Chola dynasty चोल साम्राज्य का इतिहास – In hindi
Chola dynasty की स्थापना विजयालय ने 1850 ईस्वी से 1871 ईस्वी में की थी। लेकिन अगर हम संगम साहित्य की मानें तो चोल साम्राज्य की शुरुआत तीसरी सदी में हो गई थी। चोल साम्राज्य के काल की बात करें तो इसके काल को तीन भागों में बांटते हैं। पहला तीसरी शताब्दी से लेकर दूसरी शताब्दी तक। जिसके प्रमाण अशोक के अभिलेख में भी मिलते हैं। मध्यकालीन भारत में चोल वंश का शासन शुरू होता है। जिसमें यह निरंतर अपनी सीमा बढ़ाते रहते हैं। तीसरे काल की बात करें तो यह 1070 ईस्वी से लेकर 1200 ईस्वी तक का काल है। यह दुनिया की सबसे लंबी चलने वाली डायनेस्टीओ में से एक है। जिसकी बहुत ही मजबूत नौसेना थी। जिसकी सहायता से इन्होंने श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, आदि जैसे देशों को भी अपनी शासन स्थापित किया था ।
चोल साम्राज्य की जानकारी के स्रोत- जयगोदर नामक लेखक के कलिंगतूपानि नामक ग्रंथ में चोल शासक कुलोत्तुंगा की जानकारी मिलती है। परियापूरा णम ग्रंथ में चोलो के विषय में पता चलता है। जिसके रचयिता शेकिकलार थे । कंबन जिन्होंने तमिल रामायण की रचना की थी। उत्तरमेरूर अभिलेख इसमें चोल शासक परानतक प्रथम के स्थानीय स्वायत्त शासन के बारे में जानकारी मिलती है। धावलेश्वरम नामक स्थान से प्राप्त सोने के सिक्कों से चोल साम्राज्य की जानकारी मिलती है।
इन्हें भी पढ़े –Pallavas and Chalukya dynasty-History of south Indian
चोल साम्राज्य के संस्थापक – चोल साम्राज्य के संस्थापक विजयालय थे। जो पहले पल्ल्वों के सामंत हुआ करते थे। जिन्होंने 1850 ईस्वी में तंजावुर पर कब्जा किया और उसे अपने राजधानी के रूप में चुना। यहाँ उसने निशुंभसुदिवी देवी का मंदिर बनवाया।
Chola dynasty चोल साम्राज्य के प्रमुख शासक-
आदित्य प्रथम -(1871 से 907 ईसवी) – 871 ईसवी में विजयालय के पुत्र आदित्य प्रथम ने चोल की राजगद्दी संभाली। इन्होंने चोल साम्राज्य को पल्ल्वों से मुक्त कराया तथा कावेरी नदी के तट पर एक महान शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
परानतक प्रथम (907 से 955 ईसवी)- आदित्य प्रथम का पुत्र था। इन्होंने पांडय शासक राजसिंह -2 को पराजित कर मदुरा को जीता। इस उपलक्ष में इन्होंने मदुरान्तक एवं मदुरईकोटा की उपाधि धारण की।
राजराज प्रथम (985 से 1014 ईसवी)- 950 ईसवी में परांतक -2 (सुंदर चोल ) का पुत्र अरिमोलीवर्मन प्रथम जिनका उपनाम राजराज प्रथम था यह चोल शासक बने। तंजौर अभिलेख से इनके युद्ध अभियानों का जानकारी मिलती है। इन्होंने केरल राज्य पर आक्रमण कर केरल के शासक भास्कर रविवर्मन को पराजित किया। तथा कांडलूर शालैककलमरूद की उपाधि धारण की। अपनी नौसेना के बल पर उन्होंने श्रीलंका की राजधानी अनुराधापूर पर आक्रमण कर वहां के राजा नरेश महेंद्र प्रथम को हरा दिया। इन्होंने सिंहल राज्य का नाम मांमुंडीचोलामंडलम रखा और पोलोन्नरूवा को इसकी राजधानी बनाया। तथा उसका नाम जगन्नाथमंगलम रख दिया। यह शैवधर्म को मानने वाले थे। और शिवपादशेखर की उपाधि ग्रहण की थी। इनके द्वारा निर्मित तंजौर का राजराजेश्वर मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का उत्तम उदाहरण है।
राजेंद्र प्रथम (1014- 44 ईसवी ) – राजेंद्र प्रथम अपने पिता राजराज प्रथम की भांति ही समाजवादी नीतियों को मानने वाला शासक था। इन्होंने समस्त श्रीलंका को चोल साम्राज्य में मिला कर अपनी चौहद्दीओ को बढ़ा लिया। राजेंद्र प्रथम ने बंगाल के शासक महिपाल को हराकर उत्तर पूर्वी पराजित राजाओं को गंगा जल से भरे कलश अपनी राजधानी गंगैकोंडचोलपुरम लाने को कहा। तथा उसे चोलगंग नामक तालाब में एकत्रित करवाया। इसी कारण इन्होंने गंगैकोंडचोल की उपाधि भी धारण की।
चोल शासन प्रणाली-प्रशासनिक इकाई
मण्डलम | प्रान्त |
कोट्ट्म | कमिशनरी |
नाडु | जिला |
कुरम | ग्रामों का संघ |
इनकी शासक प्रणाली राजतंत्रात्मक थी। चोल शासकों की प्रारंभिक राजधानी उरैयूर थी। विजयालय ने तंजौर की को अपनी राजधानी बनाया। चोल राजतंत्र का राजा वंशागत आधार पर सत्ता अधिकारी होता था। राजा चोल शासन व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता था। प्रशासन 6 प्रांतों में विभक्त था। जिसे मंडलम कहा जाता था। मंडलम प्रशासन से लेकर ग्राम प्रशासन तक शासकीय कार्यों में सहायता के लिए स्थानीय सभाएं होती थी।
नाट्ट्म | नाडु की स्थानीय सभा |
नगस्तार | नगर की स्थानीय सभा |
श्रेणी | व्यवसायियो की सभा |
पूग | शिल्पियों की सभा |
चोल काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू उनकी स्थानीय ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था थी। चोल केंद्रीय पदाधिकारियों में उच्च पदाधिकारियों को प्रारंभ तथा निम्न कोटि के अधिकारियों को शेरूतरम कहा जाता था। राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी वरितपोतगकक कहलाता था। भूमि कर उपज का 1/3 भाग था। चोल कला की धातु मूर्तियों में नटराज शिव की कांस्य मूर्तियां सार्वजनिक उल्लेखनीय है। चोल के प्रमुख कर-
आयम | राजस्व |
मरमज्जाडि | उपयोगी वृक्षकर |
कडमै | सुपारी की बगात पर कर |
मनैइरै | गृहकर |
कढ़ैइरै | व्यापारी कर |
कढ़िमे | लगान |
मगनमै | पेशे पर कर लगने वाला |
आशा है दोस्तों आपको चोल साम्राज्य के सभी महत्वपूर्ण बिंदु समझ में आया होगा। आपके सहयोग का इंतज़ार रहेगा धन्यवाद।
Whenever I read your articles, I like it very much, you keep writing articles like this. with Learn In An Easy Way
Waw Nice
Nice