Slave dynasty- गुलाम वंश या मामलुक सुल्तान -In hindi
कहानी 1206 से शुरू होती है जब तुर्कों के आक्रमण के बाद मोहम्मद गोरी जब गजनी वापस जा रहा था । तब दमयक नामक स्थान पर 15 मार्च 1206 ईस्वी में उसकी हत्या हो जाती है। तब मोहम्मद गोरी का गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में गुलाम वंश की नींव रखता है जिसके अंतर्गत पहला मुगल साम्राज्य गुलाम वंश (Slave dynasty) का स्थापित होता है जिसे मामलुक वंश भी कहा जाता है।
इसकी स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की। तकरीबन आठ शासकों द्वारा गुलाम वंश (Slave dynasty)1206 से 1290 तक सत्ता में रहा। जिसकी जानकारी तबक़ात -ए -नासिरी तथा ताजुल मासिर में मिलती है। इस काल में कई मंदिर तोडे गए तथा हिंदुओं पर अत्याचार हुए। चलिए इस वंश के सभी शासकों और उनके कार्य को विस्तार पूर्वक समझते हैं।
कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 से 1210 ईसवी
कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में तुर्क राज्य का संस्थापक माना जाता है। इनका राज्य अभिषेक 1206 ईस्वी में जून महीने में हुआ था। इसने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी। 1208 में गोरी के भतीजे गयासुद्दीन महमूद ने ऐबक को दास मुक्ति पत्र देकर उसे सुल्तान की उपाधि सौंपी थी।
ऐबक ने कभी भी अपने नाम का खुतबा नहीं पढ़वाया न ही अपने नाम के सिक्के चलवाए। यह लाखों रुपए दान में दिया करता था इसलिए इसे लाखबक्श भी खा जाता था। इनके दरबार में हसन निजामी तथा फक्र-ए -मुदबिबर रहते थे। ऐबक ने सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख़ितयार काकी के नाम से दिल्ली में कुतुबमीनार बनवाया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
इसने दिल्ली में कुववात उल इस्लाम और अजमेर में ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया। 1210 में जो चौगान पोलो खेलते समय लाहौर में घोड़े से गिरकर ऐबक की मृत्यु हो जाती है। कुछ बुद्धिजीवी ने ऐबक की मृत्यु के बाद उसके सरदार ने उसके पुत्र आरामशाह को राजगद्दी सौंपी। लेकिन इल्तुतमिश ने इसे हराकर गद्दी पर अपना अधिकार कर लिया।
Slave dynasty- इल्तुतमिश (1211 से 1236 ईस्वी) –
ऐबक ने इल्तुतमिश को अनिहलवाड युद्ध के दौरान खरीदा था। वह ऐबक का गुलाम एवं दामाद भी था। यह शम्शी वंश का था और इलबारी तुर्क था। अब इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान था।
इसने सुल्तान के पद की स्वीकृति गोर के किसी शासन से नहीं बल्कि खलीफा से प्राप्त की थी। उसने दिल्ली की गद्दी के दावेदार ताजुद्दीन यल्दौज और नासिरुद्दीन को हरा करके हासिल की थी। इसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई और अपने नाम से सिक्के चलवाए।
इसने 40 गुलाम सरदारों का एक संगठन बनाया जिसका नाम तुर्कान ए चिहालगानी के संगठन की स्थापना की। इल्तुतमिश की दूरदर्शिता के कारण तुर्क राज्य मंगोल आक्रमण से बचा रहा। इसने इक्ता व्यवस्था लागू की और 1226 ईसवी में बंगाल को जीतकर उसे दिल्ली में मिला लिया।
इसने 1226 ईस्वी में रणथम्भोर पर विजय प्राप्त किया और परमारो की राजधानी मंदौर पर अपना अधिकार जमा लिया। इसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए जिसे चांदी का टंका और तांबे का जीतल नाम से जाना जाता था। इल्तुतमिश की सेना हश्म ए कलब या फिर कल ए सुल्तानी के नाम से जाना जाता था। इल्तुतमिश ने क़ुतुब मीनार का निर्माण पूरा करवाया।
इसे मकबरा निर्माण का जन्मदाता कहा जाता है। इसने दिल्ली में स्वयं का भी मकबरा बनाया था तथा बदायूं में शमसी ईदगाह का भी निर्माण करवाया था। मिनहाज उस सिराज इसके दरबारी लेखक थे। 1236 ईस्वी में बामियान के विरुद्ध अभियान में इल्तुतमिश बीमार हो गया जिसे इसे दिल्ली वापस आना पड़ा तथा अप्रैल 1236 ईस्वी में इसकी मृत्यु हो गई।
इसने दिल्ली में जो अपना मकबरा बनाया था उसी में से दफनाया गया। तुर्क सरदारों से सुल्तान के शासन के अधिकार को छीन कर नायब या नायब ए मामलिकात को सौंप दिया गया। यह पद ऐतगीन को दिया गया। 1241 ईस्वी में जब मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण किया तब तक सरदारों ने बगावत कर बहरामशाह को बंदी बना लिया और 1242 ईस्वी में उसकी हत्या कर दी।
