लघु कथा किसे कहते है?
लघु कथा लेखन गद्य साहित्य जगत की सबसे रोचक विधा है। लघु कथा आकार में छोटी होती है और कथा तत्वों से भरपूर होती है। इसमें जीवन की किसी एक घटना का वर्णन किया जाता है। यह एक ऐसी विधा है जो अपने सीमित क्षेत्र में पूर्ण एवं स्वतंत्र और प्रभावशाली है। जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही कहानीकार का उद्देश्य होता है। उसके पात्र उसकी भाषा शैली उसका कथा विन्यास सभी एक भाव को पुष्टि करते हैं।
लघु कथा का उद्देश्य क्या है ?
- -नैतिक शिक्षा प्राप्त करना।
- कल्पना शक्ति का निरंतर विकास करना।
- कहानी लिखने के कौशल का विकास करना।
- मनोरंजन प्रदान करना।
लघु कथा की विशेषताएं क्या है ?
- निरंतरता
- रचनात्मक
- प्रभावी संवाद
- पात्र अनुकूल संवाद
- जिज्ञासा
- रोचक
- तथ्यात्मकता
कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- कथा या कहानी लिखने के पूर्व उसकी रूपरेखा तैयार कर लेनी चाहिए।
- कहानी की भाषा शैली सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।
- कहानी लिखते समय विभिन्न घटनाओं और उसमें आए प्रसंग को संतुलित रूप में लिखना चाहिए।
- कहानी में ना तो बहुत छोटे वाक्य और ना ही अति आवश्यक रूप से बड़े-बड़े वाक्य होने चाहिए।
- सबसे जरूरी बात कहानी से पाठक को कोई ना कोई उपदेश या शिक्षा अवश्य मिलनी चाहिए।
- लेखक को कम शब्दों में अपनी बात कहानी आनी चाहिए।
- कथा लेखन भूतकाल में लिखना चाहिए।
चलिए कुछ उदाहरण के द्वारा कथा लेखन को समझते हैं।-
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प्रश्न- गंगा और मै विषय पर एक लघु कथा लिखिए।
उत्तर- (लघु कथा)मैं बनारस में रहा और वही पला और बड़ा हुआ। बचपन में अक्सर पिताजी मुझे अपने साथ नदी गंगा नदी के तट पर ले जाया करते थे। अतः मेरा जुड़ाव बचपन से ही उनके साथ रहा। बड़े होने पर गंगा मैया के पास जाने से मुझे शांति और सुकून की अनुभूति होती है। निर्मल पवित्र जल में स्नान करने पर एक अनोखी ताजगी से मन भर जाता है। शाम के समय गंगा की आरती का दृश्य निराला होता है।
दूर देश से अनेक लोगों से देखने आते हैं। लेकिन एक दिन एक घटना को याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मैं अपने एक मित्र के साथ गंगा घाट गया था । वर्षा का दिन था । गंगा अपने पूरे उफान पर थी। अचानक मेरे मित्र का पैर फिसला और अगले ही पल मैंने देखा,वह गहरे पानी में हाथ पैर मार रहा था। सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
मै घबराकर चीखने लगा। लोग जमा होने लगे लेकिन पानी का बहाव देखकर किसी को आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। तैरना मै भी जानता था। अतः मैंने उसे बचाने का निश्चय किया। मैं गंगा मैया का नाम लेकर कूद गया उसे बचाने में मेरे भी हाथ पांव फूल गए। लेकिन मैं सफल रहा। लोगों ने हमें तत्काल अस्पताल पहुंचाया। थोड़ी देर बाद मुझे होश आया ।
तो देखा सब मेरी बहादुर की प्रसंसा कर रहे हैं। और मैं बार-बार मन ही मन गंगा मैया का धन्यवाद कर रहा हूं। मुझे ही पता है कि मैया ने ही मेरी सहायता की थी। वरना उस दिन में और मेरे मित्र काल के गाल में समा चुके होते। जय हो गंगा मैया की।
सीख – इस लघु कथा से हमे यह सीखने को मिला की समय पर हमे अपनी त्वरित सूझबूझ व बुद्धि से निर्णय लेना चाहिए।
