स्वागत है दोस्तों आप का आज के इस हिन्दी व्याकरण के इस भाग -Sandhi (संधि) मे,दोस्तों संधि की परिभाषा तो बहुत आसान लगती है पर जब हम इसे बनाने,इसके प्रश्नों को हल करने जाते है तो इसके अनगिनत नियम हमे उलझन मे डाल देते है । चलिए आज हम इसी समस्या को हल करने की कोशिश करते है।
Sandhi (संधि)किसे कहते है ?
संधि (Sandhi)शब्द का मतलब किसी भी ध्वनि को जोड़ना या मिलाना होता है । भाषा की एक खशियत होती है इसे हम रुक रुक कर नहीं बोलते है,इसे हम एक प्रवाह में बोलने की कोशिश करते है । कभी-कभी उच्चारण के समय ध्वनि इतनी निकट आ जाती है कि उनमे हमे भेद करना मुश्किल हो जाता है
जैसे -महा और ईश जब हम एक साथ बोलते है, तो महेश जैसा उच्चारण सुनाई देता है। जिसमे आ और ई मिलकर ए बन जाता है। अर्थात
वर्णो के आपस में बिना बाधा के मिलने की विशेष प्रक्रिया को संधि कहते है।
संधि
कुछ उदाहरण से Sandhi समझते है –
- परम +ईश्वर =परमेश्वर
- जगत् + ईश + जगदीश
- दुः + गम = दुर्गम
इस प्रकार देखा जाता है कि संबंध हमेशा दो ध्वनियों स्वर अथवा व्यंजन के बीच में ही होता है शब्दों में नहीं संधि करते समय ध्वनियों में परिवर्तन हो जाता है। यह ध्वनि परिवर्तन पहली ध्वनि में भी हो सकता है और दूसरी या दोनों में भी हो सकता है।
संधि विच्छेद किसे कहते है ?
विच्छेद का अर्थ होता है अलग करना संधि के नियमों द्वारा मिले वर्णों को फिर पहली अवस्था में ले आने को संधि विच्छेद कहते हैं। जैसे -(शब्द) उच्चारण =उत्+ चारण (संधि विच्छेद) २ स्वागत -सु+ आगत(संधि विच्छेद) ३ विद्यालय=विद्या +आलय (संधि विच्छेद) ४ रत्नाकर = रत्न +आकार( संधि विच्छेद )
संधि (Sandhi)के कितने भेद होते है ?
संधि के तीन भेद होते हैं । १ स्वर संधि,२ व्यंजन संधि,३ विसर्ग संधि
स्वर संधि किसे कहते है ?
जब दो स्वरों में परस्पर मेल होता है और उन में जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। इसमें मुख्य पांच भेद होते हैं–
१ दीर्घ संधि (Sandhi)-जब हस्व या दीर्घ अ,इ,उ के बाद हस्व या दीर्घ अ ,इ,उ परस्पर निकट आ जाए,तो दोनों को मिलाकर दीर्घ -आ,ई,ऊ हो जाते है । जैसे –
- मत +अनुसार =मतानुसार
- देव +आलय = देवालय
- शिक्षा +अर्थी =शिक्षार्थी
- महा +आत्मा=महात्मा
- नारी +ईश्वर=नरीश्वर
२ गुण संधि– अ और आ स्वरों के बाद यदि हस्व या दीर्घ इ,उ ,ऋ स्वर आते हैं तो दोनों के जगह पर क्रमशः ए ,ओ तथा अर् हो जाता है । उदाहरण –
- सुर +इंद्र +सुरेंद्र
- पर +उपकार =परोपकार
- गंगा +उदक =गंगोदक
- महा +ऋषि=महर्षि
- महा +ईश =महेश।
३ वृद् धि संधि– अ/आ के बाद यदि ए /ए े अथवा ओ /औ आ जाए तो दोनों की जगह पर क्रमशःएेऔर औ हो जाता है उदाहरण –
- एक +एक =एकैक
- वन +ओषधि =वनोषधि
- महा +ओजस्वी =महौजस्वी
- तथा +एव =तथेव ।
४ यण संधि – ई,ई,उ,ऊ,या ऋ के बाद यदि कोई अन्य स्वर आ जाए तो इ/ई का य,उ/ऊ का व तथा ऋ का र् हो जाता है । उदाहरण –
- अति+अधिक =अत्यधिक
- उपरि +उक्त =उपयुक्त
- नि +ऊन =न्यून
- सु +आगत =स्वागत
- प्रति +एक = प्रत्येक।
५ अयादि संधि– ए,ए,ओ,औ के बाद यदि कोई दूसरा स्वर आ जाए तब इनकी जगह पर अय,आय,अव तथा आव हो जाता है । जैसे –
- गै +अक =गायक
- पो +अन =पवन
- नौ +इक =नाविक
- भौ +उक = भावुक
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2 व्यंजन संधि किसे कहते है ?
