Parvat Pradesh mein pawas(पर्वत प्रदेश में पावस )Class 10 Question & Answer

Parvat Pradesh mein pawas(पर्वत प्रदेश में पावस )-Class 10 Question & Answer Sparsh 2

Parvat Pradesh mein pawas(पर्वत प्रदेश में पावस )-Class 10 Question & Answer Sparsh 2
प्रदेश में पावस नामक कविता वारिद से संकलित पंत जी की कविता है।सुमित्रानंदन पंत जी का पर्वतीय प्रदेश से गहरा संबंध था। इस kavita में पंत जी ने बहुत ही मनोहर सजीव दुर्श्य का वर्णन किया है। वह भला कौन होगा जिसका मन पहाड़ों पर जाने को न मचलता हो। जिन्हें सुदूर हिमालय तक जाने का अवसर नहीं मिलता वह भी अपने आसपास के पर्वत प्रदेश में जाने का अवसर शायद ही हाथ से जाने देते हो।

ऐसे में कोई कवि और उसकी कविता बैठे-बैठे वह अनुभूति दे जाए जैसे वह अभी-अभी पर्वतीय अंचल में विचरण करके लौटा हो तो इससे अधिक आनंद का विषय क्या हो सकता है।

Parvat Pradesh mein pawas कविता का साराश –

कविता में ऐसे ही रोमांच और प्राकृतिक के सौंदर्य को अपनी आंखों से निहारने की अनुभूति होती है। यही नहीं सुमित्रानंदन पंत की कविताएं पढ़ते हुए यही अनुभूति होती है कि मानो हमारे आसपास की सभी दीवारें कहीं विलीन हो गई हो हम किसी ऐसे रम्य स्थल पर आ पहुंचे हैं ।

जहां पहाड़ों की अपार श्रृंखला है आसपास झड़ने बह रहे हैं और सब कुछ भूल कर हम उसी में लीन रहना चाहते हैं।वर्षा ऋतु है।पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति हरचन अपने स्वरूप को बदलकर नए वेश धारण कर रही है मेखलाकर पर्वत श्रेणियां के तलहटी में जलप्रपात जी को के जाल में गिरने की आवाज पर्वत के विद्वान होने का प्रमाण दे रहे हैं। पर्वतों से गिरने वाले झरने झागों से युक्त होकर वह रहे हैं।

पर्वत के हृदय पर ऊंचे ऊंचे वृक्ष आकाश की ओर एक तक झांक रहे हैं। अचानक पहाड़ों पर विशाल आकार के बदले बहुत भयानक स्वर में गर्जना शुरू कर देते हैं। गहरे कोहरे के कारण तालाब से धुआं उठता दिखाई दे रहा है। मूसलाधार वर्षा होने के कारणदृश्य ओझल हो जाता हैस्वर सुनाई दे रहा है।

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Parvat Pradesh mein pawas(पर्वत प्रदेश में पावस )-Class 10 Question & Answer प्रश्न उत्तर-

प्रश्न 1-‘है टूटा पड़ा भू पर अंबर!”पर्वत प्रदेश में पावस “कविता में कवि ने ऐसा क्यों कहा है ?

उत्तर- पर्वत प्रदेश में पावस कविता में ‘है टूट पड़ा भू पर अंबर पंक्तियों द्वारा कभी वर्ष के विकराल रूप को दिखाना चाहता है कवि कहता है कि वर्ष इतनी तेज गति से हो रही थी मानव धरती पर आकाश टूट पड़ा हो। कवि ने इन पंक्तियों के द्वारा पर्वतीय इलाकों में वर्षा के बाद होने वाले स्वर की अनुभूति करवाने का सफल प्रयास किया है।

प्रश्न संख्या 2- पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के सौंदर्य का वर्णन पर्वत प्रदेश में पावस के आधार पर अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर-वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में पाल-पाल प्रकृति का रूप बदलता रहता है। बदल अचानक पहाड़ों से इतनी भयानक और विशाल आकार में गरजते हुए ऊपर उठते हैं कि जैसे कोई पहाड़ बदल रूपी पंख फड़फड़ा कर आकाश में उड़ रहा हो थोड़ी ही देर में बदल इस तरह धरती पर बरसते हैं।

