Rajput dynasty:Learn 6 great dynasty of India

Rajput dynasty -राजपूत वंश का इतिहास -In Hindi

दोस्तों आज के राजपूत वंश (Rajput dynasty)के इस भाग में हम राजपूतों का स्वर्णिम इतिहास की चर्चा करेंगे। जानेगे कैसे राजपूतो ने हो रहे विदेशी आक्रमणकारियों को बहुत हद तक रोकने का प्रयास किया तथा भारत के सम्मान की रक्षा के लिए निरंतर अभ्यासरत रहे। चलिए इनके परिचय के साथ इनके सभी कार्यो की झलक देखते है।

1647 ईस्वी में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत के उत्तर तथा पश्चिमी गुजरात मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तर प्रदेश दिल्ली में राजपूत वंश का उदय होता है और 18 से लेकर 12वीं तक चलता है इसी काल को राजपूत काल कहते हैं।

Rajput dynasty राजपूत का परिचय और उत्पत्ति –

कर्नल जेम्स टॉड एवं सिम्थ जो विदेशी इतिहासकार थे। इन्होने सीथियन जाती को राजपूतों का पूर्वज बताया वही स्मिथ का मत था कि यह शक,कुषाण के वंशज है। कनिघम भी सिम्थ के मत का समर्थन करते थे। वही देशी इतिहासकार गौरीशंकर हीरचन्द्र का मानना था की प्राचीन क्षत्रिय जाती आगे चलकर राजपूत कहलाए । वही अगर चंद्रवरदाई की माने तो,राजपूत वंश की उत्पत्ति ऋषि वशिष्ठ के माउंट आबू पर्वत पर यज्ञ करने से हुआ था। जिसके फलस्वरूप अग्निकुंड से चार राजपूत जाति का उदय हुआ जिसमें गुर्जर, प्रतिहार, चौहान, परमार वंश थे। गोपीनाथ शर्मा और भंडाकर ने इन्हें ब्राह्मण का वंशज बताया। क्षेत्र विस्तार की बात करें तो गुजरात और राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में गुर्जर प्रतिहार वंश थे। जबकि अजमेर और दिल्ली में चौहान वंश का शासन था। मालवा के क्षेत्र में परमार वंश का शासन था तथा कन्नौज के क्षेत्र में गढ़वाल वंश का राज था।

इन्हें भी जाने –Chola dynasty:Learn administration& ruler of chola dynasty

Rajput dynasty प्रमुख राजपूत वंश-

गढ़वाल राठौर वंश

चंद्र देव- गढ़वाल वंश की स्थापना यशो निग्रह ने की थी। इसका पुत्र महेश चंद्र एक महत्वपूर्ण राजा था महेश चंद्र का पुत्र था जिसने उत्तर भारत में महमूद की अनुपस्थिति में राष्ट्रपुत्र राजा गोपाल को हराया था इसकी राजधानी उत्तर प्रदेश बनारस में थी। चंद्र देव ने मुस्लिमों पर तरूक्षदंड नाम से एक कर लगाया था। जिसमे  युद्ध में होने वाले खर्च की भरपाई की जाती थी। गोविंदचंद्र के शासनकाल में कन्नौज ने अपनी पुरानी ख्याति फिर से प्राप्त करना शुरू किया इनके मंत्रिमंडल के एक सदस्य लक्ष्मीधर ने कानून और इसकी प्रक्रिया पर कृत्य कल्पतरु की रचना की। जयचंद इस वंश का अंतिम शासक था। पृथ्वीराज तृतीय इसके सामाकालीन थे। चंद्रवरदाई कृत्य पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज तृतीय ने जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण किया था। मोहम्मद गौरी ने 1194 के चंदावर के युद्ध में जयचंद को मार डाला था।

Rajput dynasty चाहमान (चौहान वंश)-

वासुदेव ने चौहान वंश की स्थापना की थी इसकी राजधानी अहिच्छत्र थी। अजयराज ने अजमेर की स्थापना कर अजमेर को चौहानों की राजधानी बनाई थी। अजय राज के बाद और अर्णोराज शासक बना।  इसके पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया। विग्रहराज चतुर्थ 1153 से 63 ईसवी यह अर्णोराज का पुत्र था। इन्होंने हरिकेली नाटक की रचना की थी। इसके दरबारी कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज की रचना की थी। विग्रहराज चतुर्थ ने अजमेर में एक संस्कृत मठ बनवाया था जिसे आज ढाई दिन का झोपड़ा नाम से जाना जाता है। ढाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था इसकी दीवारों पर ललित विग्रहराज की पंक्तियां आज भी अपने होने का संदेश देती है।

पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने चंदेल राजा परमादिदेव को पराजित किया था। इन्हें राय पिथौरा भी कहा जाता है। चंद्रबरदाई जयनक इनके दरबारी कवि थे। जयनक ने पृथ्वीराज विजय की रचना की थी। पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने मोहम्मद गौरी के साथ दो युद्ध किया था। तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईस्वी में जिसमें मोहम्मद गौरी बुरी तरह पराजित हुआ था। तराइन का द्वितीय युद्ध 1193 ईस्वी में इसमें मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज तृतीय को पराजित किया कर उसे मार डाला था। इस युद्ध के ही कारण चौहानों की शक्ति समाप्त हो गई थी और तुर्कों का आगमन शुरू हो गया था। जिसका खामियाजा आज तक भारतवर्ष भुगत रहा है।