व्यंजन संधि के बाद जब कोई व्यंजन या स्वर आने से जो बदलाव होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
1 क्,च् ट्,त्,प् के बाद यदि किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण य्,र,ल,व्,ह,अथवा कोई स्वर आ जाए तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा व्यंजन आता है। क् का ग्,च् का ज् ट् का ड्,त् का द् और प् का ब् हो जाता है । उदाहरण-
- दिक् +गज =दिग्गज
- वाक् +ईश =वागीश
- दिक् +अंबर =दिगंबर
- जगत् +अंबा =जगदंबा
- अच् +अंत =अजंत
२ -क्,च्,ट्,त्,प् – प्रत्येक वर्ग में पहले व्यंजन के बाद यदि न् या म् वर्ण आ जाए तो इसकी जगह पर अपने वर्ग का पंचम व्यंजन आता है। क् का ड़्,च् का ञ ,ट् का ण्,त् का न् और प् का म् हो जाता है। उदाहरण –
- जगत् +नाथ =जगन्नाथ
- चित् +मय = चिन्मय
- तत् +मय =तन्मय
- सत् +मार्ग = सन्मार्ग।
३ -त् के बाद ग् घ् द् ध् ब् भ् के बाद कवर्ग ,तवर्ग,पवर्ग का तीसरा चौथा व्यंजन य,र,व,या कोई स्वर आए तो उसकी जगह पर द् हो जाता है। जैसे –
- सत् +भावना =सद्भावना
- जगत् +ईश =जगदीश
- सत् +भाव =सद्भाव
- सत् +गति = सद्गति
४ – त् के बाद च्/छ् हो तो च् ज्/झ् हो तो ज् ,ट् /ठ् हो तो ट् ,ड् /ढ़् होने पर ड् और ल् होने पर ल् हो जाता है । उदाहरण –
- उत् +चारण =उच्चारण
- सत् +जन =सज्जन
- उत् +लेख =उल्लेख
५- त् के बाद यदि श् हो तो त् के जगह पर च् और श् का छ् हो जाता है,उदाहरण-
- उत् +शवास =उच्छवास
- उत् +शिष्ट =उच्छिष्ट
६- त् के बाद यदि ह् हो तो त् के जगह पर द् और ह् का ध् हो जाता है । जैसे –
- उत् +हार =उद्धार
- उत् +हरण =उद्धरण
- पत् +हति =पद्धति।
७ स्वर के बाद छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् व्यंजन बना दिया जाता है, उदाहरण –
- स्व +छंद =स्वच्छंद
- संधि +छेद =संधिच्छेद
- अनु +छेद =अनुच्छेद
८ यदि म् के बाद क् से भ् तक कोई वर्ण हो तो उसी वर्ण के अंतिम वर्ण या अनुस्वार मे परिवर्तन हो जाता है । सुविधा के लिए पंचमाक्षर के लिए अक्सर अनुस्वार को ही मानक माना जाता है, जैसे –
- सम् +कल्प =संकल्प
- किम् +चित् = किंचित
- सम् +तोष =संतोष
- सम् +गत =संगत आदि ।
९ म् के बाद म हो तो द्वित्व हो जाता है,
- सम् +मान =सम्मान
- सम् +मति =सम्मति
१० म् के बाद य्,र्,ल्,व्,श्,ष्,स्,ह् मे कोई व्यंजन हो तो म् का अनुस्वार हो जाता है,जैसे –
- सम् +लाप =संलाप
- सम् +रचना =संरचना
- सम् +संसार =संसार
