Khilji dynasty:Learn story of 3 ruler and kohinoor

Khilji dynasty खिलजी वंश का सम्पूर्ण नोट्स

खिलजी अफगानिस्तान के हेलमंद नदी की घाटी पर रहने वाली जाति, भारत के वैभव से इतनी प्रभावित हुई थी इसने भी भारत के सिंहासन पर अधिपत्य के लिए संघर्ष शुरू कर दिया जिसने न सिर्फ कोहिनूर को भारत से छीना बल्कि भारत तथा भारतवासियों के मान सम्मान को भी रौंधना शुरू कर दिया। जब गुलाम वंश कि 80 से 90 साल की सत्ता कमजोर पड़ने लगी तब बलबन के पौत्र कमुस/क्यूमस  की हत्या खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी के द्वारा हुई। और खिलजी वंश(Khilji dynasty) की नीव पड़ गई। 

तब मात्र 30 सालों में 4 शासकों द्वारा भारत की भूमि में बर्बरता का जो तांडव हुआ उसकी कहानी इतिहास के पन्नों में समाहित हो गई। तो चलिए इस कालक्रम की पूरी कहानी को विस्तार पूर्वक तथा इसके पात्रों के चरित्र को गहराई पूर्वक समझते हैं।   

Khilji dynasty जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296)

जलालुद्दीन, खिलजी वंश (Khilji dynasty) का संस्थापक था। इसने किलोखरी में अपनी राजधानी बनवाई। सुल्तान बनने के समय जलालुद्दीन 70 वर्ष का था। इसी कारण यह थोड़ी उदार प्रवृत्ति का तथा सहिष्णु था। इसके कालखंड में प्रमुख तीन विद्रोह हुए प्रथम मलिक का विद्रोह ताजुद्दीन कूची का षड्यंत्र और सीदी मौला का षड्यंत्र जिसे बाद में फांसी की सजा दे दी गई।

जलालुद्दीन के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना अलाउद्दीन का देवगिरी का आक्रमण था। रामचंद्र देव, देवगिरी का राजा था। अमीर खुसरो और हसन देहलवी जलालुद्दीन के दरबार में रहते थे। 20 जुलाई 1296 को अलाउद्दीन के इशारे पर इखितयारूदीन छल पूर्वक जलालुद्दीन की हत्या कर दी जाती है। 

अलाउद्दीन खिलजी (1296 -1300 ई)

अलाउद्दीन के बचपन  का नाम अली या गुरशप था। सुल्तान बनने से पहले अलाउद्दीन आमिर ए तुजुक के पद पर स्थापित था। 22 अक्टूबर 1286 को अलाउद्दीन ने दिल्ली में प्रवेश किया जहां बलबन लाल महल में उसने अपना राज्यअभिषेक करवाया और दिल्ली के का सुल्तान बना। फिर सिकंदर सानी की उपाधि धारण की। 

Khilji dynasty साम्राज्य विस्तार

अलाउद्दीन की आकांक्षाएं समाजवादी थी उत्तर भारत में राज्यों के प्रति उसकी नीति राज्य विस्तार की थी जबकि दक्षिण भारत में वह राज्यों को अब अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य करता रहता था। और वार्षिक कर के लिए प्रयासरत रहता था ।

 इसकी विजय अभियान उत्तर भारत से शुरू होते हुए गुजरात, रणथंभौर, चित्तौड़, मालवा, धार, चंदेरी, शिवाना, जालौर तथा दक्षिण भारत देवगिरी वारंगल द्वारसमुंद्र मालाबार तक पहुँचा (मालिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत के अनुसार अलाउद्दीन के चित्तौड़ अभियान का कारण वहां के शासक राणा रतन सिंह की पत्नी पद्मावती को प्राप्त करना था।) 

Khilji dynasty मालिक कफूर –

अलाउद्दीन के दक्षिण भारत की विजय का प्रमुख श्रेय उसके नायाब मालिक कपूर को है इसने 1307 ईस्वी में सर्वप्रथम देवगिरी पर आक्रमण किया तथा वहां के राजा रामचंद्र देव को हरा दिया। इसके बाद काफूर ने तेलंगाना पर आक्रमण किया तथा वहां के शासक राजा प्रताप रूद्र देव ने आत्मसमर्पण कर मालिक कफूर को खुश करने के लिए कोहिनूर का हीरा सौप दिया। जिससे मालिक ने अलाउद्दीन को सौंप दिया। 

