Sindhu ghati sabhyata-In Hindi
Sindhu Ghati sabhyata सिंधु घाटी सभ्यता हमारे देश की प्राचीन गौरवशाली सभ्यता रही है। यह विश्व की पुरानी सभ्यताओं में से एक है। और सबसे विशाल सभ्यता भी है। यह सभ्यता भारतीय इतिहास के प्राकऐतिहासिक एवं कास्य काल का भाग रहा है। जिसके बारे में कुछ लिखित साक्ष्य तो अवश्य हैं। किंतु इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। इस सभ्यता की समस्त जानकारी सिर्फ खुदाई से ही प्राप्त देश अवशेषों के अध्ययन मात्र से मिला है। आइए इस महान सभ्यता की को क्रमवार प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज! Discover of sindhu ghati sabhyata
इस महान सभ्यता से हम लोग कई समय तक अनभिज्ञ थे। इस अनभिज्ञता के कारण ही हम सब वैदिक काल को ही प्राचीन भारत की शुरुआत मानते रहे। किंतु जब ब्रिटिश काल के विकास कार्य के दौरान इस सभ्यता की थोड़ी-थोड़ी जानकारियां प्राप्त होने लगी।
सन 1826 ईस्वी में चार्ल्स मैसेन ने जब वर्तमान पाकिस्तान क्षेत्र का दौरा किया तब उन्हें कुछ छिपी हुई सभ्यता का आभास हुआ। उन्होंने अपने इस जानकारी को अपनी पत्रिका “नेरिटिभ ऑफ जर्नीज “ मैं सांझा किया।
कुछ समय पश्चात जब विलियम बर्टन एवं जेम्स बर्टन के नेतृत्व में लाहौर से कराची के मध्य रेलवे ट्रैक बिछाने का कार्य चल रहा था। तब इन्हें कुछ ईटो का भंडार प्राप्त हुआ। जिसका इस्तेमाल इन लोगों ने ट्रैक बिछाने में किया। उस समय भी इस स्थान पर कुछ रहस्यमई सभ्यता होने के संकेत मिले।
सुव्यवस्थित ढंग से 1853 -56 के दौरान अलेक्जेंडर कनिंघम में जानकारी हासिल करने का प्रयास किया। सर जॉन मार्शल जब पुरातात्विक विभाग के प्रमुख नियुक्त हुए तब विधिवत रूप से इन क्षेत्रों में खुदाई का काम आरंभ हुआ।
प्रमुख स्थल | नदी | खोजकर्ता | मुख्य बिंदु |
1 हड़प्पा वर्तमान पाकिस्तान में | रावी नदी | रॉय बहादुर दयानन्द साहनी (1921) | अन्न भंडार,कास्य दर्पण,र-37 कब्रिस्तान श्रमिक आवास |
2 मोहनजोदड़ो,पाकिस्तान में | सिंधु नदी | राखलदास बनर्जी (1922) | विशाल अन्ननगर,कांस्य मूर्ति,पुरोहित की मूर्ति एक सिरिंगी पशु की मुहरे |
3 लोथल अहमदावाद गुजरात | भोगवा नदी | रंगनाथ रॉव (1957) | गोदीवारा बंदरगाह,चावल,अग्निकुंड,हाथी दाँत, तीन युगल समाधियाँ,घोड़े की मूर्ति |
4 कालीबंगा | घग्घर नदी | अमलानंद घोस | जुते हुए खेत के सबूत ,हवन कुंड,काली चुडियो, भूकंप के सबूत |
5 राखीगढ़ी,हिजार,हरियाणा | घग्घर नदी | सूरज भान | ताम्र उपकरण |
6 चंदूहड़ो सिंध प्रदेश | आनेस्ट मैके,मजूमदार | मनके बनाने का कारखाना,लिपस्टिक, कंघा ,काजल आदि | |
7 बनावली हरियाणा | सरस्वती नदी | मिटी के हल | |
8 रोपड़ | सतलज | यज्ञदन्त शर्मा | ताम्बे की कुल्हाड़ी |
9 रंगपुर अहमदाबाद,गुजरात | मादर नदी | एस.आर.राव | धान की भूसी,ज्वार,बाजरा |
10 सुरकोदजा कच्छ,गुजरात | सरस्वती नदी | घोड़े की हड्डी ,कलश ,शवाधान ,तराजू |
सिंधु घाटी सभ्यता का काल- period of sindhu ghati sabhyata
1921 में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा तथा 1922 ईस्वी राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो द्वारा मोहनजोदड़ो की खुदाई की खोज हुई। खुदाई सभ्यता के लोगों द्वारा इस्तेमाल की गई अनगिनत चीजें भी प्राप्त हुई जिसके आधार पर सभ्यता के बारे में समस्त जानकारी प्राप्त हो पाई।
इस सभ्यता के काल निर्धारण में पुरातत्व वेदाताओं द्वारा दिए गए मत में मतभेद देखे जाते हैं। इसका मुख्य कारण लिखित साक्ष्य साक्ष्य द्वारा प्राप्त जानकारी का अभाव माना जाता है।
