yatra के प्रश्न उत्तर-
प्रश्न १-मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धा भाव से देखा। लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जाग गई?
उत्तर – लेखक के मन में उस कंपनी के हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा भाव इसलिए जगा क्योंकि वह बस की जीर्ण -शीर्ण अवस्था से परिचित होने के बावजूद भी बस को चलाने वाले का साहस कर रहे थे। बस कहीं भी कभी भी रुक सकती थी।किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी। फिर भी कंपनी के हिस्सेदार अपनी पुरानी बस की खूब तारीफ कर रहे थे। आत्म बलिदान की ऐसी भावना दुर्बल थी जिसे देखकर लेखक निराश हो गया और कंपनी के हिस्सेदार के प्रति उसके मन में श्रद्धा भाव उम्र पड़ता है।
प्रश्न २- लोगो ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफल नहीं करते हैं।
उत्तर- उस बस की हालत ऐसी थी कि वह किसी भूतिया महल सी प्रतीत हो रही थी। बस का सारा ढांचा बुरी हालत में था बस के अधिकांशी से टूटे हुए थे। इंजन और बस की बॉडी का तो कोई तालमेल ही नहीं था। उस बुढ़ी बस को देखकर स्वयं ही अंदाजा लग जाता था कि वह अंधेरे में कहीं साथ ना छोड़ दे या कोई दुर्घटना ना हो जाए इसलिए लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफल नहीं करते हैं।
प्रश्न 3- ऐसा लगा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं लेखक को ऐसे ही क्यों लगा?
उत्तर- लेखक को सारी बस ही इंजन इसलिए लगी क्योंकि पूरी बस में इंजन की आवाज गुजर रही थी।बस का हर हिस्सा इंजन के पुर्जों की भांति हिल रहा था। इस कारण लेखक को ऐसा पतित हुआ कि मानो वह बस के भीतर न बैठकर इंजन के भीतर बैठा हुआ है।
प्रश्न 4- “गजब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।” लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?
उत्तर- बस की जीर्ण शीर्ण अवस्था को देखकर लेखक को ऐसा एहसास हो रहा था कि बस चलती भी होगी या नहीं परंतु जब लेखक ने बस के हिस्सेदार से पूछा क्यों यह बस चलेगी ? तब बस के हिस्सेदार ने उतने ही गर्व से कहा अपने आप चलेगी क्यों नहीं चलेगी अभी चलेगी। पर लेखक को उसके कथन में सत्यता नहीं दिखाई दे रही थी। यही कारण था कि लेखक को हैरानी हुई।
प्रश्न 5 – ” मै हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।” लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर- खस्ता हाल बस में बैठने के बाद लेखक को अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब बस स्टार्ट हो गई। लेखक को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि यह बस कभी भी धोखा दे सकती है। रास्ते में चलते हुए हर वह चीज दुश्मन लग रही थी। फिर चाहे पेड़ हो या कोई झाड़। उसे पूरा विश्वास था कि बस कभी भी किसी भी पेड़ को टकरा जाएगी जो उसके सामने आएगी। और उनके जीवन का अंत हो जाएगा। इसलिए लेखक पेड़ों को अपना दुश्मन समझ रहे थे।