मानो आकाश ने धरती पर आक्रमण कर दिया हो मूसलाधार बारिश के कारण सामने का दृश्य भी ओझल हो चुका है। केवल झरनों का स्वर सुनाई दे रहा था। उसे समय साल के पेड़ डर के मारे धरती में धज हुए प्रतीत हो रहे थेऔर तालाब से जलवाष्प रूपी धुआं उठने लगा है। उसमें तालाब जलता हुआ सा प्रतीत होने लगा है।

प्रश्न संख्या 3-सुमित्रानंदन पंत ने प्रदेश में पावस प्रदेश में पावस कविता में तालाब की तुलना किस की है और क्यों?

उत्तर-कवि ने तालाब की तुलना दर्पण से की है क्योंकि जिस प्रकार दर्पण में हमें अपना प्रतिबिंब देखने को मिलता है उसी प्रकार स्वच्छ निर्मल जल वाले तालाब रूपी दर्पण में पर्वत का महाकाल प्रतिबिंब दिखाई देता है।

प्रश्न संख्या 4-पर्वत प्रदेश में पावस कविता के आधार पर पर्वत के रूप स्वरूप का चित्रण कीजिए।

उत्तर- मेखलाकर पर्वत अर्थात पर्वत कर चली के आकार का हैजिसके चरणों में एक पारदर्शी दर्पण रूपी लाल है। पर्वत अपना महाकाल प्रतिबिंब ताल में निहारत हुए अपने सहस्त्र दुर्गा रूपीसुमनों से निहार कर अचंभित हो रहा है।

मोती की मालाओं के समान सुंदर झड़ने कल कल की ध्वनि कर पर्वत के गुणगान गाते हुए प्रतीत होते हैं। वर्षा होने पर पर्वत बादलों से गिर जाता है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे पंख लगाकर उड़ गया होसाल के विश्वा जमीन में धज हुए प्रतीत होते हैं। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु का दृश्य अत्यंत रमणीय होता है।

प्रश्न संख्या 5 -पर्वत प्रदेश में गिरी का गौरव कौन गा रहा है और उत्तेजना का संचार वह कैसे कर पता है?

उत्तर-पर्वत प्रदेश में पावस कविता में बताया गया है कि जब पहाड़ों पर वर्षा ऋतु में बादल बरसते हैं तब पर्वतों से प्रवाहित होने वाले झरने गिरी का गौरव गाते हुए पृथ्वी पर गिरते हैं और अपनी आवाज और गति से प्राणी की नस-नस में उत्तेजना का संचार करते हैं।

प्रश्न संख्या 6- बादल के उठने तथा वर्षा होने का चित्र पर्वत प्रदेश में पावस के आधार पर अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – वर्षा होने का चित्रण करते हुए कवि ने कहा है कि बदल अचानक पहाड़ों से इतनी भयानक और विशाल आकार में गरजते हुए ऊपर उठे कि जैसे कोई पहाड़ बदल रूपी पंख फड़फड़ा कर आकाश में उड़ गया हो। थोड़ी ही देर में बदल इस तरह धरती पर बरसे बरस पड़े मानो आकाश ने धरती पर आक्रमण कर दिया हो। उसे समय साल के पेड़ डर के मारे धरती में धंस गए और तालाब से दुआ उठने लगा। यह वर्षा होने का जीवन चित्रण किया गया है।

प्रश्न संख्या 7- वृक्ष आसमान की ओर किंचित चिंतित होकर क्यों दिखाई दे रहे हैं ? पर्वत प्रदेश में पावस के आधार पर लिखिए।

उत्तर – वृक्ष महत्वाकांक्षाओं के प्रतीक है इसलिए उन्हें पूरा करने के लिए उसमें चिंता हैवह हमेशा आगे बढ़ाने अर्थात ऊंचा उठने की कामना से व्यग्र रहते हैं।

प्रश्न संख्या 8- मेखलाकर शब्द का अर्थ बताइए। इस शब्द रूप का प्रयोग यहां किस लिए किया गया है?