अलाउद्दीन का राजत्त्व सिद्धांत –

अलाउद्दीन ने धर्म और धार्मिक धार्मिक वर्ग को राजनीति में हस्तक्षेप करने नहीं दिया। उसने खलीफा से अपने सुल्तान के पद की स्वीकृति भी नहीं ली। इस प्रकार उसने शासन में ना तो इस्लाम के सिद्धांतों का सहारा लिया उलेमा वर्ग की सलाह ली और ना ही खलीफा के नाम का सहारा लिया। अलाउद्दीन निर्गुण राजतंत्र में विश्वास करता था। 

शहना ए मंडीबाजार अधीक्षक
दीवान ए रियासतबाजार पे नियंत्रण रखने वाला
सराय अद्लन्याय के लिए
बरीद ए मंडीबाजार निरीक्षक
मूंहीयांसगुप्तचर
बाजार नियंत्रण के अधिकारी

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Khilji dynasty प्रशासनिक व्यवस्था-

अलाउद्दीन की प्रमुख खासियत थी कि वह व्यक्ति की योगिता को आधार बनाता था। इसने गुप्तचर विभाग को एकत्रित किया इस विभाग के मुख्य अधिकारी वरीद ए मुमालिक था।  

Khilji dynasty लगान व्यवस्था-

लगान व्यवस्था पैदावार का 1/2 भाग पर निर्धारित होता था। यह पहला सुल्तान था जिसने भूमि को नाप कर लगान लेना शुरू किया। इसके लिए विस्वा को इकाई माना जाता था। यह लगान को गलले के रूप में लेना पसंद करता था। इसके अलावा इसमें दो नए कर लगाए मकान कर और चराई कर। 

कर व्यवस्था को लागू करने के लिए इसने एक अलग से विभाग बनाया था। जिसका नाम दीवान ए मुस्तखराज स्थापित किया था। खलासा भूमि इस भूमि से लगाना राज्य द्वारा वसूला जाता था। 

Khilji dynasty सैनिक व्यवस्था

इसकी एक स्थाई और बड़ी सेना थी जिसे वह नगद वेतन देता था। इसके केंद्र में अनुभवी सेना नायक थे।  जिसे कोतवाल कहा जाता था। सेनाओं की संख्याओं का विभाजन 1000,100 और 10 की संख्या पर आधारित था। जो खानों, मलिकों, अमीरों और सिपहसलारों  के अंतर्गत आते थे। 10000 की सैनिक टुकड़ी को तुमन कहा जाता था।

इसके सैनिकों को हुलिया लिखने और घोड़े को दागने की प्रथम शुरू हुई थी। बाजार व्यवस्था अलाउद्दीन के बाजार व्यवस्था का मुख्य कारण सैनिकों की वेतन में कमी करना ना होकर वस्तुओं के मूल्य को बढ़ाने से रोकना था। अलाउद्दीन ने प्रत्येक वस्तु के लिए अलग-अलग बाजार बनवाए थे। गल्ले के लिए मंडी, कपड़े के लिए सराय ए आदिल, घोड़ा तथा गुलाम और मवेशी बाजार के लिए सामान्य बाजार थे। अलाउद्दीन का मंत्री परिषद

दीवाने वजारतवजीर
दीवाने इंशाशाही आदेश का पालन करवाने वाला
दीवाने आरिजसैन्य मंत्री
दीवाने रसालतविदेश विभाग

सभी व्यापारियों को शहना ए मंडी के दफ्तर में अपने को पंजीकृत करना पड़ता था। केवल पंजीकृत व्यापारी ही किसानों से गलला खरीद सकते थे। बेईमानी करने वालों को कठोर दंड का प्रावधान था। बहुमूल्य वस्तुओं को खरीदने के लिए दीवाने रियासत या शहना ए  मंडी से आज्ञा लेनी पड़ती थी। 

अन्य तथ्य अलाउद्दीन ने कुतुब मीनार के निकट अलाई दरवाजा सीरी नामक शहर,हौज ए अलाई तथा हजार खम्बा नामक महल का निर्माण करवाया। इसने डाक व्यवस्था लागू की। अंतिम अधिनियम परवाना नवीस की नियुक्ति थी। अलाउद्दीन ने खम्स (युद्ध में लुटा हुआ हिस्सा )के  4/ 5 भाग पर राज्य का नियंत्रण एवं 1/ 5 भाग पर सैनिकों का नियंत्रण कर दिया था। अलाउद्दीन की मृत्यु 5 जनवरी 1316 में हुई इसके बाद

कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316-1320 ई)

इसने खुद को खलीफा घोषित किया मुबारक शाह के बाद नसरुद्दीन खुसरवशाह  15 अप्रैल से 7 नवंबर 1320 ईस्वी में शासक बना। यह  प्रथम भारतीय मुसलमान था जो दिल्ली का शासक बना।

आशा है दोस्तों आपको Khilji dynasty का यह भाग ज्ञानवर्धक लगा होगा आपके प्रश्नो का इंतज़ार रहेगा धन्यवाद।