Jaindharma-bhudhism and Shaiv & vaishnav dharma
Jaindharma-bhudhism-जब गंगा के मैदान से 62 धार्मिक संप्रदाय का उदय हुआ । ईसा के छठी शतावदी पूर्व । जिसने बहुत से आडंबर को जन्म दिया । तब जैन और बौद्ध संप्रदाय एक धार्मिक सुधार के रूप मे अवतरित हुए ।जिसने सिर्फ भारत को ही नहीं पूरे विश्व को धार्मिक आडंबरों से मुक्त किया । जिससे प्रभावित होकर इतिहास के कई महान योद्धा महावीर स्वामी तथा भगवान बुद्ध के बताए मार्गों पर अग्रसर हो गए । आज भी कई देशों मे बुद्धम शरणं गछामी की गूंज सुनाई पड़ती है । तथा महावीर स्वामी के उपदेशों पर अनुक्रमण होता है । उसी भारत के प्राचीन धर्म और दर्शन की बात आज इस पोस्ट में करेगे ।
ऋषभदेव | विमलनाथ |
अजितनाथ | अनंतनाथ |
संभवनाथ | धर्मनाथ |
अभिनंदन | शांतिनाथ |
सुमतिनाथ | कुनथुनाथ |
पदमप्रभु | अर्रनाथ |
सुपाशर्वरनाथ | मल्लिनाथ |
चंद्रप्रभु | मुनिसुब्रत |
सुविधिनाथ | नेमिनाथ |
शीतलनाथ | अरिष्टनेमि |
श्रेयांसनाथ | पाशर्वनाथ |
वासुपूज्य | महावीर |
- जैन धर्म -जैन धर्म जिसके प्रवर्तक ऋषभ देव थे । जिनको लोग आदिनाथ से भी संबोधित करते थे । ऋग्वेद मे ऋषभदेव और अरीक्षक्षतनेमी का उलेख मिलता है ।जैन धर्म की जन्म जिन शब्द से हुआ। जिसका मतलब विजेता से है ।
- तीर्थंकर का मतलब मार्ग दिखाने वाला होता है ।
भगवान महावीर और जैन समुदाय -Jaindharma-bhudhism
jaindharma-bhudhism महावीर स्वामी का जन्म कुंडग्राम (वैशाली )मे हुआ । महावीर स्वामी क्षत्रिय वंश से सम्बन्ध रखते थे । इनके बचपन का नाम वर्धमान था । महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ माता का नाम त्रिशला था ।पत्नी का नाम यशोदा तथा पुत्री का नाम प्रियदर्शनी था। 30 वर्ष की आयु मे गुह त्याग कर 12 वर्ष की तपश्या के बाद जूमीभक ग्राम के पास ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ । 72 वर्ष की आयु मे महावीर स्वामी का निधन हुआ । राजगृह के मल्ल शासक सुसतपाल के राज्य मे ।
जैन धर्म के पाँच महाव्रत –
- अहिंसा – हिंसा नहीं करना ।
- सत्य – झूठ नहीं बोलना ।
- अस्तेय -चोरी नहीं करना ।
- अपरिग्रह -संपति अर्जित नहीं करना।
- ब्रह्मचर्य -इंद्रियों को नियंत्रित करना ।
चारों महाव्रत का प्रतिपादन पाशर्वनाथ ने किया । जैन धर्म के अनुसार व्यक्ति अपने ज्ञान,ध्यान और आचरण से मोक्ष प्राप्त कर सकता है जिसे त्रिरत्न कहते है । जैन धर्म के अनुसार निजल,निराहार रह कर प्राण त्याग करने को सल्लेखना कहलाता है । आंशिक ज्ञान को स्यादवाद कहते है । देवताओ का स्थान जिन के नीचे रखा । इनके अनुसार व्यक्तियों का उच्चय कुल मे जन्म पिछले जनम के पुण्य,पाप पर निर्भर करता है ।
जैन धर्म का प्रसार – ज्ञान प्राप्ति के बाद राजगुह के विपुचल पहाड़ी मे अपना पहला उपदेश दिया । प्रथम शिष्य जमाली थे जो महावीर स्वामी के दामाद थे ।चंदना पहली भिक्षुक थी । महावीर के शिष्य को गंधर कहा जाता था । शिष्यों की संख्या 11 थी । जैन धर्म के प्रचार के लिए पावापुरी की स्थापना की गई । धर्म का प्रसार प्राकृत भाषा मे था । प्रमुख शिष्य –कुंडकोलीय,कामदेव,सुरदेव,आनंद थे। लिछवि,नरेश चेतक ,चन्द्रगुप्त मोर्य ,राष्टकूट ,खारवेल,अवन्ती नरेश,चंपानरेश आदि महावीर स्वामी के अनुयायी बने ।।
जैन धर्म का विभाजन –
Jaindharma-bhudhism मगध मे एक समय 12 वर्षों का घोर अकाल पड़ा। तब बहुत से जैन भद्रबाहु के साथ कर्नाटक चले गए ।और कुछ जैन लोग स्थूलभद्र के साथ मगध मे ही रुक गए । फिर जब आकाल समाप्त हुआ तो भद्रबाहु के लोगों मगध लोटे पर स्थानीय लोगों द्वारा उनका बहीस्कार किया । जिससे जैन धर्म दो गुटों मे बट गया 1 दिगम्बर और 2 श्वेताम्बर