उत्तर-मेखलाकर शब्द का अर्थ है कर घनी के आकार के पहाड़ की गोलाकार दल। कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहां पर बात और पर्वतमालाओं के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए किया है। जब वर्षा ऋतु में पर्वतों के प्रकृतिवश में पल-पल जो परिवर्तन होता है उसको बताने के लिए कवि ने इसका प्रयोग किया है।

प्रश्न संख्या 9- सहस्त्र दुर्ग- सुमन का क्या अर्थ है? कविता में इसका प्रयोग किस लिए किया गया होगा?

उत्तर-सहस्त्र दुर्ग-सुमन का अर्थ है हजारों पुष्प रूपी आंखें। कवि ने इस पद का प्रयोग पर्वत की चोटियों पर खेलने वाले छोटे-छोटेफूलों के रूप को देखकर किया होगा। कवि को लगता है कि पर्वत अपने सहस्त्र पुष्प रूपी नेत्रों से तालाब में अपने रूप सौंदर्य को निहार रहा है।

प्रश्न संख्या 10- झरने किस तरह के दिखाई देते हैं और क्यों?

उत्तर-कवि के अनुसार बहते हुए झरने मोतियों की माला जैसे दिखाई देते हैं पहाड़ों से गिरते झड़ने जिसका जल सफेद झाग की तरह  प्रतिबिंबित होता हैवह मनोरम लगते हैं। ऐसा लगता है कि पहाड़ों के नीचे कोई मोतियों की माला गिरती जा रही हो।

प्रश्न संख्या11- कौन से दृश्य जादू के समान प्रतीत हो रहे हैं?

उत्तर- कवि कहता है कि बादल रूपी विमान में सवार इंद्र आकाश में इस प्रकार घूम रहा है जैसे कोई जादूगर अपना खेल दिखा रहा हो कहीं बादलों का समूह पहाड़ों को छिपा रहा है तो कहीं गहरे कोहरे के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि तालाब से धुआं उठ रहा है यह सभी दृश्य जादू के समान प्रतीत होते हैं।

Parvat Pradesh mein pawas पाठ के आधार पर निबंधात्मक प्रश्न उत्तर –

प्रश्न 1- पर्वत प्रदेश में पावस कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-पर्वत प्रदेश में पावस नामक कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों व उनके सौंदर्य का चित्रण किया है। पुष्प तालाब झरनों और वृक्षों का मनोरम दृश्य बम उपस्थित किया है। शाल के वृक्ष ऐसे लगते हैं ।

मानों जमीन में धसे हो और तेज मूसलाधार वर्षा के कारण सारा दृश्य ओझल हो जाता है केवल झरनों का स्वर आता सुनाई देता है तालाब से उठता कोर देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तालाब में आग लग जाने से उसमें ऐसा धुआं उठ रहा है। कभी बादलों में छा जाने वाले पर्वत बदल रूपी पंख लगाकर उड़ते जान पड़ते हैं। यह सभी नजारे अद्भुत लगते हैं।

प्रश्न संख्या 2- वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रकृति सुषमा का वर्णन सुमित्रानंदन पंत की कविता के आधार पर कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत कविता पर्वत प्रदेश में पावस प्रकृति में सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षा काल में छन छन होने वाले परिवर्तनों व अलौकिक दृश्य का बड़ा सजीव चित्रण किया है।

कवि कहता है कि महाकाल पर्वत मानो अपने ही विशाल रूप को अपने चरणों में स्थित बड़े-बड़े तालाबों में अपने हजारों सुमन रूपी नेत्रों से निहार रहे हैं।

बहते हुए झड़ने दर्शकों की नस-नस में उमंग और उल्लास भर रहे हैं। पर्वतों के सीनों को फारकर उच्चकांछाओं से युक्त ऊंचे ऊंचे वृक्ष मानव बाहर आए हैं और अपलक व शांत भाव से आकाश को निहार रहे हैं। फिर अचानक ही पर्वत मानो बदल रूपी यह के पैरों को फड़ फाड़ते हुए उड़ गए हैं।

