व्युत्पन्न क्रिया जो क्रियाएँ मूल क्रियाओं से उत्पन्न होती है वह व्युत्पन्न क्रिया कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है।
प्रेरणार्थक क्रिया -प्रेरणार्थक क्रिया और सकर्मक क्रिया दोनों अलग-अलग होते हैं दोनों को मिलाना नहीं चाहिए। जैसे स्नेहा पतंग उड़ा रही है। स्नेहा तितली उड़ा रही है।
व्युत्पन्न अकर्मक क्रिया- प्रेरणार्थक क्रियाओं की तरह यह भी मूल सकर्मक क्रियाओं से व्युत्पन्न होती है। जैसे -खोलने से खुलना, उठाना से उठना, उड़ाना से उड़ना।
संज्ञा सर्वनाम विशेषण आदि से जो धातुएँ बनती है वह नामधातु कही जाती है संज्ञा से खर्च - खर्चना रंग -रँगना। – विशेषण से - गर्म - गर्माना, दोहरा -दुहराना। – सर्वनाम से -अपना-अपनाना। – अनुकरणवाची -हिनहिन -हिनहिनाना
मिश्र क्रिया - इस क्रिया की यह विशेष्ता है की इसमें पहला भाग संज्ञा, विशेषण, क्रिया विशेषण का रहता है और दूसरा भाग क्रिया का रहता है। इस क्रिया को क्रियाकर कहते हैं;जैसे-याद+आना=याद आना(याद संज्ञा है),प्यारा +लगना =प्यारा लगना (प्यारा विशेषण है ),भीतर +करना =भीतर करना (भीतर क्रियाविशेषण है )
संयुक्त क्रिया- यह भी समस्त क्रिया की भांति दो धातुओं से तो बनती है पर इसमें यह अंतर है की मुख्य अर्थ पहले वाली क्रिया में रहता है। मतलब पहले वाली क्रिया प्रधान होती है; जैसे- कर लेना, चल देना, आ जाना