जैन साहित्य –
प्रथम जैन संगीति (300 ईसा पूर्व ) | दितीय जैन संगीति (512 ईसा ) |
अध्यक्ष -स्थूलभद्र | अध्यक्ष -देवधिधमीरणी |
स्थान -पाटलिपुत्र | स्थान -वल्लभी (गुजरात ) |
शासक -चन्द्रगुप्त मोर्य | |
परिणाम -जैन धर्म के दो भाग दिगम्बर,श्वेतांबर जैन धर्म मे शिक्षाओ को 12 अंगों मे बाटा | परिणाम -जैन धर्म को लिपिबद्ध किया । |
Jaindharma-bhudhism जैन साहित्य को आगम कहा जाता है । जैन धर्म के ग्रंथ अर्धमागधी मे लिखे गए है । कल्पसूत्र संस्कृत मे है । जिसे भद्रबाहु के द्वारा लिखित है । भगवती सूत्र मे भगवान महावीर का वर्णन है । तथा 16 महाजनपद का भी उलेख है । जैन भिक्षुक के आचरण के नियमों का उलेलख आचारांगसूत्र मे मिलता है
भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म – Jaindharma-bhudhism
गौतम बुद्ध – का जन्म नेपाल की तराई लुमीबनी मे 563 ईसा पूर्व मे कपिलवस्तु मे हुआ । गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन तथा मा का नाम माया देवी कोशल था । पत्नी का नाम यशोधरा तथा पुत्र का नाम राहुल था ।
- महाभिनिष्क्रमन -गौतम बुद्ध ने जब जीवन से संबंधित चार दृश्य देखे जैसे बुढ़ापा,रोगी,मुतक,तथा सन्यासी तब उन्होंने घर छोडने का निर्णय लिया । उनका घर छोडना महाभिनिष्क्रमन कहलाया । घोड़ा भगवान बुद्ध के गुहत्याग का प्रतीक है । उनके घोड़े का नाम कथक और सारथी का नाम चन्ना
- ज्ञान प्राप्ति – बुद्ध के दो गुरु हुए आलार कलाम और रुद्रक रामपुत्र । बुद्ध को निरंजना नदी (बोधगया )मे ज्ञान प्राप्त हुआ । तथा सुजाता नामक लडकी के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा । ज्ञान प्राप्ति को संबोधि कहते है । तब से बुद्ध को प्रज्ञावान और पीपल के पेड़ को बोधिवृक्ष के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। बुद्ध को तथागत,मत्रय और शाक्यमुनि भी कहा जाता है।
- धर्मचक्रपरिवर्तन – उपदेश देने को धर्मचक्रपरिवर्तन कहा गया है । उन्होंने प्रथम बार पाँच ब्राह्मण को उपदेश दिया था । जिसे धर्मचक्रपरिवर्तन कहा गया । बुद्ध का प्रिय शिष्य आनंद था । इसके ही कहने पर बौद्ध सभा मे स्त्रियों का प्रवेश हुआ । प्रथम शिष्या का नाम महाप्रजापती गोतमी था।
- महापरिनिर्वाण – गौतम बुद्ध का निधन 80 वर्ष की आयु मे हुआ । सन 483 ईसा पूर्व कुशीनगर मे। स्वर्गवाश के उपरांत भगवान बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों मे बाट कर आठ सपूतों का निर्माण किया गया । बुद्ध का भ्रगौतममण -बुद्ध ने 40 वर्ष तक भ्रमण कर उपदेश दिया । सर्वाधिक उपदेश कोशल प्रदेश की राजधानी श्रावस्ती मे दिए ।
महत्वपूर्ण घटना और उनके प्रतीक
हाथी | माता के गर्भ मे आना |
कमल | बुद्ध का जन्म |
घोड़ा | गृहत्याग |
बोधिवृक्ष | ज्ञान प्राप्ति |
धर्मचक्र | प्रथम उपदेश |
भूमिस्पर्श | इंद्रियों पर विजय |
एक करवट सोना | महापरिनिर्वाण |
बौद्ध धर्म के सिद्धांत -bhudhism
Jaindharma-bhudhism -बुद्ध के आचार नियम और सिद्धांत उनके अनुयायी के लिए -आर्य सत्य -सांसारिक दुखों के संदर्भ मे चार सत्य 1 दुख 2 दुख समुदाय 3 दुख निरोध 4 दुख निरोधगमिनी प्रतिपदा
- अष्टांगिक मार्ग -दुखों के निवारण के लिए बुद्ध के बताए आठ मार्ग -सम्यक दशर्ती 2 सम्यक् वाक् 3 सम्यक् आजीव 4 सम्यक् संकल्प 5 सम्यक् 6सम्यक् स्मूति 7 सम्यक्व्यायाम 8 सम्यक् समाधि।
- निर्वाण – निर्वाण बौद्ध धर्म का परम लक्षय है । निर्वाण का मतलब जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना ।