११ हस्व स्वर (इ,उ)के बाद यदि र् हो और र् के बाद फिर से र् हो तो हस्व स्वर का दीर्घ स्वर हो जाता है,जैसे –
- निर् +रव =नीरव
- निर् +रोग =निरोग
- निर् +रस
१२ स से पहले अ,आ के अलावा कोई और स्वर आने पर अक्सर स का ष हो जाता है,जैसे –
- अभि +सेक =अभिषेक
- वि +सम =विषम
3 विसर्ग संधि किसे कहते है ? Sandhi
विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग मे जो परिवर्तन होता है,उसे विसर्ग संधि कहते है।
यदि विसर्ग के पहले अ हो और बाद में अ या किसी वर्ग का तीसरा,चौथा,पंचवा वर्ण या य्,र्,ल्,व्,ह् मे से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है ।जैसे
- मनः +अनुकूल =मनोनुकूल
- मनः +विज्ञान =मनोविज्ञान
- मनः +रथ =मनोरथ
विसर्ग के पहले अ/आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए तो और उसके बाद कोई स्वर,वर्ग का तीसरा,चौथा =,पंचम वर्ण या य्,र्,ल् व् ह् मे से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का र् हो जाता है जैसे –
- दुः +उपयोग =दुरुपयोग
- निः +आशा =निराशा
- निः +धन =निर्धन
यदि विसर्ग से पहले अ/आ हो और बाद मे कोई अन्य स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है उदाहरण
अतः +एव =अतएव।
7 यदि विसर्ग के बाद र हो तो विसर्ग गायब हो जाता है लेकिन उसका पूर्व स्वर दीर्घ बन जाता है जैसे
- निः +रज =नीरज
- निः +रस = नीरस ।
8- कहीं कहीं विसर्ग का स् हो जाता है जैसे –
- नमः +कार =नमस्कार
- भाः +कार = भास्कर।
हिंदी की संधियाँ(Sandhi) –
हिंदी भाषा में कुछ शब्दों पर संस्कृत के संधि नियम लागू नहीं होते हैं। हिंदी की प्रकृति के अनुरूप कुछ संधियां स्वयं ही विकसित हो गई ।
हिंदी संधियाँ – अल्पप्राण के बाद आने पर दोनों मिलकर महाप्राण हो जाते हैं उदाहरण
- अब +ही =अभी
- तब +ही =तभी
- कब +ही =कभी
- सब +ही =सभी
2- आ के बाद ह आने पर दोनों का लोप हो जाता है जैसे
- यहाँ +ही =यही
- वहाँ +ही =वही
3- स के बाद आने पर ह लुप्त हो जाता है जैसे –
- इस +ही =इसी
- उस +ही =उसी
- किस +ही =किसी।
कुछ संधि केवल उच्चारण के स्तर पर ही मिलती है,क् का ग् । च् का ज् । ठ् का ट् । यह का प्रयोग केवल उच्चारण में जल्दी के कारण होता है।
आज हमने क्या सीखा-
बिना रुकावट वर्णों के परस्पर मेल की क्रिया को संधि(Sandhi) कहते हैं। संधि (Sandhi)हमेशा दो ध्वनियों स्वर और व्यंजन के बीच की होती है शब्दों में नहीं। संधि द्वारा मिले वर्ण को अलग अलग करना संधि विच्छेद कहलाता है तथा संधि (Sandhi)के तीन भेद होते हैं।