अलेक्जेंडर कनिंघम ने 3250 से 2750 ईसा पूर्व इस सभ्यता का काल बताया। जबकि कार्बन 14 पद्धति के आधार पर डीपी अग्रवाल ने इसे 2350 से 1750 ईसवी का समय बताया है। परन्तु सर्वाधिक मान्य काल 2500 से 1700 ईस पूर्व का काल सिंधु सभ्यता का काल माना जाता है। अन्य विद्वानों द्वारा अनेक मत निम्नलिखित है।
सर माटिर्मर व्हीलर | 2500 -1500 ईसा पूर्व |
वूली | 2800 ईसा पूर्व |
सर जान मार्शल | 3250 -2750 ईसा पूर्व |
डी.पी. अग्रवाल और अलवीन | 2350 -1750 ईसा पूर्व और 2150 -1750 ईसा पूर्व |
सिंधु घाटी सभ्यता का नामाकरण-Naming of sindhu ghati sabhyata
इस सभ्यता को पुरातत्व विविधताओं द्वारा कई नाम दिए गए हैं। इसमें ज्यादा प्रसिद्ध नाम तो सिंधु घाटी सभ्यता ही है। जब इस सभ्यता की खोज चल रही थी। तब अधिकांश स्थल सिंधु नदी घाटी के समीप थे। इस वजह से इसे सिंधु घाटी सभ्यता नाम दिया गया।
किंतु जब खोजकर्ता और समय के साथ आगे बढ़े तब कुछ स्थल सरस्वती नदी के समीप भी मिले। अतः कुछ विद्वानों ने इसे सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता का भी नाम प्रदान किए।
किंतु यह नाम कोई खास प्रचलित नहीं हो पाया। एक अन्य नाम जो इस सभ्यता का अत्यंत प्रचलित हुआ वह है,हड़प्पा सभ्यता। इस सभ्यता की खोज कार्य में सर्वप्रथम हड़प्पा स्थल की खोज हुई। इसी वजह से इसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया।
सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव- Evolution of sindhu ghati sabhyata
इस सभ्यता को किसने बसाया? जब इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए पुरातत्व ने शोध कार्य प्रारंभ किए तो विशेष कर दो तरह के मत उभर कर सामने आया विदेशी मत और देसी मत।
विदेशी मत – इस मत के सर्वाधिक समर्थक व्हीलर मार्शल चाइल्ड तथा डी.डी. कौशांबी रहे हैं। इन लोगों का मत था। कि इस सभ्यता की खुदाई से जो ईट मुहरे आदि मिले है वह इस सभ्यता की थोड़ी दूरी पर स्थित मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी मिलते हैं। क्योंकि वहां सुमेरियन जाति का वर्चस्व रहा था। तो संभवत यह लोग वहां से आए और इस तरह यह सभ्यता की नींव डाली।
देसी मत -इस मतानुसार सिंधु सभ्यता के निर्माता कोई विदेशी नहीं बल्कि स्थानीय लोग ही थे। यह सत्य है कि मेसोपोटामिया और इस सभ्यता दोनों में ईंटे और मुंहरे मिले। पर दोनों सभ्यता से मिले चीजों में बनावट और आकर में बहुत भिन्न थी। अतः स्थानीय लोगों द्वारा ही इस सिंधु सभ्यता का निर्माण किया गया है। राखल दास बनर्जी ने इस सभ्यता का निर्माता यहां के स्थानीय द्रविड़ जाति को माना है।
जबकि डीएस रामचंद्र लक्ष्मणस्वरूपा ने आर्यो को इस सभ्यता का निर्माणकर्ता माना है। पर यह तर्क संगत प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि अगर आर्य व्यापार ईटों का ज्ञान था। तो वैदिक काल की इमारतें कच्चे मकानों की क्यों थी । इसलिए स्थानीय द्रविड़ जाति को ही सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माता माना गया है।
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सिंधु घाटी सभ्यता का पतन The fall of sindhu ghati sabhyata
इस सभ्यता के पतन के संबंध में मैके एवम जॉन मार्शल ने बाढ़ को उत्तरदाई बनाया है। लेकिन चाइल्ड एवं व्हीलर ने विदेशी आक्रमण और फेयर सर्विस ने परिस्थितिक असंतुलन को उत्तरदाई बताया है। बाद में बाढ़ को ही पतन का सर्वमान्य कारक माना गया है।
सभ्यता का विस्तार -Expainsion of sindhu ghati sabhyata
इस सभ्यता का विस्तार वर्तमान भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान । एनसीईआरटी के मुताबिक यह सभ्यता 13 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। अगर इस सभ्यता की चौहद्दी की बात करें तो इसका सबसे पश्चिमी छोर बलूचिस्तान के सूतगाडोर उतरी छोड़ जम्मू कश्मीर का मांदा पूर्वी छोर उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर के जिले तक है। पूरब से पश्चिम 1600 किलोमीटर तक उत्तर से दक्षिण लगभग 1400 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है।