सोलंकी वंश

गुजरात के चालुक्य (सोलंकी वंश) के स्थापना मूलराज प्रथम ने की थी। इन्होंने अपनी राजधानी अनिहलवाड़ में बनवाई थी। भीम प्रथम के काल में मोहम्मद गोरी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर वहां से अथाह संपत्ति लूटी थी। भीम प्रथम ने आबू के दिलवाड़ा में जैन मंदिर का निर्माण करवाया था। जयसिंह सिद्धराजा– इन्होंने धारा के परमार राजा यशोवर्मन को युद्ध में हराकर उन्हें बंदी बना लिया था। जैन विद्वान हेमचंद्र जयसिंह के दरबार में रहते थे। इन्होंने सिद्धपुर में रूद्र महाकाल का एक बहुत ही विशाल मंदिर बनवाया था। मूलराज द्वितीय इन्हीं के काल में मोहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण शुरू किया था। जिसमें गौरी की पराजय हुई थी। भीम द्वितीय सोलंकी वंश का अंतिम शासक था। बड़ोदरा के निकट एक मोडेरा का सूर्य मंदिर है जिसका निर्माण सोलंकी शासन के काल में हुआ था।

परमार वंश-

मालवा के परमार वंश की स्थापना उपेंद्र यानी कृष्णराज ने की थी। धारा परमार वंश की राजधानी थी। इस वंश के महत्वपूर्ण शासक राजा भोज थे जिन्होंने अपनी राजधानी उज्जैन से बदलकर धारा में कर दी थी। राजा भोज एक कवि थे इसलिए उन्होंने कविराज की भी उपाधि ले रखी थी। उनकी प्रमुख रचना की बात की जाए तो भोजचंपू, श्रृंगार प्रकाश, शब्दानुशासन आदि रचनाएं प्रख्यात थी। इन्होंने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर की स्थापना करवाई थी।

चंदेल वंश-

चंदेल वंश के संस्थापक नन्नुक थे। जिन्होंने खजुराहो के समीप बुंदेलखंड में चंदेल वंश की स्थापना की थी। चंदेल वंश का एक प्रमुख शासक जयशक्ति था। जो एक प्रसिद्ध शासक था और चंदेल राज्य उसी के नाम से जेजाकभुक्ति के नाम से जाना जाता है। चंदेल वंश अपनी चंदेल कला के लिए विश्व में प्रख्यात है। इनके चंदेलकला के अंतर्गत कालिंजर उत्तर प्रदेश तथा खजुराहो छतरपुर जिला मध्य प्रदेश के मंदिर विश्व प्रख्यात है। चंदेलओने खजुराहो में करीब 30 मंदिर बनवाए थे। यह मंदिर जैन और ब्राह्मण धर्म से संबंधित है। विश्वनाथ मंदिर खजुराहो का सबसे प्रसिद्ध और अलंकृत मंदिर है जिसे राजा धंग ने बनवाया था। धंग ने जिननाथ के वैद्यनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था। कंदरिया महादेव मंदिर एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर है।

कलचुरी चेदि वंश-

कलचुरि ढाल मंडल के राजा थे जिन्होंने चेदि वंश की स्थापना की थी। और उन्होंने मध्यप्रदेश के जबलपुर के निकट त्रिपुरी में अपनी राजधानी बनवाई थी। कोक्कल प्रथम इस वंश का पहला शासक था। कर्णदेव इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की और त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की।  इन्होंने बनारस में कर्णमेख नामक एक शैव मंदिर बनवाया था। विजयसिह  इस वंश के अंतिम शासक था। इन्हीं वंश के समाप्ति के बाद भारत पर अरबों का आक्रमण शुरू हो गया था। जिसमें मोहम्मद बिन कासिम ने 712 ईस्वी में मकरान के रास्ते से सिंध पर हमला किया था जिसके कारण भारत पर अरबों का शासन या फिर साम्रज्य विस्तार होने लगा था। जिसकी चर्चा हम अगले आने वाले अंक में करेंगे।

आशा हैं, दोस्तों, राजपूत वंश का यह भाग आपको पंसद आया होगा। जिसमें मैंने सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं जो परीक्षा के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। सभी को क्रमबद्ध तरीके से रखने का प्रयास किया है जिससे याद रखने में आसानी रहेगी। आपके सुझावों का इंतजार रहेगा धन्यवाद।

2 thoughts on “Rajput dynasty:Learn 6 great dynasty of India”

  1. आपने राजपूतों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी हमें उपलब्ध कराई है। आपके इस उत्कृष्ट लेखन के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद💐💐
    भारत में कितने प्रकार के क्षत्रिय राजपूत हैं यह जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं…👇👇
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