क्र. स. | स्थान | समय | अध्यक्ष | शासनकाल |
प्रथम बौद्ध संगीति | राजगुह | 483 ई. पू . | महाकस्सप | अजातशत्रु |
दितीय बौद्ध संगीति | वैशाली | 383ई. पू . | साबकमीर | कालाशोक |
तूतीय बौद्ध संगीति | पाटलीपुत्र | 251 ई. पू . | मोगलीपुततिस्सय | अशोक |
चतुर्थ बौद्ध संगीति | कुंडलवन | ई. की प्रथम शताब्दी | वसुमित्र | कनिष्क |
- प्रथम बौद्ध संगीति विनय पिटक और सुत्तपिटक मे लिखे गए है ।
- दितीय बौद्ध संगीति मे बौद्ध धर्म का विभाजन हुआ और महासंघीक और थेरावादीन् कहलाए ।
- तूतीय बौद्ध संगीति मोगलीपुततिस्सय ने अभिधम्म पिटक का संकलन किया ।
- चतुर्थ बौद्ध संगीति दो समुदाय मे बट गए हीनयान और महायान ।
बौद्ध साहित्य –
बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन ग्रंथ त्रिपिटक है । विनयपिटक जिसमे बौद्ध धर्म का नियम है । सुतपितक धार्मिक विचारों का संग्रह । अभिधम्मपिटक -बौद्ध दर्शन का वर्णन । 16 महाजनपद का वर्णन अगुतरनीकाय मे है । दसशील निर्वाण को सरल बनाने हेतु दस सूत्र दिए जैसे – अहिंसा,सत्य,चोरी न करना ,लोभ नहीं करना,स्त्रियों से दूर रहना,असमय भोजन नहीं करना,आभूषणों का त्याग,सुगंधित पदार्थ वर्जित ।
त्रिरत्न -बुद्ध धर्म के तीन रत्न है बुद्ध,धम्म,संघ । बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा मे दिय । बौद्ध धर्म ईश्वर और आत्मा को नहीं मानता है । बौद्ध धर्म के मुतविक मोक्ष के लिय मौत आवश्यक नहीं है। यह जीवन मे भी प्राप्त किया जाता है । जातक मे पूर्व जन्म की कथाओ का वर्णन है ।
बौद्ध धर्म के विशिष्ट तथ्य –
Jaindharma-bhudhism महायान शाखा ने बुद्ध को भगवान के रूप मे पूजने की परंपरा शुरू की और पहली मूर्ति बनायी । महायान शाखा मे स्वर्ग और नरक की अवधारणा है । बंगाल के शेव शासक शशांक ने बोधिवृक्ष को कटवा डाला था । कनिष्ठ,हर्षवर्धन महायान शाखा के पोषक शासक थे । महायान शाखा के अंतर्गत शून्यवाद और योगाचार शामिल है । हीनयान के भी दो भाग है 1 वेभाषिक और 2 सोत्रानितक ।
Jaindharma-bhudhism- वैष्णव धर्म
इसका केंद्र विंदु विष्णु की पूजा है । भगवत संप्रदाय का प्रमुख तत्व भक्ति और अहिंसा भक्ति से तात्पर्य प्रेम,निष्ठा, निवेदन और अहिंसा का अर्थ किसी का वध नहीं करना ।वैष्णव संप्रदाय मे विष्णु के दस अवतारों का वर्णन है । विष्णु के दस अवतार है। –मत्स्य,कूर्म,वाराह,नरसिह,वामन,परशुराम,राम,बलराम,बुद्ध,और कलिक । कृष्ण का उल्लेख छान्दोग्य उपनिषेद मे मिलता है । इस धर्म का विकास गुप्त काल मे हुआ । यह बहुत ही उदार धर्म है, जिसने विदेशियों को भी प्रभावित किया ।
शैव धर्म –
शैव धर्म मे शिव की उपासना होती है । मत्स्य पुराण मे शिव पूजा तथा लिंग पूजा का वर्णन मिलता है । कुछ प्रमुख शैव धर्म के उपासक जिन्होंने शैव धर्म को आगे बढ़ाया । जैसे –पशुपति,कापालिक,कालामुख,लिंगायत आदि । कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव देव है । तथा कलामुख के संप्रदाय के लोगों को माहव्रतधर से संबोधित किया जाता है । लिंगायत को जंगम भी कहा जाता है इसके प्रवर्तक अल्लभ प्रभु तथा शिष्य वासक थे । पाशुपत संप्रदाय के सस्थापक लकूलीश थे । नयनार संतों ने दक्षिण भारत मे शैव धर्म का प्रसार किया । नाथ संप्रदाय की स्थापना मत्स्यनद्र नाथ ने की । इसके प्रचारक बाबा गोरखनाथ थे ।
संप्रदाय | प्रवर्तक |
आजीवक | मक्खाली घोषाल |
नित्यवादी | पकूघ कच्यायन |
संदेहवादी | संजय वेलठपुत्र |
किरीयवादी | पुरण कश्यप |
भौतिकवादी | अजीत केशकाम्बलीन |
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