रजिया 1236 से 1240
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद रुकनुद्दीन फिरोजशाह अपनी मां शाह तुर्कान के सहयोग से गद्दी पर बैठा। शाह तुर्कान के अत्याचारों से परेशान होकर जनसमूह ने उसी गद्दी से हटा दिया गया तथा रजिया को सुल्तान बनाया गया।
यह दिल्ली सल्तनत के इतिहास में प्रथम महिला शासक थी यह तुर्क महिला शासक भी थी। रजिया ने पर्दा प्रथा त्याग कर पुरुषों की भांति वस्त्र पहनना शुरू कर दिए। रजिया ने एतगीन को बदायूं का इक्तादार एवं अल्तूनिया को तबर हिंद का इक्तादार नियुक्त किया।
अल्तूनिया ने 1240 ईस्वी में सरहिंद में विद्रोह किया अतः रजिया ने अल्तूनिया से शादी कर ली। 13 अक्टूबर 1240 ईस्वी को मार्ग में कैथल के निकट रजिया तथा अल्तूनिया की हत्या हो गई रजिया की असफलता का मुख्य कारण तुर्की गुलामों की महत्वकांक्षी थी।
मोइज्जुद्दीन बहरामशाह 1240 से 1242 ईसवी
रजिया के बाद तुर्क सरदारों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र यानी बहरामशाह को सिंहासन पर बिठा दिया।
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Slave dynasty अलाउद्दीन मसूद शाह 1242 से 1246 ईस्वी
मसूदशाह,इल्तुतमिस के पुत्र सुल्तान फिरोजशाह का पुत्र था। इसके शासन में समस्त शक्तियां नायब के पास रहती थी। बलबन ने अमीर ए हाजिब का पदभार संभाला तथा अपनी शक्तियां बढ़ानी शुरू कर दी। सन 1946 ईस्वी में बलबन ने मसूदशाह को सिंहासन से हटा दिया। जिसके कारण इनकी मृत्यु कारागृह में हो गई।
नासिरूद्दीन महमूद (1246 से 1265)
नासिरूद्दीन महमूद 10 जून 1246 ई को 16 वर्ष की आयु में सिंहासन संभाली। इनके समय तुर्क सरदारों से चल रही संघर्ष का अंत हो गया नसरुद्दीन के शासनकाल में समस्त शक्ति बलबन के ही हाथों में थी। 1249 में बलबन को उलुग खाँ की उपाधि प्रदान की और नायब इ मामलिकात का पद देकर कानूनी रूप से संपूर्ण अधिकारियों बलबन को सौंप दिया। 1265 में नसीरुद्दीन की मृत्यु के बाद बलबन ने खुद को सम्राट घोषित कर दिया।
Slave dynasty गियासुद्दीन बलबन (1265 से 1287)
गियासुद्दीन बलबन भी तुर्क था इसने 20 वर्ष तक वजीर के हैसियत से तथा 22 वर्ष तक सुल्तान के रूप में कार्य किया। रजिया के समय बलबन आमिर ए शिकार के पद पर नियुक्त था। बहरामशाह के समय अमीर ए आखुर मतलब अश्व शाला का प्रधान के रूप में नियुक्त था।
बलबन ने राजत्व सिद्धांत की स्थापना की। राजत्व सिद्धांत की दो विशेषता थी प्रथम सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया जाता है और दूसरी सुल्तान सुल्तान का निरंकुश होना जरूरी होता है। बलबन ने 40 तुर्क सरदारों के समूह को समाप्त कर दिया।
इसने कई ईरानी परंपराएं का प्रारंभ किया जैसे भूमि पर लेट कर अभिवादन जिसे सिजदा कहा जाता है तथा पैबोस अर्थात राजा के चरणों को चूमना लागु किया। बलबन ने रक्त और लौह की नीति अपनाई इसने ईरानी त्यौहार नौरोज को भी शुरू करवाया।
इसने अपने आपको अफरासियाब वंश का बताया जो फिरदोस के शाहनामा में वर्णित है। इसमें एक अलग से सैन्य विभाग बनवाया था जिसका नाम दीवान ए अर्ज था। बलबन ने जिल्ल ए इलाही की उपाधि धारण की थी।
Slave dynasty-कैकूबाद और शमसुद्दीन क्यूमर्स 1287 से 90 ईसवी
बलबन ने अपनी मृत्यु से पहले अपने बड़े बेटे मुहम्मद के पुत्र कैखुसरव को अपना रहो उत्तरधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन तुर्क सरदारों ने उसे मुल्तान का प्रांतीय शासक बना दिया।
दिल्ली के कोतवाल फखरुद्दीन मुहम्मद ने एक षड्यंत्र करके बलबन के दूसरे पुत्र बुगराखाँ के पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बना दिया कुछ समय बाद के बाद कैकुबाद लकवा ग्रस्त हो गया और तुर्क सरदारों ने उसके अबोध पुत्र क्यूमर्स को गद्दी पर बिठा दिया। 1209 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने क्यूमर्स की हत्या कर दी। जिसके बाद खिलजी वंश की शुरुआत भारत में हो गई ।
आशा है दोस्तों यह भाग आपको पसंद आया होगा। आपके प्रश्नो और सुझाओ का इंतजार रहेगा धन्यवाद।
Nice information well done thanks