2 –वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे विषय पर एक लघु कथा लिखिए।
उत्तर एक बार मै और मेरा दोस्त अमित समुद्र के किनारे बैठे थे। यद्यपि अमित मुझसे उम्र में काफी बड़ा था। परंतु हम दोनों में गहरी मित्रता थी। हर रविवार को छुट्टी के दिन हम समुद्र के तट पर जाते और कुछ देर तैरते। अमित ठीक-ठाक तैर लेता था। जबकि मैं गहरे पानी में तैरना अभी सीख नहीं पाया था। तभी एक लड़का जिसकी उम्र लगभग 10 वर्ष थी ।
वह बार-बार पानी के पास जाता देखाता और फिर डर कर वापस आ जाता। उसे देखकर हमें हंसी आई। फिर हम वहां से उठकर भेलपुरी लेने चले गए। लौट कर आए तो देखा एक आदमी किनारे खड़ा बचाओ बचाओ चिल्ला रहा था। समुद्र की तरफ देखने पर पता चला कि यह वही बालक है जिसे हमने थोड़ी देर पहले समुद्र के पास खेलते देखा था। मुझे गहरे पानी में तैरने का अनुभव न था लेकिन तभी अमित ने अपनी कमीज़ उतार कर पानी में छलांग लगा दी तब तक काफी भीड़ भी खट्टी हो गई थी।
हमने फोन कर एंबुलेंस भी मंगवा ली लेकिन अमित और वह लड़का कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। आशंका से मेरा दिल जोर से धड़कने लगा तभी हमने उन्हें किनारे की तरफ आते देखा। वह बच्चा सही सलामत था। लेकिन अमित किनारे तक पहुंचते पहुंचते बेहोश हो गया। हम उन्हे अस्पताल ले गए। कुछ देर बाद अमित को होश आया अमित को होश में देखकर मेरी जान में जान आई।
तब तक अमित और मेरे माता-पिता भी वहां पहुंच गए थे। सारी बात जानकर सब ने अमित की प्रशंसा की और उसे अपनी जान जोखिम में डालकर उस बच्चों की मदद करने की लिए धन्यवाद कहा। सच ही कहा है वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मार।
सीख – वास्तव में वही मनुष्य है जो दूसरों की संकट में सहायता करें। अतः हमें एस लघु कथा से सीखने को मिला की हमे भी परोपकार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाना चाहिए।
3 सफलता की सीधी परिश्रम विषय पर एक लघु कथा लिखिए।
उत्तर- एक बार में अपने माता-पिता और बहन के साथ लता की पहाड़ियों पर चढ़ाई कर रहा था। सुबह 4:30 बजे उठ गए इतनी ठंड होने के बावजूद हम किसी तरह नहा कर जब बाहर निकले तो ठंड से हमारे पैर सुन्न हो गए थे। गाड़ी में बैठकर हम पहाड़ के पास जा रहे थे। तभी रास्ते में हमने कुछ पहाड़ियों पर बर्फ गिरते देखा।
मेरी बहन डरने लगी मैं और मेरे माता-पिता ने उसका हौसला बढ़ाया तो उसमें जोश आ गया। लद्दाख की पहाड़ियों तक पहुंचाने का रास्ता बहुत सकरा था, इसलिए यातायात बहुत धीमी गति से बढ़ रहा था। बर्फबारी के कारण कुछ गाड़ियों के इंजन खराब हो गए थे तथा कुछ गाड़ी के टायर बर्फ में फंस गए थे। थोड़ा आगे बढ़ने पर हमारी गाड़ी मे खराबी आ गई लेकिन हमने हौसला नहीं हारा।
पहाड़ पर हमें चढ़ना था लेकिन उसे पर बर्फ जमी थी। इतनी दूर जाकर चढ़ाई पूरी किए बिना न लौटने का संकल्प लेकर हमने चढ़ाई शुरू कर दी। ऊपर चढ़ते हुए हमारे मार्गदर्शन के पैर में मोच आ गई। जिसके कारण वह आगे हमारे साथ नहीं जा सकता था। अब चढ़ाई धीरे-धीरे और मुश्किल होने लगी लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मेहनत से चढ़ाई पूरी की। नीचे उतरने पर ऐसा लगा मानो हमने कोई जंग जीत ली है।
सीख – इसे लघु कथा को पढ़ कर मन में विचार आया कि परिश्रम ही सफलता की सीढ़ी है परिश्रम से ही सफलता पाई जाती है।