पाल साम्राज्य -इन हिंदी
Pal dynasty दोस्तों सातवीं सदी में हर्ष के साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अनेक साम्राज्य का उदय हुआ। जिसमें पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश प्रमुख थे। आज के इस पोस्ट में हम मुख्य तौर पर पाल वंश की चर्चा करेंगे जिसमें पाल वंश का परिचय तथा ऐतिहासिक स्रोत,अभिलेख,साहित्य तथा पाल वंश के शासक की चर्चा करेंगे। तथा संछिप्त विवरण प्रतिहार और राष्ट्रकूटों की भी चर्चा करेंगे। आठवीं सदी में जब गौड़ वंश की समाप्ति हुई सम्राट हर्षवर्धन और असम के राजा भास्कर वर्मा के द्वारा तब बंगाल में बहुत सारी राजनीतिक और प्रशासनिक संकट गहराने लगी तब 750 ईसवी में कुछ सामानतो और जनता ने मिलकर गोपाल नाम के एक व्यक्ति को राजा घोषित किया यह इच्छा से बनाया गया राजा था ना कि इसने अपनी शक्ति से राज्य हासिल किया था।
Pal dynasty-पाल वंश के ऐतिहासिक स्रोत
खलोमपुर अभिलेख, मुंगेर का लेख, रायगढ़ लेख, तथा देवघर के लेख अभिलेखों में धर्मपाल से लेकर देव पाल महिपाल और नारायण पाल सभी की चर्चा मिलती है। साहित्य –उदयसुंदरी कथा रामचरित्र ग्रंथ तारानाथ के लेख, अरब यात्री सुलेमान के लेख इन सभी साहित्य में पाल वंश की विस्तृत चर्चा देखने को मिलती है।
इन्हें भी जानें –Pallavas and Chalukya dynasty-History of south Indian
Pal dynasty-पाल वंश के शासक
पाल साम्राज्य के संस्थापक गोपाल थे। इन्होंने पाल साम्राज्य की स्थापना की। गोपाल ने बंगाल से लेकर मगध तक पर अपना अधिकार किया । गोपाल ने ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय जो कि बिहारशरीफ में स्थित है उसकी स्थापना की।
- धर्मपाल –770 ईस्वी से लेकर 810 ईसवी तक इसके शासनकाल में कन्नौज पर नियंत्रण के लिए पाल प्रतिहार एवं राजपूतों में त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ जिस संघर्ष में धर्मपाल विजय हुआ।
- देवपाल -देवपाल ने अपना नियंत्रण प्रागज्योतिषपुर जो कि असम और उड़ीसा के कुछ भागों में है वहाँ सत्ता स्थापित किया। पाल शासक बौद्ध ज्ञान, विज्ञान एवं धर्म के संरक्षक थे।
- धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुत्थान किया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। जहाँ वज्रयान शाखा की पढ़ाई होती थी।
- प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान शान्तरक्षित और दीपांकर ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था।
- गुजराती कवि सोड़ढल ने धर्मपाल को उत्तरपथस्वामी की संज्ञा दी।
प्रतिहार वंश तथा इनके शासक –
विद्वानों के अनुसार प्रतिहार गुर्जरों के वंश के थे। इसलिए उन्हें गुर्जर प्रतिहार भी कहा जाता है। नागभट्ट प्रथम -(1730 -1756) गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था। इसकी आरंभिक राजधानी भनिमाल में थी।
- नागभट्ट द्वितीय – 800 से लेकर 833 ईसवी तक इसने पाल शासक धर्मपाल की सेना को मुंगेर के समीप पराजित कर दिया था। इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई लेकिन वह राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय से पराजित हो गया।
- मिहिरभोज प्रथम –यह इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था। इसने कन्नौज को पुनः अपनी राजधानी बनाई और अपने समकालीन राजा जैसे पाल शासक देवपाल और राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ। मिहिरभोज वैष्णोमातावलंबी था। उसने आदिवाराह और प्रभास जैसी उपाधियाँ धारण की। जिसका महत्वपूर्ण लेख प्रशस्ति ग्वालियर में मिलता है।
- महेंद्र पाल प्रथम -(885 – 909 ईसवी ) तक इसने प्रतिहार साम्राज्य को एक बनाए रखा। इनके दरबार में राजशेखर निवास करते थे जो उनके राजगुरु भी थे।
- अलमसुदी – यह 16 ईसवी में बगदाद से भारत आया था। इसने प्रतिहारो की शक्ति एवं प्रतिष्ठा का वर्णन किया है। वह प्रतिहार राज्य को अल जुज कहता था।
राजशेखर की रचनाएं- कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, हरविलास, भुवनकोश, बाल रामायण।
राष्ट्रकूट वंश तथा इनके शासक –
राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग था। इन्होंने शोलापुर के पास मान्यखेत या मलखेर को अपनी राजधानी बनाया।
- ध्रुव– यह इस वंश का एक महान शासक था। जिसने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया।
- अमोघवर्ष –यह भी एक अन्य प्रसिद्ध शासक था। जिसने 64 वर्ष तक राज किया। वह जैन मातालंबी था। उसने कविराजमार्ग नामक कन्नड़ ग्रंथ की रचना की थी।
- इंद्र तुर्तीय और बल्लभ राज अन्य प्रसिद्ध राजा थे।
- कृष्ण तृतीय अंतिम प्रभाव प्रतिभाशाली शासक था। जो मालवा के परमारों तथा वेगी के पूर्वी चालुक्यों के साथ संघर्ष में रहा। जिसने चोल राजा परंटक प्रथम को 1949 ईस्वी में पराजित किया था। राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाश मंदिर बनवाया था।
दोस्तों पाल वंश तथा राष्ट्रकूट और प्रतिहार वंश के सभी बिंदु को एक ही भाग में सरल तरीके से समझाने का प्रयास है जिसे आसानी से याद रखा जाए। आशा है यह भाग आपको पसंद आया होगा आपके सुझाओं का इंतज़ार रहेगा।