यह सभ्यता मिश्र तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता के योग से भी लगभग 12 गुना बड़ी मानी जाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति तक मात्र 40 से 50 खोजे गए थे। किंतु वर्तमान में पंद्रह सौ से भी अधिक स्थल खोजे जा चुके हैं
जिसमें अफगानिस्तान में मात्र दो पाकिस्तान में लगभग 1500 और भारत में 1000 के आसपास स्थल है। सभी और स्थलों को याद रखना जटिल कार्य है। इसलिए हम सिर्फ उन्ही अध्ययन करेंगे जो किसी न किसी वजह से महत्वपूर्ण रहे हैं।
इससे पहले हम मानचित्र द्वारा सभ्यता की मुख्य बिंदु को समझने का प्रयास करते हैं।
राजनीतिक जीवन-
इस सभ्यता के लिखित साक्ष्य के अभाव में सही सही बताना मुश्किल है। कि वहां किस प्रकार कि प्रशासन व्यवस्था रहेंगे। यहाँ किसी भी प्रकार के महल के अवशेष प्राप्त नहीं हुए हैं।
जिस वजह से वहां राजतंत्र की व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया। खुदाई से पुरोहित की मूर्ति प्राप्त हुई है। और नगरीय जीवन बहुत ही शुभवस्थित था।
तब शासन में पुरोहित वर्ग का अधिपत्य था। अथवा नगर निकाय की प्रमुखता मानी जाती थी। विगत में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को दुर्गा रानी की संज्ञा भी दी है।
सामाजिक जीवन-
उस समय समाज कितने वर्गों में विभक्त था। यह स्पष्ट रूप से कह पाना तो असंभव नहीं है। किंतु प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है। कि समाज श्रमिक, पुरोहित, व्यापारी, इत्यादि वर्ण थे। उनके आधार जन्म ना होकर कर्म हुआ करता था।
क्योंकि मातृदेवी उर्वकता की देवी की मूर्ति खुदाई से प्राप्त हुई है। जो समाज में स्त्रियों की प्रमुख होने की ओर इशारा करता है। लोग शाकाहारी के साथ मांसाहारी भी थे। स्त्री पुरुष समान रूप से आभूषण का उपयोग करते थे।
सूती और उनी दोनों तरह के वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पासो का खेल, नृत्य,जानवरों को लड़ाना इनके प्रिय मनोरंजन के साधन थे ।
आर्थिक जीवन
आर्थिक जीवन का आधार कृषि और पशुपालन था । गेहूं की मुख्य रूप से खेती करते थे। सिचाई,बुआई, कटनी आदि का ज्ञान था। किंतु गन्ने और रागी से यह लोग अपरचित थे। कुंवर वाले साड़, घोड़े, गाय, मछलियां, इत्यादि पशुओं का पालन अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते थे। खिलौना तथा सूती वस्त्र का उद्योग इत्यादि भी प्रचलित था।
व्यापार देश के भीतरी हिस्से एवं बाहरी देशों के साथ भी होता था। सूती वस्त्र इमारती लकड़ी या पाटीदार का निर्यात करते थे। जबकि ईरान अफगानिस्तान ताम्बा राजस्थान तथा लामिया से आयात करते थे। मुद्रा का प्रचलन नहीं होने के कारण व्यापार मुख्य रूप से वस्तु विनिमय पद्धति पर आधारित थी।
धार्मिक जीवन-
इस सभ्यता में धर्म मात्र जीवन का अभिन्न अंग था। ना कि धर्म प्रधान जीवन का। यह लोग मछली पूजा, नाग पूजा, लिंग पूजा, योनि पूजा इत्यादि में विश्वास करते थे। अग्नि कुंड के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। जो अग्निपूजा की ओर इशारा करते हैं।
साथ ही वृक्ष पूजा के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। पशुपतिनाथ को भी मूर्ति प्राप्त हुई है। जिसमें 1 मुख वाले देवता अपने आसपास कई जानवरों से गिरे देखे जाते हैं।अतः पशुपतिनाथ की भी पूजा के प्रमाण मिले हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण सभ्यता सिंधु सभ्यता रही है। जिसमें अभी भी कई रोचक जानकारियां प्राप्त होने की भरपूर संभावनाएं हैं।