कभी-कभी तो ऐसा भी मालूम होता है कि मानव धरती पर आकाश टूट पड़ा हो और उसके भाई से विशाल साल के पेड़ जमीन में दास गए हो। तालों से उठती भाप ऐसी जान पड़ती है मानो उसमें आग लग गई हो और धुआं उठ रहा हो। कवि कहता है कि यह सब देखकर लगता है कि जैसे इंद्र ही अपने इंद्रजाल से खेल रहा हो।

प्रश्न संख्या 3- वर्षा ऋतु में पर्वत प्रदेश प्रकृति सौंदर्य कई गुना बढ़ जाता है परंतु पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के दैनिक जीवन में क्या कठिनाई उत्पन्न होती होगी? उनके विषय में लिखिए।

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में प्राकृतिक सौंदर्य तो कई गुना बढ़ जाता है परंतु इस ऋतु में पहाड़ों पर जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के लिए कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है जैसे वर्ष के कारण पहाड़ों की भूमि फिसलम से बढ़ जाती है।

जिसके कारण पहाड़ों से फिसल कर गिरने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही चट्टानों को अपछेय होने लगता है वह टूट कर गिरने लगती है। कभी-कभी बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े गिरते हैं जिससे जल मां का बहुत नुकसान होता है। वर्ष के कारण पहाड़ों की मिट्टी फैलने लगती है कभी-कभी बादल फटने से भयंकर बाढ़ भी आ जाती है। जंगलों में कीचड़ व दलदल बन जाती है जिसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होता है।

प्रश्न संख्या 4 – सिद्ध कीजिए पंत जी कल्पना के सुकुमार कवि है?

उत्तर – पंत जी कल्पना लोक के सुकुमार कवि है। उनकी कल्पनाएं मां को छू लेने वाली और सुकोमल है। उन्होंने अपनी कविता में प्रकृति को एक मनुष्य की तरह क्रियाशील बताया है। उन्होंने पहाड़ों को तालाब में स्वयं को निहारता हुआ दिखाया है पैरों की उच्च आकांक्षाओं

जैसे गहन चिंतन मुद्रा में खड़ा हुआ झरने को गौरव गाता गाता हुआ साल के वृक्षों को भाई से धस हुआ बादलों को पार के समान चमकीली पंख फड़फड़ा कर उड़ता हुआ और आक्रमण करता हुआ दिखाया है। यह सब कल्पना है गतिशील मौलिक एवं नवीन है।

प्रश्न संख्या 5- पल-पल परिवर्तित प्रकृति -वेश की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

उत्तर – सचमुच वर्षा ऋतु में पहाड़ों पर पल-पल दृश्य बदल रहे हैं। पर्वतों से प्रवाहित होने वाले झड़ने पर्वतों का गौरव गान करते हुए पृथ्वी पर झर झर गिर रहे हैं और नस-नस में उत्तेजना भर रहे हैं।

कभी तालाब के जाल में पहाड़ों पर प्रतिबिंब दिखाई देता है तो कभी तालाब में धुआं उठने लगता है। कभी पहाड़ों पर खड़ेलंबे वृक्ष ऊंची आकांक्षाओं के साथ शांत आकाश की ओर एलपीसी देखते प्रतीत होते हैं।

तो कभी वह भी से धरती में धन से नजर आते हैं। झरने कभी झाड़-जहर का संगीत करते हुए मोती की लड़ी से सुंदर लगते हैं ऐसा लगता है कि पहाड़ों से चांदी का भंडार सफेद धातु के रूप में गिर रहा है तो कभी वह अदृश्य हो जाते हैं इस प्रकार प्राकृतिक सचमुच पल-पल अपना रूप बदलती है।

आशा है आपको यह पाठ Parvat Pradesh mein pawas पसंद आया होगा अपने विचार और सुझाव हमे लिखे।